खेलो इंडिया के चौथे संस्करण में चार नए देसी खेलों को शामिल किया गया। इस बार मेजबानी हरियाणा ने की और पंचकूला, शाहबाद, अंबाला, चंडीगढ़ और दिल्ली में खेलों का आयोजन हुआ। हरियाणा कुल 137 पदक जीत कर तालिका में दूसरी बार पदक पहले स्थान पर रहा
खेलो इंडिया यूथ गेम्स की शुरुआत चार साल पहले हुई थी, तब से यह हर साल समृद्ध हो रहा है। इसमें न केवल देशभर के खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल रहा है, बल्कि पारंपरिक खेलों को भी मंच मिल रहा है। इस बार हरियाणा ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स के चौथे संस्करण की मेजबानी की। 4-13 जून तक चली इस खेल प्रतियोगिता में पहली बार चार नए देसी खेलों को शामिल किया, गया जिनमें गतका, थांग-ता, कलरीपायट्टू और मलखंभ शामिल हैं। गुवाहाटी में आयोजित खेलो इंडिया में इनकी प्रस्तुति दी गई थी। केंद्र की मंजूरी के बाद इस बार इन्हें शामिल किया गया।
खेलो इंडिया यूथ गेम्स का आयोजन पहली बार 31 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में किया गया था। इन्हें दूसरी बार 9-20 जनवरी, 2019 को पुणे (महाराष्ट्र) और तीसरी बार 18-30 जनवरी, 2020 को गुवाहाटी में आयोजित किया गया था। खेलो इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य युवाओं को खेलों के लिए प्रेरित कर उन्हें शीर्ष स्तर तक ले जाने के लिए बुनियादी सुविधाएं और प्रशिक्षण उपलब्ध कराना है। साथ ही, पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देना, उनके प्रचार-प्रसार की दिशा में काम करना भी है। इसी के तहत इस बार चार पारंपरिक खेलों को शामिल किया गया। पिछली बार गुवाहाटी में इन खेलों की प्रस्तुति दी गई थी, जिसे केंद्र सरकार ने इस बार मंजूरी दी।
मल्ल अखाड़ों निकला गतका
सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब ने आत्मरक्षा के लिए मल्ल अखाड़ों की शुरुआत की थी। वहीं से निकला ‘गतका’ इस बार खेलो इंडिया की शान बना। इसमें 16 राज्यों के 256 खिलाड़ियों ने भाग लिया। इसमें पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, नई दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, उतराखंड, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं। वर्ल्ड गतका फेडरेशन अब इस खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए प्रयासरत है।
फेडरेशन के उप-प्रधान सुखचैन सिंह ने बताया कि करीब 550 साल पहले विकसित इस विधा को यहां तक लाने के लिए बहुत प्रयास किए गए। पहले छोटे स्तर पर गांवों में गतका खेलों का आयोजन किया गया। फिर ब्लॉक, जिला और राष्ट्रीय स्तर पर 9 प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इन प्रतियोगिताओं में खेल के नियम तय किए गए और नियमों की 9 किताबें प्रकाशित की गईं। गतका एक स्टिक के साथ खेला जाता है, जिसे सोंटी कहा जाता है। एकल स्पर्धा में दो प्रतिभागी होते हैं। इसी तरह सिंगल स्टिक में टीम इवेंट भी होता है, जिसमें एक टीम में तीन प्रतिभागी होते हैं। तीसरा इवेंट फ्री स्टिक के साथ खेला जाता है, जिसमें सोंटी के साथ ढाल भी होता है। एक खिलाड़ी दोनों इवेंट में भाग ले सकता है।
52 स्वर्ण जीत कर हरियाणा शीर्ष पर
राजा-महाराजाओं का खेल थांग-ता
करीब 400 साल पहले मणिपुर में राजा-महाराजाओं ने जिस युद्ध कला ‘थांग-ता’ की शुरुआत की थी, अब वह खेलो इंडिया का हिस्सा है। थांग का अर्थ है तलवार और ता का अर्थ है भाला। अंग्रेजों ने तलवार और भाले के साथ खेली जाने वाली इस कला को प्रतिबंधित कर दिया था। लेकिन मणिपुर के लोगों ने अपने प्रयासों से न केवल इस प्राचीन कला को पुनर्जीवित किया, बल्कि इसे खेलो इंडिया तक पहुंचा दिया। इस कला को खेल का रूप देने वाले थांग-ता फेडरेशन ऑफ इंडिया के एच. प्रेम कुमार सिंह ने कहा कि उन्हें लगता था कि जब मार्शल आर्ट विदेशों से आकर एक खेल के तौर पर अपनी जगह बना सकता है, तो थांग-ता क्यों नहीं? लेकिन इसे खेल के रूप में पेश करने में सबसे पहली चुनौती इसके नियम थे। दूसरी चुनौती थी, तलवार और भाला की जगह क्या रखा जाए?
