दास मानसिकता का परित्याग
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

दास मानसिकता का परित्याग

स्वतंत्रता के अमृत वर्ष में भारत दासता के चिह्नों से स्वतंत्र होकर भारतीय प्रतीकों को अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है। ये मात्र प्रतीक नहीं हैं अपितु एक मानसिकता के भी द्योतक हैं। नए प्रतीक बताते हैं कि भारत दासता की मानसिकता से मुक्ति की राह पर है  

by प्रमोद जोशी
Sep 20, 2022, 11:58 am IST
in भारत, विश्लेषण, दिल्ली
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। भारत वह देश नहीं, जो अपने गौरवमय इतिहास को भुला दे।

लुटियन्स जोन अंग्रेज बादशाहत की पालकी ढोने वालों की विरासत है। उसे हम गिरा नहीं सकते, पर संवार-सुधार सकते हैं। ढाई किमी लंबा ‘कर्तव्य पथ’ बदले हुए भारत का प्रतीक मात्र है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं।

भारत वह देश नहीं, जो अपने गौरवमय इतिहास को भुला दे। 9 सितंबर से सेंट्रल विस्टा एवेन्यू आम जनता के लिए खोल दिया गया है। वहां जाने वाली भीड़ के चेहरों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं।

राजनीतिक विरोध
ऐसे कार्यक्रमों पर राष्ट्रीय सवार्नुमति हो, तो अच्छा है। अफसोस कि राजनीतिक अंध-विरोध ने इसे भी नहीं छोड़ा। जब से इस परियोजना की घोषणा हुई, इसे किसी न किसी वजह से विवाद का विषय बनाने की कोशिशें भी हुईं। यहां तक कि निर्माण रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक भी लोग गए। दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका को अदालत ने एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया।

नए संसद भवन की छत पर लगे अशोक स्तंभ के शेरों को क्रूर और आक्रामक बताकर खारिज किया गया। इस किस्म की समझ का प्रदर्शन देश की आंतरिक राजनीति में ही नहीं हुआ, न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित लेख में भी हुआ। प्रधानमंत्री ने 11 जुलाई को इस अशोक स्तंभ का अनावरण किया था। आलोचकों ने शेरों के दांत तक गिन लिए। सरकारें आती-जाती रहेंगी, पर ऐसे राष्ट्रीय स्मारक हमेशा नहीं बनते।

जीर्णोद्धार परियोजना
सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना के अंतर्गत केवल नए संसद भवन का निर्माण या कर्तव्य पथ का पुनर्निर्माण ही नहीं, कई तरह के दूसरे कार्य शामिल हैं। ये सभी इमारतें 1931 से पहले ब्रिटिश राज में बनीं थीं। इन्हें एडविन लुटियन्स और हरबर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। लगभग एक सदी के बाद इन पुरानी इमारतों की मरम्मत और इनमें सुधार की जरूरत है। उन्हें नए भारत के प्रतीक के रूप में विकसित करने की जरूरत भी है। पुराने संसद भवन के पुनरुद्धार में समय लगेगा।

मामला केवल आर्किटेक्चर और राष्ट्रीय गौरव का ही नहीं है। सांसदों की संख्या बढ़ने जा रही है। 1951 में हुए पहले संसदीय चुनाव में लोकसभा की 489 सीटें थीं। आज 543 सदस्य हैं और राज्यसभा में 245। 2026 में परिसीमन होना है, उसके बाद सदस्यों की संख्या और बढ़ेगी। नए परिसीमन की जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि इस समय करीब 25 लाख की आबादी का प्रतिनिधित्व एक सांसद करता है। नवीनतम जनगणना के साथ यह संख्या बदलेगी। परिसीमन के बाद लोकसभा सदस्यों की संख्या 700 से ज्यादा हो सकती है। राज्यसभा की सीटें भी बढ़ेंगी।

व्यावहारिक जरूरतें
संविधान के अनुच्छेद 82 और 170(3) के अंतर्गत हरेक जनगणना के साथ संख्या बदलनी चाहिए, पर उसे रोका गया। इसके लिए 2001 में किए गए 84वें संविधान संशोधन, 2001 में कहा गया कि 2026 तक यथास्थिति बरकरार रहेगी। 2026 में परिसीमन के बाद बढ़ने वाली सदस्य संख्या का भार उठाने में वर्तमान संसद भवन समर्थ नहीं है। मंत्रालयों के कार्यालय अलग-अलग जगहों पर होने से समन्वय में दिक्कतें होती हैं। नई परियोजना में सभी आफिस एक ही जगह लाने का प्रयास किया गया है।

