भारत में जलाशयों, झीलों, नदियों और समुद्र में बनने वाले तैरते सौर संयंत्र न केवल बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता कम कर रहे हैं, बल्कि कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ ही पानी का वाष्पीकरण रोकेंगे
भारत अब दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जहां जमीन के साथ-साथ पानी पर तैरती सौर इकाइयां लगाकर बिजली पैदा की जा रही है। हाल ही में तेलंगाना के रामागुंडम में देश के सबसे बड़े तैरते सौर संयंत्र से बिजली उत्पादन शुरू हो गया है। 100 मेगावाट क्षमता वाले इतने बड़े तैरते सौर संयंत्र से बिजली उत्पादन शुरू कर भारत अब चीन और सिंगापुर के बाद गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है। फिलहाल, इन तैरती सौर इकाइयों से देश में 222 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है, जबकि 40 मेगावाट पर काम चल रहा है। जल्द ही इससे भी बिजली उत्पाटदन होने लगेगा।
सौर महाशक्ति बनने की ओर
सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत वैश्विक महाशक्ति बनने की राह पर है। देश में ऐसे कई सौर संयंत्र हैं, जिनकी गिनती दुनिया की सबसे बड़ी सौर इकाइयों में होती है। इनमें से कुछ में बिजली उत्पादन भी हो रहा है, जबकि कुछ पर काम चल रहा है। तेलंगाना में पेड्डापल्ली जिले के रामागुंडम स्थित झील में तैरते सौर संयंत्र से बिजली उत्पादन शुरू होने के बाद भारत का रुतबा दुनिया में बढ़ गया है। कारण, तैरता सौर संयंत्र बनाकर भारत ने वह लक्ष्य हासिल कर लिया है, जिसके लिए कई देश प्रयासरत हैं। देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी ने 423 करोड़ रुपये की लागत से इस सौर संयंत्र का निर्माण किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तैरते सौर संयंत्र से बिजली उत्पादन शुरू होने के बाद सालाना 1.65 लाख टन कोयले की बचत होगी। इससे भी बड़ी बात यह है कि कार्बन उत्सर्जन में भी सालाना 2.10 लाख टन की कमी आएगी। यही नहीं, इस सौर इकाई से सालाना 32 लाख क्यूबिक मीटर पानी का वाष्पीककरण भी रुकेगा। यानी बड़ी मात्रा में पानी की बचत भी होगी। एनटीपीसी के मुताबिक, यह इकाई सालाना जितना पानी बचाएगी, उससे करीब 10 हजार घरों को पूरे साल पानी की आपूर्ति की जा सकती है।
पिछले 8 साल में भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत बड़ी छलांग लगाई है। 2013 में भारत की सौर ऊर्जा
उत्पादन क्षमता मात्र 2300 मेगावाट थी। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद इस क्षेत्र में तेजी से
काम हुआ। सरकार ने फोटो वोल्टिक प्लेट्स के आयात में आ रही परेशानियों को खत्म किया और
साथ ही, सौर बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया
यदि इस सौर संयंत्र की स्थापना जमीन पर की जाती तो इसके लिए कम से कम 500 एकड़ से अधिक जमीन की जरूरत पड़ती। हालांकि दुनिया में बिजली उत्पादन के लिए डेनमार्क समुद्र का सबसे अधिक प्रयोग करता है। इसने समुद्र में पवन चक्कियां (विंड मिल्स) लगाई हैं, जिनसे देश की कुल जरूरत की आधी बिजली मिलती है। पूर्व ऊर्जा सचिव अनिल राजदान के मुताबिक, भारत का ऊर्जा बास्केट देखें तो इसमें बहुत बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम और कोयले का है। यदि हम सौर और दूसरे माध्यमों से इन पर निर्भरता कम करते हैं तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात होगी। एनटीपीसी के एक अधिकारी के अनुसार, जिस झील पर यह तैरता सौर पार्क है, उस झील पर करीब 400 मेगावाट क्षमता वाली एक और सौर इकाई लगाई जा सकती है। हम अभी इस पर विचार कर रहे हैं। अगर इस झील पर 400 मेगावाट का क्षमता वाली इकाई लगा दी जाती है, तो भारत सबसे बड़ी तैरती सौर इकाई लगाने वाला देश बन जाएगा। एनटीपीसी की तकनीक के जरिये तेलंगाना सरकार कुछ और झीलों पर ऐसी इकाइयां लगाने पर विचार कर रही है।
कैसे तैरता सौर संयंत्र
