9 जुलाई को देश हर वर्ष राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस मनाता है। यह दिवस इस रूप में विशेष है कि इसी दिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जन्म हुआ था, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा विद्यार्थी संगठन बन चुका है। आज यह जरूरी है कि राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस के आलोक में विद्यार्थी परिषद के चेतन तत्व को समझा जाए। यह समझने का प्रयास किया जाए की जो संगठन दुनिया के सर्वाधिक विद्यार्थियों का मातृ संगठन है उसके मूल में ऐसा क्या है की इसने अपनी 75 वर्षो की यात्रा को एक ध्येय यात्रा के रूप में परिवर्धित कर लिया है, और तमाम युवाओं को राष्ट्र पुनर्निर्माण का निमित्त बनाने में अपनी भूमिका सशक्त करता जा रहा है।
साल था १९४८, जब नए नए आज़ाद हुए हिन्दुस्तान में राष्ट्रवाद के विमर्श को मज़बूत करने के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने एक छात्र संगठन की नींव डाली. देश भले आज़ाद हो गया था पर आजादी के मशाल की लौ अभी विश्वविद्यालयों में नहीं पहुंची थी, आजादी के नए दीपक की केसरिया लौ अभी देश के उस वर्ग तक नहीं पहुंची थी जिसे देश का भविष्य संभालना था. विश्वविद्यालय में पढने वाला युवा अभी इस मुगालते में था की वो भी स्वतंत्र है- सोचने के लिए, पढने के लिए, अपनी परम्पराओं को जीने के लिए और राष्ट्रहित सर्वोपरि रखने के लिए! लेकिन युवाओं की सोच गलत निकली. १९४८ का ही साल था जब देश के स्वतंत्रता संघर्ष का प्रतीक रही ‘कांग्रेस’ और स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक दल में परिणत हो चुकी ‘कांग्रेस पार्टी’ ने अपनी छात्र इकाई को सरकार का विरोध करने के जुर्म में प्रतिबंधित कर दिया था.
ऐसे माहौल में जब एक ओर हिंदुस्तान में आजादी का उत्सव मन रहा था और दूसरी छात्रों की आवाज को दबाने की साजिश हो रही थी, तब 9 जुलाई 1949 को विधिवत ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्’ की स्थापना ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ की विचार छाया में कुरुक्षेत्र विश्ववियालय के उन कुछ स्वयं सेवक विद्यार्थियों को साथ लेकर की गयी गयी. ज्ञान, शील और एकता के ध्येय के साथ शुरू हुआ परिषद् राष्ट्रवाद की विचारधारा को युवाओं के बीच ले जाने और विचारधारा को मज़बूत करने की दिशा में संघ का एक कदम था. लेकिन विचारधारा की लड़ाई बहुत पहले ही शुरू हो चुकी थी, और इस लड़ाई का मंच सिर्फ हिंदुस्तान तक सीमित नहीं था बल्कि पूरी दुनिया विचारों की लड़ाई की चपेट में थी. सन 1917 में बोल्शेविक क्रांति के बाद साम्यवादी विचारधारा जब पूरी दुनिया में तेजी से फ़ैल रही थी तब गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हिदुस्तान में भी विदेशों से पढ़कर आये हुए क्रान्तिदूत अपने साथ साम्यवादी विचारों को ले आये. ये साम्यवादी विचार हिंदुस्तान की परंपरा, वसुधैव कुटुम्बकम् की परंपरा, परिवार की परंपरा, ईश्वर पर विश्वास, आपसी सद्भाव और भाईचारे की परंपरा, अनेकता में एकता की भावना आदि अनन्य भारतीय मूल्यों के खिलाफ साबित होने लगे. ऐसे में सन 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना भारतीय मूल्यों को विचारधारा में पिरोने और उस विचारधारा को देश के हर नागरिक तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गयी.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के उद्देश्य और ध्येय स्पष्ट इशारा करते हैं की परिषद् न तो किसी की तुलना से प्रारंभ हुआ है और न ही किसी की प्रतिक्रिया से प्रारंभ हुआ है. ये बात सच है की हिंदुस्तान जब आज़ाद हुआ तो देश में दो विचार प्रभावी थे – एक तो साम्यवादी विचार था, जिसके अनुयायी विश्वद्यालयों में V शेप की चप्पल पहनकर, दाढ़ी रखकर और कंधे पर मैला थैला टांगकर फख्र से विचरते रहते थे. दूसरी ओर एक और टोली थी, जिसका ये मानना था की देश को पूंजीवाद के रास्ते से ले जाकर, अमरीका के चरणों में बिठाकर राष्ट्र बनाया जायेगा. पूंजीवाद नाम सुनकर नींद से जागने वाले साम्यवादी तुरंत कहते कि नहीं!… पूंजीवाद नहीं! हम तो रूस के चरणों में बैठकर, मार्क्स के चरणों में बैठकर, माओ के चरणों में बैठकर भारत को भारत बनायेंगे. तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् हिंदुस्तान की मिट्टी की आवाज बनकर सामने आता है और इस विचार को बुलंद करने की कोशिश शुरू करता है की हिंदुस्तान न अमरीका के चरणों में बैठकर बनेगा, न रूस के चरणों में बैठकर बनेगा, हिंदुस्तान की अपनी पहचान है…. और वो पहचान है भारत माता! और हिंदुस्तान भारत माता के चरणों में बैठकर हिंदुस्तान बनेगा. परिषद् ने अपने शुरूआती दिनों में ही सत्ता से यह सवाल पूछना शुरू कर दिया की वे भारत को क्या बनाना चाहते हैं? और हिंदुस्तान की पहचान, हिंदुस्तान के विचार और हिन्स्तान के अस्तित्व की लड़ाई को लेकर परिषद् ने अपना संघर्ष शुरू किया.