अंतत: एच. प्रेम कुमार ने तलवार की जगह स्टिक (तलवारनुमा) और ढाल का इस्तेमाल किया और इसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए अधिकाधिक प्रतियोगिताएं आयोजित कराई और अपनी टीम के साथ देश-विदेश में घूम कर खेल और इससे जुड़े नियमों का प्रचार किया। इसी प्रयास के तहत 1990 में इम्फाल में उत्तर-पूर्व राज्यों के लिए प्रतियोगिता आयोजित की गई। इसके बाद 1993 में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप आयोजित की गई। फिर हर साल अलग-अलग जगह इसका आयोजन किया गया। 2011 में पहली बार विश्व चैम्पियनशिप का आयोजन किया गया, जिसमें 6 देशों ने भाग लिया। इस बार थांग-ता में 22 टीमों के 140 खिलाड़ियों ने भाग लिया।
देसी मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू
प्राचीन काल में कलरीपायट्टू केरल का एक पारंपरिक खेल था। इसी से मार्शल आर्ट का जन्म हुआ। इसलिए इसे मार्शल आर्ट का जनक भी कहते हैं। यह दुनिया की पुरानी युद्ध कलाओं में से एक है। कलरीपायट्टू दो शब्दों कलरी और पायट्टू से मिलकर बना है। इसमें कलरी का अर्थ है- स्कूल या व्यायामशाला और पायट्टू का मतलब है युद्ध या व्यायाम करना। यह केवल व्यायाम व शारीरिक चुस्ती-फुर्ती तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवनशैली है। इसके जरिए योद्धा इलाज करना भी सीख जाते हैं। कलरीपायट्टू का अभ्यास कलरी में किया जाता है, जिसे बोलचाल की भाषा में अखाड़ा भी कहा जा सकता है। चाट्टम (कूद), ओट्टम (दौड़) और मरिचिल (कलाबाजी) जैसी गतिविधियां इस युद्धक कला की अभिन्न अंग हैं। इसमें तलवार, कटार, भाला, मुग्दर व धनुष-बाण जैसे हथियारों का प्रयोग सिखाया जाता है। इस खेल में 13 राज्यों के करीब 200 खिलाड़ियों ने भाग लिया, जिसमें हरियाणा के 5 खिलाड़ी थे।
मलखंभ को ओलंपिक में पहुंचाने का लक्ष्य
मलखंभ या मल्लखम्भ भी अखाड़े से निकला है। इसमें प्रयुक्त मल्ल का अर्थ है योद्धा या पहलवान और खम्भ का मतलब है खम्भा। यह भारत का पारंपरिक खेल है। मध्य प्रदेश ने 9 अप्रैल, 2013 को इसे राज्य का खेल घोषित किया। लकड़ी के ऊर्ध्वाधर खम्भे पर किए जाने किए जाने वाले योग या जिम्नास्टिक ने पहली बार 1936 में आयोजित ओलंपिक में दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद यह पूरी दुनिया में फैल गया। 2019 में पहली बार मलखम्ब विश्व चैम्पियन का आयोजन किया गया, जिसमें 15 से अधिक देशों के 150 खिलाड़ी भाग लेने मुंबई पहुंचे थे। मलखम्ब फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव धर्मवीर सिंह ने कहा कि यह खेल 35 देशों में खेला जा रहा है। वे कहते हैं कि हरियाणा के हर जिले में मलखम्ब प्रशिक्षण केंद्र खोला जाना चाहिए। साथ ही, हरियाणा के खेलों की सूची में शामिल करना चाहिए ताकि इस खेल में ख्यातिप्राप्त खिलाड़ियों को भी अन्य खेलों के समान सुविधाएं प्राप्त हो। इसके अलावा, मलखम्ब को राज्य के स्कूल गेम्स में भी शामिल किया जाना चाहिए।
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