मौजूदा संसद भवन को बने करीब सौ साल का समय होने जा रहा है। इसका वेंटिलेशन सिस्टम, विद्युत प्रणाली, आडियो-वीडियो सिस्टम तमाम तकनीकें पुरानी हैं। आज इमारतों में पाइप लाइनों और केबल के लिए डक्ट बनाए जाते हैं। पुरानी इमारतों में उनका इंतजाम नहीं था। बिजली से लेकर संचार, प्रसारण और संचार की पुरानी तकनीकें बदलनी चाहिए। कार्यालय प्रबंधन और सुरक्षा के नए सिस्टम लगाने की जरूरत है। मौजूदा संसद भवन भूकंप रोधी भी नहीं है। संसद के नए भवन का काम जारी है, जो अक्तूबर तक पूरा हो जाएगा।

औपनिवेशिक प्रतीक
12 दिसंबर 1911 को जॉर्ज पंचम के दिल्ली में हुए राज्याभिषेक के बाद अंग्रेज सरकार ने घोषणा की कि देश की राजधानी कलकत्ता से उठाकर दिल्ली लाई जाएगी। राजधानी बनाने के पहले नई दिल्ली की नगर-योजना बनाई गई और उस कॉम्प्लेक्स का नक्शा तैयार किया गया, जहां से राज-व्यवस्था का संचालन किया जाना था। इसके केंद्र में था वायसराय हाउस, जिसके सामने बना एक लंबा नयनाभिराम सेंट्रल विस्टा, जिसे इंद्रप्रस्थ तक जाना था। तब इंडिया गेट की योजना नहीं थी।

भारत के लोगों के मन में अंग्रेजी राज के प्रति वफादारी पैदा करने के लिए दिल्ली में ‘दरबार’ लगा और भारतीय परंपरा में राज्याभिषेक हुआ, जिसके लिए जॉर्ज पंचम खुद भारत आए थे। ‘दरबार’ शब्द का इस्तेमाल सोच-समझकर किया गया था। इस निर्माण के लिए मशहूर ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लैंडसीयर लुटियन्स और सर हरबर्ट बेकर की मदद ली गई। करीब 20 साल बाद 1931 में जाकर यह काम पूरा हुआ।

जिस समय यह योजना बन रही थी, तब पहला विश्व युद्ध शुरू नहीं हुआ था। उस युद्ध में 70,000 भारतीय सैनिक अंग्रेजी राज की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और उनके स्मारक के रूप में इंडिया गेट की अवधारणा ने जन्म लिया। उन सैनिकों के नाम इस स्मारक में खुदे हुए हैं। इसकी बुनियाद ड्यूक आफ कनॉट ने 1921 में रखी थी और 1931 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया।

शुरू में इंडिया गेट के सामने वाले चंदोवे या छतरी के नीचे जॉर्ज पंचम की एक प्रतिमा थी। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश दौर की दूसरी मूर्तियों के साथ हटाकर कॉरोनेशन पार्क में रख दिया गया। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीद सैनिकों की स्मृति में यहां स्मारक बनाया गया, जहां अमर जवान ज्योति जलती थी। अब यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित की गई है।

युद्ध स्मारक
कर्तव्य पथ का शुभारंभ करने के तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय-भावनाओं से जुड़ा एक काम किया था। 25 फरवरी, 2019 को उन्होंने राष्ट्रीय युद्ध-स्मारक का उद्घाटन करके देश की एक बहुत पुरानी मांग को पूरा किया। करीब 40 एकड़ क्षेत्र में फैला यह स्मारक इंडिया गेट के ठीक पीछे है।

इसमें देश के उन 25,942 शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई है, जिन्होंने सन 1962 के भारत-चीन युद्ध और पाकिस्तान के साथ 1947, 1965, 1971 और 1999 के करगिल तथा आतंकियों के खिलाफ चलाए गए विभिन्न आपरेशनों तथा श्रीलंका और संयुक्त राष्ट्र के अनेक शांति-स्थापना अभियानों में अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। अमर जवान ज्योति भी इस स्मारक में स्थानांतरित कर दी गई है।

