मोबाइल पर समय बिताने के मामले में भारतीय पांचवें नंबर पर और एप्लीकेशन डाउनलोड करने के मामले में दूसरे नंबर पर हैं
मोबाइल फोन के आविष्कारक मार्टिन कूपर ने इस बात पर चिंता जताई है कि लोग मोबाइल फोन पर बहुत ज्यादा समय बिता रहे हैं। उन्होंने सलाह दी है कि मोबाइल छोड़ो, जिंदगी जीने पर ध्यान दो। जब कूपर से यह पूछा गया कि वे खुद दिन में कितने घंटे मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं तो उन्होंने जवाब दिया- दिन का 5 प्रतिशत से कम समय। अगर थोड़ी गणना करके देखें तो कूपर दिन में लगभग पौन घंटे मोबाइल फोन का प्रयोग करते होंगे। चौबीस घंटे के दिन-रात में से नींद के आठ घंटे निकाल दिए जाएं तो बाकी बचे 16 घंटों का 5 प्रतिशत 48 मिनट होता है।
क्या हमें भी मार्टिन का अनुसरण करना चाहिए? क्या हमारे लिए भी पौन घंटा काफी है? कोई भी फैसला करने से पहले हमें यह देखना होगा कि मार्टिन की उम्र क्या है और उनकी आवश्यकताएं कैसी हैं। सन्1928 में जन्मे मार्टिन 94 साल के हैं और साफ है कि मोबाइल फोन के प्रयोग की उनकी व्यावसायिक और निजी जरूरतें सीमित हैं। अगर वे एक घंटे से कम समय तक मोबाइल का प्रयोग करते होंगे तो यह स्पष्ट है कि वे उसका ज्यादातर इस्तेमाल बातचीत के लिए करते होंगे। वीडियो, संगीत, सोशल मीडिया, इंटरनेट खोज, ईमेल, वर्चुअल मीटिंग्स, शिक्षा आदि के लिए या तो वे इनका इस्तेमाल नहीं करते होंगे या फिर बेहद कम। मगर आज डिजिटल तकनीकों से जुड़े आम आदमी की जरूरतें उनसे कहीं ज्यादा हैं।
तो आपको और हमें अपने दिन का कितना समय मोबाइल फोन को देना चाहिए? इस सवाल का जवाब जानने से पहले भारत में मोबाइल फोन के प्रयोग के डेटा पर एक नजर डालें हैं। हाल ही में सन् 2021 के आंकड़े आए हैं जिन्हें एप एनी नामक मोबाइल डेटा और विश्लेषण फर्म ने जारी किया है। इनके अनुसार भारत का एक आम मोबाइल उपभोक्ता औसतन 4.7 घंटे के लिए मोबाइल फोन का प्रयोग करता है।
एक आम भारतीय के लिए मोबाइल फोन पर बिताया गया कितना समय उचित होगा? इस सवाल का जवाब पाना मुश्किल है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए मोबाइल फोन की उपयोगिता और जरूरत अलग-अलग हो सकती है। लेकिन पांच घंटे? वह सचमुच बहुत अधिक है।
एक साल पहले यह अवधि 4.5 घंटे थी और दो साल पहले 3.7 घंटे। कोविड-बाद के काल में मोबाइल फोन का इस्तेमाल बढ़ता चला गया है। अगर हम दिन में अपने सक्रिय घंटों की संख्या 16 मानें तो हम अपनी सक्रियता के घंटों का लगभग 30 प्रतिशत मोबाइल फोन पर बिता रहे हैं। मतलब हर सप्ताह में दो दिन, हर महीने में नौ दिन और हर साल में 109 दिन मोबाइल फोन की भेंट चढ़ रहे हैं। अगर आपको हर साल 109 दिन दे दिए जाएं और कहा जाए कि इस अवधि में आप अपना मनचाहा काम कर सकते हैं तो आप क्या कुछ नहीं कर डालेंगे। लेकिन यह समय मोबाइल के खाते में जा रहा है।
सन् 2021 के आंकड़ों के अनुसार मोबाइल फोन पर औसतन लगाए गए घंटों के लिहाज से हम भारतीय दुनिया में पांचवें नंबर पर हैं। ब्राजील, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और मैक्सिको के बाद। ध्यान देने की बात यह है कि इस मामले में हम अमेरिका सहित ज्यादातर विकसित देशों और चीन से भी आगे हैं। दूसरी तरफ मोबाइल एप्लीकेशनों को डाउनलोड करने के मामले में भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हमारे यहां का रुझान दुनिया के रुझान के विपरीत है जहां 2021 के अंत में मोबाइल फोन पर व्यतीत घंटों की संख्या में 6.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। जाहिर है कि इस समय दुनिया में मोबाइल फोन और उसके जरिए किए जाने वाले हर किस्म के कारोबार के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक कोई देश है तो वह भारत है।
यह उन सब कंपनियों और लोगों के लिए बहुत अच्छा है जो सौ करोड़ लोगों के औसतन 102 घंटों के सालाना मोबाइल प्रयोग से फायदा उठाने की स्थिति में हैं, जैसे-मोबाइल एप्लीकेशन निर्माता कंपनियां, कन्टेन्ट निर्माता, फोन के जरिए शिक्षा, मनोरंजन आदि मुहैया कराने वाली फर्में, इसके जरिए कारोबार करने वाले संस्थान आदि। मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियों और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के लिए भी यह स्वर्ण काल है। लेकिन उपभोक्ता के लिए? क्या उपभोक्ता अपने समय का अच्छा इस्तेमाल कर रहा है? और क्या इतना समय मोबाइल फोन पर बिताना उसके बुनियादी कामकाज, सामाजिक संबंधों और निजी सेहत के लिए अच्छा है? बिल्कुल नहीं। यहां हम फिर से मार्टिन कूपर की सलाह की तरफ लौट आते हैं जिन्होंने कहा है कि मोबाइल छोड़ो, जिंदगी जियो दोस्तो!
तो एक आम भारतीय के लिए मोबाइल फोन पर बिताया गया कितना समय उचित होगा? इस सवाल का जवाब पाना मुश्किल है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए मोबाइल फोन की उपयोगिता और जरूरत अलग-अलग हो सकती है। लेकिन पांच घंटे? वह सचमुच बहुत अधिक है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में ‘निदेशक-
भारतीय भाषाएं और सुगम्यता’
के पद पर कार्यरत हैं)
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