तारीख थी 11 सितम्बर 1893! उस वक्त पश्चिम के सारे देशों की नजर थी भारत से आए भगवाधारी 30 साल के युवा पर। मुख पर ज्ञान का तेज और दिखने में बिलकुल साधारण! स्वामी विवेकानंद स्टेज की ओर बढ़े और कुछ समय शांत रहने के बाद बोले- “अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों” स्वामी विवेकानंद के ये 5 शब्द इतिहास के पन्नों में वो शब्द बन गये जिसने आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो को पूरे दो मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने पर मजबूर कर दिया।
इन शब्दों ने ये साफ कर दिया कि वे उस देश से आते हैं जहां वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार और विचारधारा है। 7000 लोग केवल इसलिए स्वामी विवेकानंद के इन शब्दों से मंत्र-मुग्ध हो गए क्योंकि उन्हें लगा ही नहीं था की हजारो मील दूर से आया कोई व्यक्ति उन्हें अपना भाई और बहन कहकर संबोधित कर सकता है।
स्वामी विवेकानंद ने आगे कहा- मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को अपने शरण में रखा है। आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है, मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।
आज ही के दिन 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो की भूमि पर भारत के ज्ञान,संस्कृति व दर्शन को अपने ऐतिहासिक भाषण के माध्यम से विश्व के सामने रखा था, जो हर देशवासियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। स्वामी विवेकानंद का ये वो भाषण है जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया।
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