यह असाधारण स्मारक है। अभी तक देश में कोई राष्ट्रीय युद्ध-स्मारक नहीं था। इंडिया गेट अंग्रेजों ने पहले विश्व-युद्ध (1914-1918) के शहीदों के सम्मान में बनाया था। बेशक भारतीय सैनिकों की कहानी हजारों साल पुरानी है। परंतु आश्चर्य है कि हमारे पास पहले विश्वयुद्ध की स्मृति में स्मारक था, आधुनिक भारत की रक्षा के लिए लड़े गए युद्धों का स्मारक नहीं।

नई दिल्ली का लुटियन्स जोन वस्तुत: अंग्रेजी-राज और अंग्रेजी आचार-विचार की निशानी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ इमारतों और मार्गों के नाम बदल गए। सेंट्रल विस्टा के केंद्रीय मार्ग पर किंग्सवे की जगह राजपथ का नामपट लग गया। राजपथ में अंग्रेजी राज की भावना भ्रमण करती थी, जिसे बदल कर अब कर्तव्य पथ कर दिया गया है।

इतिहासकार स्वप्ना लिडल ने अपनी पुस्तक ‘कनॉट प्लेस एंड मेकिंग आफ न्यू डेल्ही’ में लिखा है कि तत्कालीन वायसरॉय और गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने दिसंबर 1912 में लुटियंस को मांडू, लखनऊ और कानपुर भेजा, ताकि वे अपनी योजना में पूर्व और पश्चिम के तत्वों को शामिल कर सकें।

देश में कोई राष्ट्रीय युद्ध-स्मारक नहीं था। इंडिया गेट अंग्रेजों ने पहले विश्व-युद्ध (1914-1918) के शहीदों के सम्मान में बनाया था। बेशक भारतीय सैनिकों की कहानी हजारों साल पुरानी है। परंतु आश्चर्य है कि हमारे पास पहले विश्वयुद्ध की स्मृति में स्मारक था, आधुनिक भारत की रक्षा के लिए लड़े गए युद्धों का स्मारक नहीं।

अलबत्ता लुटियन्स ने भारतीय वास्तुकला के प्रति अपनी हिकारत को छिपाया नहीं था। कुछ लेखक उसे ‘ह्वाइट सुप्रीमेसिस्ट’ मानते हैं। बाद के वर्षों में लुटियन्स और बेकर के बीच मतभेद भी पैदा हो गए थे। बहरहाल अब नए संसद भवन और कर्तव्य पथ का आर्किटेक्चर भारतीय है।

अपनी पुस्तक ‘डेल्ही-इट्स मॉन्यूमेंट्स एंड हिस्ट्री’ में इतिहासकार पर्सीवल स्पीयर ने लिखा है कि इन इमारतों की ग्रीक शास्त्रीय शैली है, पर उनमें भीतरी काम भारतीय शैली का है, जैसे जाली, छतरी, छज्जे वगैरह। सचिवालय और वायसरॉय हाउस के स्तंभ सारनाथ की शैली के हैं।

खंभों पर हाथियों की मूर्तियों का इस्तेमाल भी भारतीय शैली में है। निर्माण का सारा काम भारतीय राज-मजदूरों ने ही किया। संसद भवन की इमारत डिजाइन करने में दोनों का हाथ था। यह गोलाकार इमारत मध्य प्रदेश के चौंसठ योगिनी मंदिर से प्रभावित लगती है।

Topics: भारत-पाकिस्तान युद्धBritish period after independenceप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीलुटियन्स जोनइंडिया गेट
Share9TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

विश्व में भारत का गौरव

कमला प्रसाद बिसेसर को सरयू का पवित्र जल सौंपते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो साभार: द हिन्दू)

राम मंदिर प्रतिकृति, गंगा और सरयू का पवित्र जल: पीएम मोदी का त्रिनिदाद की पीएम को उपहार

’21 हजार लगाओ, प्रतिदिन 1.25 लाख कमाओ’, क्या पीएम मोदी कर रहे निवेश योजना का प्रचार, जानें क्या है पूरा सच

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 मिशन के अपने अन्य साथियों के साथ

मिशन एक्सिओम-4 : अंतरिक्ष में छलांग ऊंची

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

संविधान हत्या दिवस:  प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में शामिल सभी योद्धाओं को सलाम किया

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies