बलूचों के मामले में इनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। लाखों लोग गायब कर दिए गए, हजारों मार दिए गए, कभी यहां, कभी वहां से लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला चलता ही रहा, एक के बाद एक सामूहिक कब्रें मिलती रहीं, लेकिन ये अदालतें खामोश रहीं। इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इसलिए, जरूरी है कि बलूच इन पर जरा भी यकीन न करें।
मेरे मुल्क, मेरे मुल्क के नौजवान और बुजुर्ग, मैं आपको और आपके जद्दोजहद को सौ बार सलाम करता हूं। आज कौमी आजादी के लिए बलूचों की जंग उस मुकाम पर पहुंच चुकी है, जिसके लिए हमने सालों तक इंतजार किया। बुजुर्ग से लेकर नौजवान तक, सब एकजुट हो गए हैं। यह सबसे बड़ी कामयाबी है।
पाकिस्तान की सरकारी मशीनरी बलूचों के खिलाफ है। चाहे सूबों की असेंबली हो, पार्लियामेंट हो, जूडिशियरी हो या फिर एडमिनिस्ट्रेशन। आज विपक्षी पार्टी और पंजाब के नेता कह रहे हैं कि उनका जूडिशियरी पर भरोसा नहीं रहा। वैसे, आज भी हालत ये हैं कि अगर पंजाब में कोई घटना हो जाए तो अदालत अपने आप उसपर सुनवाई शुरू कर देती है। लेकिन बलूचों के मामले में इनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। लाखों लोग गायब कर दिए गए, हजारों मार दिए गए, कभी यहां, कभी वहां से लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला चलता ही रहा, एक के बाद एक सामूहिक कब्रें मिलती रहीं, लेकिन ये अदालतें खामोश रहीं। इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इसलिए, जरूरी है कि बलूच इन पर जरा भी यकीन न करें।
मुझे यकीन है कि जिस तरह बलूचों ने अपने मुल्क को आजाद कराने के लिए अब तक संघर्ष किया है, जिस तरह हर जुल्म के साथ बलूचों का जज्बा और मजबूत होता गया है और जिस तरह आजादी की इस लड़ाई में आज हर वर्ग, हर उम्र के लोग शामिल हो गए हैं, वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी मंजिल तक पहुंच सकेंगे। बस करना यह है कि हमें अपनी आजादी की लड़ाई को और तेज करना है। हर दिन का संघर्ष बीते दिन से तेज हो। यह तब तक करते रहें, जब तक बलूचिस्तान को आजाद न करा लें।
बलूचों को समझना होगा कि पंजाब को बलूच नहीं चाहिए। उन्हें बस बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों से मतलब है। पंजाब के लिए एक-एक बलूच उसका दुश्मन है। यही वजह है कि बलूचों को शहीद किया जा रहा है। चाहे उन्होंने पीएचडी हासिल कर रखी हो, डॉक्टरी या इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रखी हो, बुद्धिजीवी हों या फिर मेहनत-मजदूरी करने वाले या चरवाहे।
आज बलूचिस्तान में आजादी की जंग तेज हो चुकी है। समुद्र तटीय इलाकों से लेकर डेरा गाजी खान तक, एक भी इलाका ऐसा नहीं जहां बलूचों की कौमी आजादी की लड़ाई नहीं चल रही हो। यहां मैं चीन को साफ शब्दों में यह कहना चाहूंगा कि वह यहां जबरन कब्जा करने वाले का साथी बनने से बाज आए। चीन खुद को एक महान देश बताता है, वैसे ही बलूचिस्तान भी एक मुल्क है। उसका भी एक अस्तित्व है और वह अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को समझना चाहिए कि सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) के नाम पर वे लोग बलूचों को उनकी जमीन से जुदा करने के काम में लगे हैं।
चीन हो जाए होशियार
सीपीईसी रूट पर रखशान से लेकर केच तक 1.5 लाख से ज्यादा लोगों को बेदखल कर दिया गया है। आप बलूच मुल्क की संपत्तियों को खत्म कर रहे हैं। चीन को बलूचों के खिलाफ पाकिस्तान की करतूतों का भागीदार बनने से बचना चाहिए। अगर चीन यहां निवेश करना चाहता है तो उसे तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक बलूचिस्तान आजाद नहीं हो जाता। अभी यहां पर क्या हो, क्या नहीं, इसपर फैसला नहीं हो सकता। बलूच अपने मुल्क को आजाद करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दुनिया के कानों तक हमारी आवाज जरूर पहुंच रही होगी।
इसके साथ ही मैं कनाडा की बराक गोल्ड को भी यह साफ कर देना चाहता हूं कि आपने रेको डिक में बिना बलूचों की मर्जी के निवेश शुरू कर दिया है। यह सही नहीं है। आपको हिदायत दी जाती है कि इसे रोकें वरना अपनी संपत्ति को होने वाले किसी भी नुकसान के लिए आप खुद जिम्मेदार होंगी।
