अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मजबूती को देखना हो तो सिर्फ इसकी अमेरिकी शाखा के कुछ आंकड़े देख लें। फोर्ब्स पत्रिका की 2021 की सूची के हिसाब से सॉल्वेशन आर्मी अमेरिका की ऐसी शीर्ष सौ संस्थाओं में तीसरे स्थान पर है। पत्रिका के अनुसार सॉल्वेशन आर्मी को सिर्फ एक वर्ष में कुल 2,371 मिलियन डॉलर (17,634 करोड़ रुपये) का चंदा मिला। वर्ष 2021 में इसका सकल राजस्व 4,158 मिलियन डॉलर यानी 30,924 करोड़ रुपये था। इंटरनेशनल सॉल्वेशन आर्मी ट्रस्ट ब्रिटेन के रिलायंस बैंक का भी मालिक है। रिलायंस बैंक आनुषांगिक कंपनी के तौर पर इसके वित्तीय लेन-देन का प्रबंधन करता है।
सॉल्वेशन आर्मी कन्वर्जन के लिए समर्पित ईसाइयों का एक वैश्विक है जिसकी पहुंच पूरी दुनिया समेत भारत के कोने-कोने में है। खुद इन्हीं का दावा है कि, सॉल्वेशन आर्मी के पास इस समय पूरी दुनिया में 17,000 पदाधिकारी हैं जिन्हें मिनिस्टर्स आफ रिलीजन या अफसर कहते हैं।
इसकी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मजबूती को देखना हो तो सिर्फ इसकी अमेरिकी शाखा के कुछ आंकड़े देख लें। फोर्ब्स पत्रिका की 2021 की सूची के हिसाब से सॉल्वेशन आर्मी अमेरिका की ऐसी शीर्ष सौ संस्थाओं में तीसरे स्थान पर है। पत्रिका के अनुसार सॉल्वेशन आर्मी को सिर्फ एक वर्ष में कुल 2,371 मिलियन डॉलर (17,634 करोड़ रुपये) का चंदा मिला। वर्ष 2021 में इसका सकल राजस्व 4,158 मिलियन डॉलर यानी 30,924 करोड़ रुपये था। इंटरनेशनल सॉल्वेशन आर्मी ट्रस्ट ब्रिटेन के रिलायंस बैंक का भी मालिक है। रिलायंस बैंक आनुषांगिक कंपनी के तौर पर इसके वित्तीय लेन-देन का प्रबंधन करता है।
भारत में गतिविधि
अपनी कन्वर्जन गतिविधियों के लिए सॉल्वेशन आर्मी ने भारत को छह हिस्सों में विभाजित कर रखा है।
इन छह क्षेत्रों में पहला पूरा पूर्वोत्तर, दूसरा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, तीसरा तमिलनाडु व पुद्दुचेरी, चौथा राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पांचवां केरल और छठे हिस्से जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और बंगाल शामिल हैं।
इन सभी छह क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों के समन्वय के लिए इसका अपना एक राष्ट्रीय सचिवालय है और ‘कॉन्फ्रेंस आफ लीडर्स’ इस सचिवालय की गतिविधियों को निर्देशित करते हैं। पूरा प्रशासनिक ढांचा मानो अंग्रेजी फौज से ही उठाया गया है। प्रत्येक क्षेत्र के पास अपने कैडेट, अफसर, पलटन, सीमा चौकी, कर्मचारी और सैनिक हैं और इसके साथ ही स्कूलों और कॉलेजों जैसी तमाम संस्थाओं का एक विशालकाय तंत्र है।
