शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल की सलाखों के पीछे ममता सरकार के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी कि 201 मुखौटा कंपनियों में रिक्शा चालक, दिहाड़ी श्रमिक भी निदेशक थे। प्रवर्तन निदेशालय की जांच में इसका बात का खुलासा हुआ है। ईडी ने करीब 50 ऐसे लोगों से पूछताछ की है। है। ईडी की जांच में पता चला है कि पार्थ चटर्जी के विधानसभा क्षेत्र में कम पढ़े और दैनिक श्रमिक जब किसी सरकारी सुविधा अथवा किसी प्रमाणपत्र आदि बनवाने के लिए उनके कार्यालय जाते थे, तभी उनके आधार, पैन, मतदाता पहचान पत्र की सारी जानकारी ले ली जाती थी। उन सभी दिहाड़ी मजदूरों और गरीबों का दावा है कि वे नहीं जानते कि वे किसी कंपनी के निदेशक हैं। खबर है कि इन कंपनियों के जरिए शिक्षक घोटाले की भारी भरकम काली कमाई को सफेद किया गया।
किसी को 10 हजार तो किसी को कुछ भी नहीं
खबरों के अनुसार जिन लोगों को मुखौटा कंपनियों में निदेशक बनाया गया, उन्हें इसके एवज में कभी कोई पैसा नहीं दिया गया। कुछ ऐसे भी लोग मिले हैं, जिन्हें कुछ महीनों से 10 से 15 हजार रुपये मिले हैं। जबकि ऐसे लोगों को यह नहीं पता था कि यह रकम उन्हें किसलिए मिली है। ईडी ने जांच में पाया है कि उन सभी फर्जी कंपनियों को बनाने में पार्थ के नजदीकी कोलकाता नगर निगम के एक पार्षद और अलीपुर कोर्ट के एक वकील शामिल हैं।
कागजों में हुआ गड़बड़झाला
जो जानकारी निकलकर सामने आ रही है, उसके अनुसार कागजों में भी खूब गड़बड़झाला हुआ है। गरीब और दिहाड़ी श्रमिकों को कंपनी का निदेशक बनाने के लिए उनसे पैन कार्ड ले लिया गया। ज्यादातर मामलों में गरीब लोगों की उंगलियों के निशान का इस्तेमाल किया गया है। जांच में पता चला कि जिन लोगों के पास पैन कार्ड नहीं थे, उनके पैन कार्ड के लिए आवेदन किसी और के अंगूठे के निशान से तैयार किया गया था। यदि पैन कार्ड आवेदन में अंगूठे के निशान का उपयोग किया जाता है, तो अदालत से नोटरी प्रमाण पत्र जमा करना होता है। अब संदेह यह है कि कुछ मामलों में नकली नोटरी प्रमाणपत्रों का भी इस्तेमाल किया गया हो सकता है। इसलिए पूरे मामले की जांच की जा रही है।
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