‘पांचजन्य’ से बात करते हुए टेरॉन ने बताया, ‘‘मैंने 2003 में 800 रुपये में विद्यालय की स्थापना कर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। उस समय एक डेस्क, बेंच और चार छात्र थे। अब हम 300 छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जिनमें 65 हमारे पास छात्रावास में रहते हैं। हम कोई शुल्क नहीं लेते। यहां विद्यार्थियों को पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा दी जाती है।
मेघालय की सीमा से सटे असम के गुवाहाटी शहर के बाहरी इलाके में एक गांव है- पमोही। इसका प्राकृतिक सौंदर्य अप्रतिम है। यहां पारिजात अकादमी नामक एक अद्वितीय शिक्षण संस्थान क्षेत्र के वंचित वनवासी छात्रों को शिक्षित कर उनके जीवन में खुशबू बिखेर रहा है। पारिजात एक सुगंधित जंगली फूल होता है, जो असम में पाया जाता है। इस संस्थान की शुरुआत उत्तम टेरॉन ने 2003 में की थी। इसने अब तक हजारों गरीब और वंचित वनवासी छात्रों को बुनियादी शिक्षा प्रदान की है।
‘पांचजन्य’ से बात करते हुए टेरॉन ने बताया, ‘‘मैंने 2003 में 800 रुपये में विद्यालय की स्थापना कर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। उस समय एक डेस्क, बेंच और चार छात्र थे। अब हम 300 छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, जिनमें 65 हमारे पास छात्रावास में रहते हैं। हम कोई शुल्क नहीं लेते। यहां विद्यार्थियों को पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा दी जाती है।
छात्रावास भी नि:शुल्क है। जिन अभिभावकों को लगता है कि वे कुछ प्रयास कर सकते हैं, वे दान देने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए कुछ बच्चों के माता-पिता शुल्क के तौर पर प्रतिमाह 100 से 150 रुपये देते हैं। लेकिन यह भी अनिवार्य नहीं है। हम अमीरों और संगठनों से दान की उम्मीद करते हैं और उनके द्वारा दिए गए दान ही निर्भर हैं। कोई भी व्यक्ति हर माह 425 रुपये देकर एक गरीब और वंचित बच्चे को शिक्षित करने में अपना योगदान दे सकता है।’’
पारिजात अकादमी में प्री-नर्सरी से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। इसे असम सरकार के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है।
असमिया माध्यम वाले इस विद्यालय में लगभग 20 शिक्षक हैं। इनमें अधिकांश स्वयंसेवक हैं। पारिजात अकादमी उन्हें मासिक वेतन के रूप में एकमुश्त राशि देती है और वे गरीब-वंचित आदिवासी विद्यार्थियों को शिक्षित बनाने में योगदान देकर प्रसन्न हैं।
टेरॉन कहते हैं, ‘‘हम कक्षा 8 से हथकरघे से कपड़ा तैयार करने जैसी व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करते हैं ताकि छात्र शिक्षित होने के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनें। हम उन्हें तकनीकी शिक्षा के साथ कंप्यूटर शिक्षा भी दे रहे हैं। इस विद्यालय से पढ़ाई करने वाले कई छात्र स्थानीय उद्योगों में कार्यरत हैं और खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं।’’ टेरॉन पारिजात अकादमी को वंचित आदिवासी छात्रों के लिए मुफ्त शिक्षा का एक मॉडल बनाना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि चूंकि उनका विद्यालय पक्षी अभयारण्य ‘गहरी बील’ और 12वें ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर मंदिर के पास है, इसलिए वे एक पर्यटक सर्किट बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं, ताकि छात्र पर्यटन के क्षेत्र में भी ज्ञानार्जन कर और रोजगार के अवसर तलाश सकें। महत्वपूर्ण बात यह है कि पारिजात अकादमी के नेक प्रयासों को देखते हुए उसे विभिन्न लोगों और संगठनों से सहयोग और समर्थन मिल रहा है।
टेरोन बताते हैं कि वे छात्रों को प्रकृति के करीब रखकर उन्हें शिक्षित करने का प्रयास करते हैं। चूंकि 80 प्रतिशत छात्र वनवासी हैं, इसलिए वे स्वाभाविक तौर पर प्रकृति के करीब हैं। यही नहीं, छात्रों के दिमाग को तरोताजा रखने के लिए विद्यालय में शारीरिक शिक्षा पर भी काफी जोर दिया जाता है।
एक स्थानीय पत्रकार धर्मेंद्र कलिता कहते हैं कि हमने पारिजात अकादमी को गरीब वनवासी छात्रों के लिए एक शैक्षिक केंद्र के रूप में विकसित होते देखा है। पारिजात अकादमी वास्तव में वनवासी समाज की सेवा कर रही है। इसमें न केवल उन्हें मुफ्त शिक्षा दी जाती है, बल्कि उन्हें औपचारिक शिक्षा के लिए प्रेरित भी करती है जो सबसे महत्वपूर्ण है।
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