स्वतंत्रता के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव यह आया है कि अब वे कन्वर्जन की अपनी गतिविधियों को छद्म आवरण में छिपाना चाहते हैं। उनकी वेबसाइट पर विभिन्न भाषाओं में ईसाइयत की शिक्षाओं का कोई जिक्र नहीं है। अपनी पत्रिका ‘वार क्राई’ और अपनी ईयरबुक को उन्होंने ‘पेवाल्स’ के पीछे छिपा लिया है। यानी इसे सिर्फ वही देख सकते हैं जो इसके ग्राहक या चंदा दाता हैं। फिर भी इतने सार्वजनिक दस्तावेज उपलब्ध हैं जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कन्वर्जन की गतिविधियां जारी हैं। सार्वजनिक रूप से सॉल्वेशन आर्मी की जो एकमात्र ईयरबुक उपलब्ध है, उसमें विभिन्न स्थानों पर कन्वर्जन का उल्लेख है।
यह 1600 समितियां भी चलाता है जिसके तहत 150 के लगभग स्कूल और कॉलेज हैं। गास्पेल शिक्षाएं यानी ‘सुसमाचार्र’ एवं ‘ईसा मसीह के जीवन चरिर्त’ की लगभग 20 भाषाओं में शिक्षा की जाती है। साथ ही यह संगठन आठ भाषाओं में 25 पत्रिकाएं भी प्रकाशित करता है। फिलहाल उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम खाता बही 2018-19 की है। इसके अनुसार उसका सालाना बजट 250 करोड़ रुपये है।
2021 में इस संगठन के पास एफसीआरए के तहत पांच अलग-अलग पंजीकरण थे। इनमें दो तमिलनाडु में और एक-एक दिल्ली, महाराष्ट्र और केरल में थे। इन सभी को एक साल में 58 करोड़ रुपये का विदेशी चंदा मिला। आश्चर्य की बात है कि उनकी वेबसाइट पर आपको उनके सामाजिक कार्यों की बहुत मामूली जानकारी मिलेगी। वे बस एक लाइन में कहते हैं, ‘व्यक्तिगत एवं पारिवारिक सलाह और शिक्षा युवा पीढ़ी को भविष्य की ओर आत्मविश्वास के साथ बढ़ने के योग्य बनाती है।’
क्या यह इसलिए कि उसके सारे ‘सामाजिक कार्य’ एक साध्य के लिए केवल साधन हैं? क्या यह इसलिए कि उनका अंतिम ध्येय लोगों को कन्वर्ट करना है?
सॉल्वेशन आर्मी का सिपाही बनने से पहले किसी को भी एक वचनबद्धता देनी होती है कि, ‘वह जीसस के सुसमाचार को लोगों तक पहुंचाएगा और लोगों को जीसस की शरण में लाने के लिए सभी संभव प्रयास करेगा।’
कन्वर्जन का इतिहास
सॉल्वेशन आर्मी ने भारत में 1882 में दस्तक दी। यह वह दशक था जब फिरंगियों की सरकार ने देश के कुछ समुदायों को ‘आपराधिक समुदाय’ या जरायमपेशा घोषित करने का निर्णय लिया था। इसके तहत इन समुदायों के लोगों को जबरन इकट्ठा कर एक अलग बस्ती में रहने को विवश किया गया। समूह के बालिग पुरुषों को हर हफ्ते स्थानीय थाने या चौकी में हाजिरी बजानी पड़ती थी।
सॉल्वेशन यानी ‘मुक्ति’ दिलाने वाली सेना के पास यह लोगों को मुक्ति दिलाने का स्वर्णिम मौका था। अंग्रेजों ने इन सभी 27 बस्तियों के प्रबंधन का जिम्मा सॉल्वेशन आर्मी को सौंप दिया और यहां के कुल 10,060 लोगों को उनके हवाले कर दिया। और उसने इस अवसर का कैसे फायदा उठाया?
