बिहार के सरकारी विद्यालयों में शुक्रवार के दिन होने वाली छुट्टी को लेकर विवाद तेज हो गया है। बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने शिक्षा विभाग से शुक्रवार की छुट्टी को बरकरार रखने का आग्रह किया है। आयोग ने शुक्रवार की छुट्टी को कायम रखने के लिए तीन पत्र लिखे हैं। आयोग की तरफदारी बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमां खान ने भी की है। मंत्री जमां खान ने शुक्रवार की छुट्टी का जिक्र करते हुए कहा है कि शुक्रवार को जुमा की नमाज अता की जाती है। छुट्टी नहीं रहने से नमाज छूट जायेगी इसीलिए शुक्रवार के दिन छुट्टी देनी चाहिए ताकि बच्चें नमाज भी पढ़ें और पढ़ाई भी करें। जब उनसे पूछा गया कि राज्य के कई विद्यालयों में मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं तो क्या उनके लिए छुट्टी का नया प्रावधान किया जायेगा ? इस सवाल पर बगले झांकने लगे।
इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी ने कड़ा विरोध दर्ज किया है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने शुक्रवार की छुट्टी को देश में शरिया कानून बताया है। भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक प्रेमरंजन पटेल के अनुसार आयोग सरकार से ऊपर नहीं हो सकता। आयोग सिर्फ अनुशंसा करता है। कानून सरकार के माध्यम से विधानसभा में बनता है और सरकार द्वारा आदेश किया जाता है। आयोग की हर बात को मानना सरकार के लिए अनिवार्य नहीं है। देश संविधान से चलता है न कि शरिया से।
वास्तव में यह चर्चा बिहार के पूर्णिया प्रमंडल अंतर्गत 500 सरकारी विद्यालयों में दी जाने वाली शुक्रवार की छुट्टी को लेकर शुरू हुई थी। बिहार में 72 हजार 663 सरकारी विद्यालय हैं। इनमें 42 हजार 373 प्राथमिक, 25 हजार 587 उच्च प्राथमिक, 2 हजार 286 माध्यमिक एवं 2 हजार 217 उच्च माध्यमिक विद्यालय हैं। सामान्यतः शुक्रवार के दिन 1 से डेढ़ घंटा टिफिन की छुट्टी रहती है। यह समायोजन इसीलिए किया गया ताकि बच्चे नमाज अता करके वापस आ सकें। पटना के सामाजिक कार्यकर्त्ता महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ॰ उमेश कुमार इसे मुसलमानों की जिद्द मानते हैं। मुस्लिम समुदाय कहीं भी नमाज अता कर लेता है लेकिन शुक्रवार को सांघिकता और तकरीर सुनाने के लिए विशेष कर ऐसी व्यवस्था की गई है। इस तकरीर के कारण ही अबोध बच्चों में कट्टरता आती है।
सोशल मीडिया में इस बात को लेकर पहले भी काफी प्रश्न उठते रहे हैं। फनवतं में आसिफ खान ने छुट्टी के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। महात्मा ज्योतिबा राव फुले के निकटतम सहयोगी नारायण मेघाजी लोखण्डे थे। उन्हें भारत में मजदूर आंदोलन का जनक भी कहा जाता है। उन्होंने 1881 से 1889 तक रविवार की छुट्टी के लिए लगातार संघर्ष किया था। अंततः ब्रिटिश सरकार ने 1889 को रविवार को आधिकारिक रूप से छुट्टी की घोषणा की थी।
बिहार के कई विद्यालयों के स्थापना स्वतंत्रता के पूर्व हुई थी। कुछ मुस्लिम बहुल क्षेत्र में शुक्रवार को मनमाने ढ़ंग से छुट्टी मनाई जाने लगी। जैसे किशनगंज प्रखण्ड के उर्दू लाइन बाजार स्थित उर्दू मध्य विद्यालय की स्थापना 1902 को हुई। उस समय से यहां शुक्रवार को छुट्टी दी जाती है। विद्यालयों के सरकारीकरण होने के बाद भी यह परम्परा नहीं बदली। स्वतंत्रता के बाद कुछ पदाधिकारियों ने अनदेखी कर दी। बिहार में स्वतंत्रता के बाद कई स्कूल स्थापित हुए। मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थानीय दबंग राजनेताओं के कारण शुक्रवार की छुट्टी की परम्परा शुरू की गई। अररिया का जोकीहाट भारत के पूर्व गृह राज्य मंत्री तसलीमुद्दीन के प्रभाव का क्षेत्र था। यहाँ से वे लगातार विधायक होते थे। उनकी छवि एक दबंग राजनीतिज्ञ की थी। जोकीहाट में 240 सरकारी विद्यालय हैं। जिसमें 229 में शुक्रवार की छुट्टी की परम्परा शुरू हुई।
मुस्लिमों ने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाकर भी जबरन शुक्रवार की छुट्टी शुरू करवाई। 29 जुलाई को एक राष्ट्रीय दैनिक द्वारा फारबिसगंज में साप्ताहिक छुट्टी को लेकर सर्वे कराया गया। 29 जुलाई को शुक्रवार था और फारबिसगंज के 250 विद्यालयों में से 40 सरकारी विद्यालय बंद थे। बिहार सरकार द्वारा संचालित होने के बावजूद यहाँ पर बिना किसी निर्देश के शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी घोषित करा दी गई थी।
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