ईश्वर दास महाजन
सकरगढ़, पाकिस्तान
बंटवारे के वक्त नागपुर में संघ का तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा था। इस बीच पाकिस्तान से हिन्दुओं के पलायन की खबरें आनी शुरू हुई। संघ अधिकारियों ने वर्ग को जल्दी समाप्त कर दिया ताकि सीमापार के स्वयंसेवक अपने परिवार की मदद कर सकें।
मैंने देखा कि पंजाब से लेकर पाकिस्तान में रहने वाले स्वयंसेवकों ने जान की बाजी लगाकर हिंदुओं की मदद की। अनेक बलिदान भी हुए। लेकिन ना तो स्वयंसेवकों के कदम ठिठके और ना ही डरे।
लोग ट्रेन, नाव, बैलगाड़ियों और पैदल चलकर अमृतसर पहुंच रहे थे। इन सबकी आपबीती थी। किसी का बेटा मारा गया था तो किसी की पत्नी का अपहरण कर लिया गया था तो किसी के पिता को आंखों के सामने गोली से उड़ा दिया था।
स्वयंसेवक इन सभी परिवारों की हरसंभव मदद कर रहे थे।
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