भारत के बंटवारे के समय लगभग 30,00,000 लोग मारे गए थे। विश्व के इतिहास में इतना बड़ा नरसंहार और कहीं नहीं हुआ होगा। मारे गए लोगों में अधिकतर हिंदू थे। यही कारण है कि भारत के तत्कालीन नेतृत्व ने कथित ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ को बढ़ावा देने के लिए इस नरसंहार की कभी चर्चा तक नहीं होने दी। इसलिए लोग इस नरसंहार को लगभग भूल चुके थे।
पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि अब हर वर्ष 14 अगस्त का दिन ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। उसी का परिणाम है कि इस वर्ष पूरे भारत में 14 अगस्त को विभाजन स्मृति दिवस पर कार्यक्रम हुए। वहीं ‘पाञ्चजन्य’ ने विभाजन पर एक विशेषांक ‘खून के आंसू’ प्रकाशित किया और ‘विभाजन की विभीषिका…’ शीर्षक से एक फिल्म बनाई। इसे ‘पाञ्चजन्य’ के यूट्यूब चैलन @panchjanya पर हजारों लोग देख चुके हैं। उत्तराखंड के रुद्रपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में इस फिल्म को बड़ी स्क्रीन पर दिखाया गया। फिल्म को देखकर लोग बहुत ही भावुक हो गए।
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा (एनजीएमए) में भी यह फिल्म दिखाई गई। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी, संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल, मीनाक्षी लेखी सहित बड़ी संख्या में आम जन उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि प्रदेश के सभी 75 जनपदों, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य प्रमुख स्थानों पर इस फिल्म को दिखाया जाएगा। कई जगह दिखाई भी जा चुकी है।
स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर भी पाञ्चजन्य ने एक फिल्म बनाई है-‘स्वराज्य : भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की अनकही कहानी।’ यह प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक श्री जे. नंदकुमार की पुस्तक ‘स्वराज @75’ पर आधारित है। इसमें भारत के स्वातंत्र्य समर में अपना अमूल्य योगदान देने वाले उन लाखों वीरों की गाथा समाहित है,
30 मिनट की इस फिल्म में जब विभाजन के भुक्तभोगी अपने दर्द को बताते हैं, तो पत्थर दिल व्यक्ति की आंखें भी डबडबा जाती हैं। फिल्म के प्रारंभ में विभाजन के भुक्तभोगी वीरभान खेड़ा नम आंखें लिए बताते हैं, ‘‘उस दिन को याद करते हैं, तो गला भर आता है। हमारे साथ जो गुजरा वह किसी दुश्मन के साथ भी न गुजरे।’’ फिल्म में ऐसे लगभग 10 लोगों की आपबीती दिखाई गई है।
फिल्म में बताया गया है कि पाकिस्तान बनाने की गहरी साजिश रचने में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल सबसे प्रमुख व्यक्ति थे। मोहम्मद अली जिन्ना, मुस्लिम लीग आदि ब्रिटेन के प्यादे भर थे। फिल्म में यह भी बताया गया है कि कांग्रेस ने पाकिस्तान की मांग करने वालों के सामने घुटने टेक दिए थे।
कुल मिलाकर यह फिल्म अपने आप में अद्वितीय है। इसके जरिए नई पीढ़ी को यह बताने का प्रयास किया गया है कि अपने इतिहास को मत भूलो, क्योंकि जो समाज इतिहास से सबक नहीं लेता है, उसका विनाश तय है।
स्वराज के सोपान
स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर भी पाञ्चजन्य ने एक फिल्म बनाई है-‘स्वराज्य : भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की अनकही कहानी।’ यह प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक श्री जे. नंदकुमार की पुस्तक ‘स्वराज @75’ पर आधारित है। इसमें भारत के स्वातंत्र्य समर में अपना अमूल्य योगदान देने वाले उन लाखों वीरों की गाथा समाहित है, जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए खुद को होम कर दिया।
कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक के शहरों और देहातों से निकले इन वीर हुतात्माओं के उस अमूल्य योगदान की चर्चा है, जिनके बारे में शायद ही किसी इतिहास ग्रंथ या पाठ्य पुस्तक में उल्लेख मिलता हो।
फिल्म में दर्शाया गया है कि वीर सावरकर पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 के समर को भारत का प्रथम स्वातंत्र्य समर कहा था।
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