गणपतराय सतीजा
नौतक, मियांवाली नगर, पाकिस्तान
बहुत ही भयानक दौर था वह। मैं सरकारी स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ता था। पाकिस्तान बना तब मुसलमान हिंदुओं को लूटने और मारने लगे। उस समय मेरे चाचाजी 30 साल के थे। मुसलमानों ने उनको एक दिन दोपहर के समय पकड़ लिया और बोला कि मुसलमान बन जाओ तो तुम्हें छोड़ देंगे।
चाचाजी ने कहा कि मैं मुसलमान नहीं बनूंगा। इसके बाद उन्हें तपती रेत के अंदर जिंदा दबाकर मार दिया गया। एक दिन कुछ मुस्लिम हमलावर आए और उन्होंने सैकड़ों हिंदुओं को काट दिया।
मेरे परिवार के लोग ऐसी जगह छिपे थे कि वे हमें देख नहीं पाए। इसलिए हम बच गए। हमलावरों ने पीर की हवेली के दरवाजे भी खुलवाए और ज्यादातर हिंदू महिलाओं को अपने साथ ले गए। उस दिन बहुत हिंदू मारे गए। जो बचे, वे नंगे पांव और खुले बदन तहसील बक्खर पहुंचे। वहां संघ के स्वयंसेवकों ने हमारी बड़ी मदद की। बक्खर में एक महीना रहे। फिर मियांवाली नगर लाए गए। यहां भी हम पर हमले हुए।
अंत में भारत आने के लिए एक दिन रेलगाड़ी में बैठे। रास्ते में गाड़ी में भी काट-मार की गई। हम लोगों के आगे जो गाड़ी भारत जा रही थी उसमें कोई भी जिंदा नहीं बचा था। हमारी गाड़ी में केवल एक चौथाई लोग जिंदा बचे थे।
दो दिन बाद किसी तरह जब अटारी पहुंचे तब जान में जान आई। दो दिन के भूखे-प्यासों को अटारी में खाना मिला। यहां से जालंधर कैंप में आए। फिर कुरुक्षेत्र शिविर भेज दिया गया। मेरे पास उस समय एक पैसा नहीं था। कई साल तक कंगाली की हालत रही। बाद में अपनी मेहनत से घर-द्वार बनवाया और बच्चों को भी पढ़ाया। आज बच्चे अमेरिका में हैं। ल्ल
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