नई दिल्ली स्थित ‘अशोक होटल’ को चूना लगा रहे हैं उसके ही अधिकारी। एक टेंट वाले को होटल परिसर में किराए पर जगह दी गई, लेकिन उसका किराया न मिलने पर भी टेंट के मालिक को एनओसी दे दिया गया। होटल को 14,33,700 रु- का हुआ नुकसान।
अधिकतर सरकारी संस्थान भ्रष्टाचार के कारण घाटे में जाते हैं। ऐसे ही भ्रष्टाचार का एक मामला नई दिल्ली स्थित ‘अशोक होटल’ का सामने आया है। बता दें कि यहां ठहरने के लिए 550 कमरे और कार्यक्रम के लिए सभागार हैं। जब भी सभागार में कोई कार्यक्रम होता है, तो उसके लिए कुर्सियां, टेबल, प्लेट और अन्य सामान किसी टेंट वाले से किराए पर लिया जाता है।
इसको देखते हुए 2014 में ‘मोहन टेंट पैलेस’ को होटल परिसर में ही 450 वर्गफुट जगह किराए पर दी गई। एक वर्गफुट का किराया 45 रु- प्रतिमाह तय किया गया। इस तरह हर महीने 450 वर्गफुट का किराया 20,250 रु- होता है। इस पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगा देने से एक महीने का किराया 23,895 रु- होता है। लेकिन ‘मोहन टेंट पैलेस’ ने 2019 तक किराए का एक पैसा भी होटल को नहीं दिया। यानी उसने पांच साल तक होटल की उस जगह पर अपना सामान रखा और उनसे करोड़ों रु- कमाए। इसके बावजूद उसने होटल की उस जगह का किराया नहीं दिया। पांच साल की कुल राशि होती है- 14,33,700 रु-। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसके बावजूद उस टेंट के मालिक को होटल की ओर से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) दे दिया गया। हमारे सूत्रों ने बताया कि यह सब होटल के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है। सूत्रों ने यह भी बताया कि होटल के कुछ अधिकारियों ने टेंट वाले से नगद राशि लेकर उसे एनओसी जारी कर दिया और होटल के खाते में एक पैसा भी नहीं गया।
यह भी आश्चर्य की बात है कि कभी न तो होटल की ओर से टेंट वाले को बिल भेजा गया और न ही टेंट वाले ने बिल दिया। बहुत दिनों तक इस घोटाले की जानकारी भी किसी को नहीं हुई। पर कहते हैं न कि जहां आग लगती है, वहां धुआं निकलता ही है। जब होटल के ही कुछ लोगों को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों को बताया। इसके बाद इसकी जांच निगरानी विभाग को दे दी गई है। लगभग चार महीने से जांच चल रही है, लेकिन उसकी गति इतनी धीमी है कि आरोपी सबूत मिटाने में सफल हो रहे हैं। इसलिए होटल के अनेक कर्मचारी और अधिकारी चाहते हैं कि जांच की गति तेज हो, ताकि जल्दी से जल्दी आरोपियों के विरुद्ध मामला चले और होटल का पैसा वापस आए।
उल्लेखनीय है कि इस होटल को 1956 में बनवाया गया था। होटल के बिल्कुल पास में प्रधानमंत्री का आवास है। इस कारण आप अंदाजा लगा सकते हैं कि होटल कितनी महत्वपूर्ण जगह पर है। यहां एक कमरे का किराया कम से कम 7,000 रु- और अधिक से अधिक 1,50,000 रु- प्रतिदिन है। इसके बावजूद यह होटल ज्यादातर समय घाटे में ही रहता है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह होटल 28 करोड़ रु- के घाटे में था। बताया गया कि इसका मुख्य कारण कोरोना था। वर्ष 21-22 में होटल को लगभग चार करोड़ रु- का लाभ हुआ है। हमारे सूत्र ने बताया कि यदि भ्रष्टाचार रुक जाए तो यह होटल कभी घाटे में जा ही नहीं सकता है। यहां सब दिन लगभग सारे कमरे भरे रहते हैं। यानी होटल ठीक-ठाक चल रहा है। इसके बावजूद घाटे में जाता है। शायद यही कारण है कि कई बार यह ‘अफवाह’ फैली है कि केंद्र सरकार इस होटल को भी निजी हाथों में देने वाली है। जैसे ही निजीकरण की बात सामने आती है होटल के कर्मचारी और अधिकारी परेशान हो उठते हैं। बता दें कि इस समय इस होटल में लगभग 1,500 लोग काम करते हैं। इनमें करीब 200 लोगों की पक्की नौकरी है, बाकी ठेके पर हैं।
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