हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का ऐतिहासिक मेला इस साल पांच से 11 अक्टूबर तक आयोजित किया जा रहा है। इस मेले में जिले के 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया गया है। कुल्लू के दशहरे मेले में जिले के विभिन्न मंदिरों में विराजमान देवी और देवताओं को सम्मिलित होने के लिए निमंत्रण भेजे जाने की परंपरा रही है। माना जाता है कि यहां सभी देवियां और देवता दशहरा मनाने आते हैं। इन्हें तहसीलदार, उप जिलाधिकारी के माध्यम से निमंत्रण भेजा जाता है। प्रशासन और देव समाज के लोग मिलकर इसकी व्यवस्था करते हैं।
दशहरा उत्सव समिति के पदाधिकारी आशु गर्ग ने बताया कि कोविड से पहले दशहरे के उत्सव 332 में से 282 देवियां-देव यहां पहुंचे थे। अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव देव-मानस के लिए ही नहीं, देवताओं के मिलन के लिए भी जाना जाता है। दशहरा उत्सव में प्रतिष्ठित देवताओं से उनके शिविरों में मिलने के लिए घाटी के देवी-देवता भी यहां एकत्र होते हैं। देव मिलने के भी अपने नियम होते हैं। बड़े देवताओं से मिलने से पहले बाकायदा समय लिया जाता है। यहां तक देवता अपना दुखड़ा भी सुनाते हैं। कई देवताओं का सालभर बाद यहीं दशहरे में मिलन होता है। शिविर में देवताओं से आशीर्वाद लेने भी इस साल बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।
देवभूमि में अध्यात्म की दृष्टि से कुल्लू का दशहरा मेला दरअसल देव-देवियों के मिलन का अवसर होता है। ये एक अलौकिक और अद्भुत नजारा होता है। लोग यहां अपने देव-देवियों के आशीर्वाद लेने के लिए बकायदा समय लेते हैं।
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