आज बलूचों में आजादी की जंग काफी तेज हो चुकी है। बलूचों ने जो यह मुकाम हासिल किया है, उसके लिए हमने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। पाकिस्तान ने फौजी बूटों के सहारे हमारे आंदोलन को दबाने की कोशिश की, लेकिन ऐसा हो न सका। पाकिस्तान के बनने से पहले आजाद हो चुके बलूचिस्तान पर गलत तरीके से कब्जा करने वाले इस्लामाबाद की कितनी ज्यादतियां बलूचों ने झेली हैं, इसका अंदाजा यहां-वहां मिल रही सामूहिक कब्रों से समझा जा सकता है। मस्तंग के दश्त स्पीलिंगी से लेकर रखशान और पंजागुर और तूतक से लेकर वाध तक बलूचिस्तान के अलग-अलग इलाकों में समय-समय पर सामूहिक कब्रें मिलती रही हैं।
दहशतगर्दी का आलम
बलूचिस्तान का ऐसा कोई इलाका नहीं है, जिसने पाकिस्तानी फौज की दहशतगर्दी को नहीं झेला। मश्के में हमारे दर्जनों साथियों को शहीद कर दिया गया, बेकसूर निहत्थे लोगों को मारकर एक साथ दफना दिया गया। ये जो सामूहिक कब्रें मिल रही हैं, ये बताती हैं कि यहां इंसानी हुकूक को किस तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। अनगिनत लोगों को जबरन अगवा कर लिया गया। किसी को नहीं पता कि इनके साथ क्या हुआ। कितनों को कत्ल कर दिया गया, कितनों को टॉर्चर सेल में रखा गया, किसी को नहीं पता। ऐसे कई मामले हैं जब बचपन में अगवा किए लोग जवानी ढलने के बाद रिहा होकर आते हैं और तब उनके मां-बाप ही उन्हें पहचान नहीं पाते। आजादी के लिए बलूचों का यह संघर्ष अपने कल के लिए है। बलूच मुल्क की आजादी के लिए अपने आज को कुर्बान कर रहे हैं ताकि हमारी आने वाली नस्लें इसका फल चखें। वे इस जमीन के मालिक हों, अपने फैसले खुद ले सकें।
दखल दे यूएन
मुझे उम्मीद है कि भारत, अफगानिस्तान और ईरान समेत हमारे पड़ोंसी मुल्क हमारी लड़ाई का समर्थन करेंगे। एक आजाद, स्थिर और मजबूत बलूचिस्तान इस क्षेत्र में अमन-चैन और खुशहाली की गारंटी होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पाकिस्तानी दहशतगर्दी से कोई महफूज नहीं रह सकेगा- न भारत, न अफगानिस्तान, न ब्रिटेन या फ्रांस और न ही अमेरिका।
मैं आज दुनिया से अपील करता हूं कि वह बलूचिस्तान को एक आजाद मुल्क के तौर पर मंजूर करे, क्योंकि बलूचिस्तान की हैसियत तब एक आजाद मुल्क की थी, जब पाकिस्तान ने उसपर जबरन कब्जा किया। यहां मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है। अनगिनत लोग मारे जा चुके हैं। हजारों-हजार लोग हिरासत में या जेलों में मारे जा रहे हैं। यूएन चार्टर के तहत यूनाइटेड नेशंस बुनियादी मानवाधिकारों और मुल्कों के आजाद रहने के उनके अधिकार की हिफाजत करने को बाध्य है। इसलिए, मैं बलूचिस्तान की ओर से यूनाइटेड नेशंस से अपील करता हूं कि वह दखल दे। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस को बलूचिस्तान को एक संघर्ष क्षेत्र करार देते हुए इसे नो फ्लाई जोन घोषित करना चाहिए।
आज मैं अपने मुल्क के लोगों से अपील करना चाहता हूं कि वे तालीम जरूर लें। चाहे यह कितनी भी खराब हो, हमारे बारे में गलत बातें बताने-समझाने का जरिया ही क्यों न हो, हमें तालीम लेनी चाहिए। जब हमारे लोग पढ़ना सीखेंगे, तो अपनी आजादी और अपनी जद्दोजहद को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। इसलिए मैं बुजुर्गों से अपील करता हूं कि वे घर के बच्चों को तालीम दिलाएं। युवाओं से मेरी अपील है कि वे स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल की पढ़ाई पूरी करें। एकजुट रहें और खुद को, अपने मुल्क को, अपनी जमीन को, यहां की समस्याओं को समझें।
मुझे यकीन है कि जिस तरह बलूचों ने अपने मुल्क को आजाद कराने के लिए अब तक संघर्ष किया है, जिस तरह हर जुल्म के साथ बलूचों का जज्बा और मजबूत होता गया है और जिस तरह आजादी की इस लड़ाई में आज हर वर्ग, हर उम्र के लोग शामिल हो गए हैं, वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी मंजिल तक पहुंच सकेंगे। बस करना यह है कि हमें अपनी आजादी की लड़ाई को और तेज करना है। हर दिन का संघर्ष बीते दिन से तेज हो। यह तब तक करते रहें, जब तक बलूचिस्तान को आजाद न करा लें।
( लेखक पेशे से डॉक्टर हैं और बलूचिस्तान की आजादी के लिए छापामार संर्घर्ष कर रहे हैं)
प्रस्तुति : अरविन्द
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