तरीके बहुत सरल थे। अगर सॉल्वेशन आर्मी का मैनेजर किसी को यह प्रमाणपत्र दे दे तो वह व्यक्ति कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन मैनेजर यह प्रमाणपत्र तभी देगा जब वह व्यक्ति कन्वर्ट होकर ईसाई बन जाए।
सॉल्वेशन आर्मी ने ब्रिटिश साम्राज्य के इस समर्थन का फायदा उठाते हुए दिन दूनी-रात चौगुनी रफ्तार से विस्तार किया। सिर्फ एक साल बाद जुलाई 1893 में आस्ट्रेलिया में एक भाषण में सॉल्वेशन आर्मी के ‘मेजर’ मूसा भाई ने ताल ठोंकी कि भारत में इस समय हमारे दस हजार सदस्य हैं और इसके अलावा और 14000 लोगों को कन्वर्ट कर ईसाई बनाया जाचुका है।
सॉल्वेशन आर्मी के भारत में क्रियाकलापों पर इसके एक प्रमुख सदस्य एफ. बूथ टकर ने अपनी किताब में हिंदुओं को ईसाई बनाने के कई प्रसंग और दस्तावेज साझा किए हैं।
हम देख सकते हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य के समय सॉल्वेशन आर्मी न केवल खुलेआम कन्वर्जन के काम में लिप्त थी बल्कि गर्व से इसका ढिंढोरा भी पीटती थी।
1947 के बाद
स्वतंत्रता के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव यह आया है कि अब वे कन्वर्जन की अपनी गतिविधियों को छद्म आवरण में छिपाना चाहते हैं। उनकी वेबसाइट पर विभिन्न भाषाओं में ईसाइयत की शिक्षाओं का कोई जिक्र नहीं है। अपनी पत्रिका ‘वार क्राई’ और अपनी ईयरबुक को उन्होंने ‘पेवाल्स’ के पीछे छिपा लिया है। यानी इसे सिर्फ वही देख सकते हैं जो इसके ग्राहक या चंदा दाता हैं। फिर भी इतने सार्वजनिक दस्तावेज उपलब्ध हैं जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कन्वर्जन की गतिविधियां जारी हैं। सार्वजनिक रूप से सॉल्वेशन आर्मी की जो एकमात्र ईयरबुक उपलब्ध है, उसमें विभिन्न स्थानों पर कन्वर्जन का उल्लेख है।
‘प्रादेशिक कमांडर द्वारा चोडावरम में नई पलटन के उद्घाटन के दिन 70 सैनिक भर्ती हुए। कोथापालेम गांव में नई पलटन के उद्घाटन के अवसर 57 सैनिक भर्ती हुए। इनमें छह दूसरे धर्मों के थे जो कन्वर्ट हुए।’ (पृष्ठ 128)
‘हिमालय की तलहटी में सेवारत अफसरों ने सॉल्वेशन आर्मी के सदस्यों को अपने मत में प्रवीण करने और उन्हें आगे की सेवाओं के लिए तैयार करने के उद्देश्य से सैनिकों की एक रैली निकाली। इसमें शामिल 156 सैनिकों में से ज्यादातर नव कन्वर्टेड ईसाई थे।’ (पृष्ठ 132)
‘वार क्राई’ के 2016 के अंक में किसी सोरनम पाल का आलेख छपा। इसमें वे लिखती हैं :
‘मैं एक गैर ईसाई परिवार में पैदा हुई और पली-बढ़ी जहां बहुत से देवी-देवताओं की पूजा का चलन था। प्रभु का धन्यवाद जिन्होंने मुझे परिवार में पहली पीढ़ी की ईसाई होने के लिए चुना।’ (पृष्ठ 10)
कन्वर्जन के कुछ तरीके तो परिष्कृत हैं। लेकिन बहुत से तो सीधे-सीधे दावा करते हैं कि ‘हमारी चंगाई सभा में आइए और अंधा देखे, पंगु गिरि लंघे जैसे चमत्कारों का लाभ उठाइए’। जालंधर की शाखा का यह दावा है।
250 करोड़ रुपये के बजट वाली इस ‘सेना’ को महज एक साल में 58 करोड़ का विदेशी चंदा मिलता है। अगर यह गृह मंत्रालय के रडार पर आ गई तो ‘सेना’ अपनी ‘वार क्राई’ के भोंपू से तुंरत चीख-पुकार शुरू कर देगी कि भारत में ‘ईसाइयों का उत्पीड़न हो रहा है’।
(डाटामैप्स पर छपे अंग्रेजी लेख से अनूदित)
(फ्राविया लेखक का छद्म नाम है और वे गुमनाम ही रहना चाहते हैं।
यह नाम फ्राविया की स्मृति में चुना गया है जो सूचना की स्वतंत्रता के
महान पैरोकार थे। दुर्लभ संयोग है कि लेखक भी फ्राविया की ही
तरह इतिहास और डिजिटल तकनीकी के प्रति जुनून साझा करते हैं।)
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