देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून सहित कई शहरों में तख्त डालकर नारियल पानी बेचने वालों की अचानक बाढ़ सी आ गई है। ये नारियल बेचने वाले कहां से आकर यहां अवैध कब्जे कर रहे हैं, ये किसी ने जानने की कभी कोशिश नहीं की। ये सभी मुस्लिम हैं और जहां नारियल बेचते हैं, वहीं पीछे अपना आशियाना बना ले रहे हैं। ये लोग स्थानीय रोजगार को भी प्रभावित कर रहे हैं।
देहरादून में हर सड़क पर एक पेड़ के नीचे एक तख्त बिछा हुआ और उस पर हरा नारियल बिकता हुआ दिखाई देगा। इन नारियल वालों का सरगना रियाज नाम का शख्स है जो देहरादून और हरिद्वार जिले में सड़कों पर अवैध कब्जे कर नारियल का धंधा चला रहा है। तख्त पर जो युवक बैठा होगा वह मूल रूप से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर आदि क्षेत्र का मुस्लिम युवक होगा। नारियल के आगे पेटीएम का एक बार कोड भी होगा। इस बार कोड के जरिए पता चल जाता है कि बेचने वाले का असल नाम क्या है? वैसे ये युवक अपना नाम पिंटू, राजू, राज, अमन, छोटू बताएंगे।
ऐसे ही ये नारियल बेचने वाले उधम सिंह नगर, नैनीताल, पौड़ी और चंपावत जिलों में भी सड़कों के किनारे बैठे हुए हैं। इनकी संख्या अब हजारों में पहुंचती जा रही है। सवाल ये उठता है कि कौन इन्हें यहां बसा रहा है या बसने देता है? नगर निगम, नगर परिषद हो या जिला पंचायत, सभी के नियम कानून ये कहते हैं कि यदि कोई तख्त डाल कर कारोबार कर रहा है तो वो अवैध माना जायेगा जोकि अतिक्रमण की श्रेणी में आता है। नगर निकाय फेरी वालों को कारोबार की अनुमति देता है उसके लिए पहिए वाली रेहड़ी या रिक्शा जरूरी होना चाहिए और इसकी पर्ची निकाय द्वारा काटी जाती है। तख्त डाल कर नारियल बेचने वाले आखिरकार किसकी शह अपना कब्जा कर रहे हैं? इनका न तो किसी प्रकार का सत्यापन करवाया जाता है और न हीं इनके पास फूड लाइसेंस है, जबकि किसी भी प्रकार की कच्ची-पकी खाद्य सामग्री बेचने के लिए फूड लाइसेंस आवश्यक होता है। फल सब्जी पर मंडी शुल्क लगाया जाता है, लेकिन इन नारियल बेचने वालो ने शायद कभी मंडी शुल्क दिया हो। जानकारी के मुताबिक केरल से नारियल का ट्राला लेकर दिल्ली आजादपुर मंडी पहुंचता है। वहां से छोटे ट्रकों और जीपों में भरकर नारियल हर शहर में डिलीवरी देता हुआ जाता है। इस धंधे की पूरी चेन बनी हुई है, जिसे मुस्लिम लोग ही संचालित करते हैं। जिस शहर में कहीं कोई विवाद होता है ये अपने खतरनाक हथियार लेकर मौके पर पहुंच जाते हैं।
स्थानीय रोजगार पर डाका
नारियल ही नहीं, इनके साथ धीरे-धीरे अनानास बेचने वाले फिर अन्य फल सब्जी बेचने वाले आकार डेरा जमाने लगे हैं । ये मुस्लिम युवक नारियल तख्त के पीछे पहले फोल्डिंग पलंग डालते हैं फिर छत पर पन्नी फिर झोपड़ी लगाने लगते हैं और धीरे-धीरे अपने बीवी व बच्चों को लेकर बस जाते हैं। ये मुस्लिम युवक यूपी से आकर स्थानीय रोजगार पर भी डाका डाल रहे हैं। पहले यही नारियल और फल सब्जी स्थानीय लोग बेचा करते थे। जिनमें स्थानीय लोगों के साथ-साथ साहू, मौर्य, जायसवाल, गुप्ता शामिल थे। अब इस व्यापार पर इन्हीं का वर्चस्व हो गया है। उत्तराखंड में जनसांख्यकीय बदलाव होने की खबर सुर्खियों में है, यह इन्ही कारणों से हो रहा है। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड से लगते यूपी के मुस्लिम बहुल जिलों के मुस्लिम लोग उत्तराखंड में बस कर जनसंख्या असंतुलन पैदा कर रहे हैं। राज्य के देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों की मुस्लिम आबादी तीस फीसदी को पार कर गई है, जबकि राज्य बनने के समय ये आबादी चौदह प्रतिशत से भी कम थी। राज्य गठन के समय से अब तक राज्य की आबादी बीस लाख से ज्यादा बढ़ गई है, जिसमें से अस्सी फीसदी मुस्लिम आबादी ने उत्तराखंड में घुसपैठ की है। ऐसे आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस के हरीश रावत शासनकाल में सबसे ज्यादा मुस्लिमों की घुसपैठ हुई थी।
चल रही है साजिश
देहरादून में वीर सावरकर संगठन के प्रमुख कुलदीप स्वेडिया का कहना है कि नारियल बेचने वाले सहारनपुर से आकर एक साजिश के तहत तख्त डालकर अवैध कब्जे कर रहे हैं। यह जमीन जिहाद है और स्थानीय निकाय के कर्मचारी, पार्षद इन्हें संरक्षण देते आए हैं। हल्द्वानी में बीजेपी नेता विनीत अग्रवाल ने ये मुद्दा निगम में उठाया था, उस वक्त मुस्लिम कांग्रेसी पार्षद एक हो गए और उन्होंने निगम में हंगामा कर दिया।
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