रामागुंडम सौर संयंत्र 500 एकड़ जल क्षेत्र में फैला हुआ है। इस संयंत्र में उच्च स्तरीय प्लास्टिक से बने 40 तैरते खंडों का डिजाइन इस तरह से बनाया गया है कि पानी का स्तर बढ़े या घटे, यह सौर विद्युत संयंत्र हमेशा तैरता रहेगा। हर खंड में 2.5 मेगावाट के फोटोवोल्टिक सेल लगे हैं।
बड़ी बात यह है कि इस इकाई में सब कुछ तैरेगा, चाहे वह ट्रांसफार्मर, बैटरी, सर्किट ब्रेकर हो या कंट्रोल पैनल। दुनिया में बहुत कम देश हैं, जहां इस तरह के फ्लेटफार्म तैयार किए गए हैं, जिनमें सोलर फोटोवोल्टिक सेल के अलावा बाकी प्लांट भी तैरेगा। भारतीय इंजीनियरों ने विशेष तकनीक के जरिये फैरो सीमेंट प्लेटफार्म तैयार कर इसे प्लास्टिक की रस्सियों से एंकर किया है ताकि प्लेटफार्म का संतुलन बना रहे। पानी में होने के कारण फोटोवोल्टिक सेल अधिक गर्म नहीं होंगे। इससे संयंत्र के रखरखाव पर दबाव भी कम रहेगा। इस सौर इकाई से तैयार बिजली को भूमिगत तारों के जरिये ग्रिड तक पहुंचाया जा रहा है।
भारत में जितना सौर विकिरण एक साल में आता है, वह देश के कुल जीवश्म ईंधन (कोयला और अन्य ईंधन) जलाने के बराबर है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत बिजली के अलावा दूसरी जरूरतें केवल सौर किरणों से ही पूरी कर सकता है। इसलिए सरकार ने 2022 तक सौर ऊर्जा से एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा था। इसी कारण सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है।
फिलहाल, जलाशय पर दुनिया का सबसे बड़ा तैरता सौर पार्क चीन में है, जिसकी क्षमता 320 मेगावाट है। लेकिन 600 मेगावाट क्षमता वाला दुनिया का सबसे बड़ा तैरता सौर ऊर्जा संयंत्र मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर ओंकारेश्वर बांध पर स्थापित किया जा रहा है। 3,000 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना से 2022-23 तक बिजली उत्पादन शुरू होने की संभावना है। सिंगापुर ने भी हाल ही में 60 मेगावाट क्षमता वाला तैरता सौर संयंत्र लगाया है। दुनिया का पहला तैरता सौर संयंत्र जापान ने बनाया था। जिन देशों में जमीन कम हैं, वे इस तरह के प्रयोग अधिक कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक, पानी की सतह पर तैरने वाला सौर संयंत्र लगाने से उत्पादन क्षमता में भी खासी बढ़ोतरी होती है। यही वजह है कि भारत में भी अब इस ओर काम किया जा रहा है।
चौथा सबसे बड़ा सौर बिजली वाला देश
पिछले 8 साल में भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत बड़ी छलांग लगाई है। 2013 में भारत की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता मात्र 2300 मेगावाट थी। लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार के आने के बाद इस क्षेत्र में तेजी से काम हुआ। सरकार ने फोटोवोल्टिक प्लेट्स के आयात में आ रही परेशानियों को खत्म किया। साथ ही, सौर बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया।
दरअसल, भारत में जितना सौर विकिरण एक साल में आता है, वह देश के कुल जीवश्म ईंधन (कोयला और अन्य ईंधन) जलाने के बराबर है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत बिजली के अलावा दूसरी जरूरतें केवल सौर किरणों से ही पूरी कर सकता है। इसलिए सरकार ने 2022 तक सौर ऊर्जा से एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा था। इसी कारण सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है।
अभी देश की सौर बिजली उत्पादन क्षमता 55 हजार मेगावाट तक पहुंच गई है। देश में सरकारी और निजी कंपनियों के बीच सौर संयंत्र लगाने की होड़ मची हुई है। कंपनियां बंजर जमीन से लेकर ऐसी जगहों पर सौर इकाइयां लगा रही हैं, जिसके बारे में किसी ने कुछ साल पहले तक सोचा भी नहीं था कि यहां बिजली पैदा की जा सकती है। इसके अलावा, बहुतायत लोग अपने घर की छतों पर भी सोलर पैनल लगाकर बिजली पैदा कर रहे हैं। यदि इसी गति से काम होता रहा तो आने वाले समय में देश की बिजली की जरूरतें कोयले से अधिक सौर ऊर्जा से पूरी होने लगेंगी।
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