विद्यार्थी परिषद् को ये संघर्ष करने के लिए आना पड़ा क्योंकि पराधीनता और वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के लोगो को उनके ही इतिहास से वंचित कर दिया था. हिंदुस्तान में साम्यवाद और पूंजीवाद का द्वन्द यदि अपनी जगह बना पाया तो केवल इसलिए की हिंदुस्तान के लोग अपनी विरासत अपना इतिहास और गौरव भूल चुके थे. इसीलिए विद्यार्थी परिषद् ने एक ऐसे महापुरुष को आदर्श मानकर काम करना शुरू किया जिसने विश्व पटल पर हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के विचार को स्थापित करने का काम किया था- स्वामी विवेकानंद! स्वामी विवेकानंद वो विभूति थे जिन्होंने भारत का नाम तब विश्व मंच गौरवान्वित किया जब भारत को केवल संपेरों और गड़ेरियों का देश समझा जाता था. सन 1893 ई. में 11 सितम्बर को अमरीका के शिकागो शहर में स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया को हिंदुस्तान के हिंदुत्व को समझाया तो पूरी दुनिया ने न सिर्फ भारत को जाना बल्कि एक ऐसे वक़्त में जब दुनिया उपनिवेशवाद की आग में जल रही थी तब ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के विचार से दुनिया का परिचय कराने वाले विवेकानंद के सामने दुनिया नतमस्तक भी हुई. ऐसे महापुरुष जिन्होंने गरीबी से, भुखमरी से, गुलामी से जूझ रहे 30 करोड़ भारतीयों को पूरी दुनिया के सामने खड़ा होने का साहस दिया, एक सोये राष्ट्र को जगाने का कार्य किया. और आज की पीढ़ी को ये जानकार आश्चर्य होगा की अपने संभाषण के बाद 4 साल तक अमरीका में प्रवास के बाद जब स्वामी विवेकानंद वापस आये तो उनके साथ अंग्रेजो की एक टोली भी आई जो स्वामी जी के विचारो से, हिंदुत्व के विचारों से, हिंदुस्तान के विचारों से प्रेरित होकर उनके शिष्य बन चुके थे. आज ये देश का दुर्भाग्य है की स्वतंत्रता के पश्चात् के ‘कांग्रेस-वामपंथ गठबंधन’ ने कभी भी आने वाली पीढ़ियों को उनका वास्तविक इतिहास बताने की जहमत नहीं उठाई. बल्कि उन्हें सिर्फ ऐसा इतिहास बताया गया जिससे भारत के लोगो को खुद पर गर्व करने का कोई मौका ही न मिल सके. विवेकानंद जब अपने साथ शिष्यों को लेकर पहुंचे, और लोगों ने उनसे पूछा की अपने इन्हें ऐसा क्या पढ़ा दिया? तो स्वामी जी ने कहा, “ मैंने तो इन्हें सिर्फ अपने असली हिंदुस्तान के बारे में बताया है, और अभी तो मैं अकेला नरेन्द्र हूँ जो जाग पाया है. जिस दिन इस देश का एक एक व्यक्ति जाग जायेगा उस दिन पूरी दुनिया भारत के आगे नतमस्तक होगी.” स्वामी विवेकानंद के इसी सपने को, भारत के हर नागरिक को जगाने का बीड़ा ABVP ने उठाया है. इसीलिए परिषद् न तो किसी प्रतिस्पर्धा में है, न किसी की प्रतिक्रिया में. परिषद् तो एक वैचारिक आन्दोलन है जिसने हिंदुस्तान के विचार को सभी हिन्दुस्तानियों तक पहुंचाने जिम्मेदारी ली है.
(लेखक जेएनयू के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में शोधार्थी हैं)
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