सतही आधार गलत परिणाम
May 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

सतही आधार गलत परिणाम

‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ अनुमान पर जारी रिपोर्ट में भारत को 11वें स्थान पर रखा। स्पष्ट है कि ईपीआई बनाते वक्त सतही पैमाने तय किए गए

by सुधीर मिश्र व सिमरन गुप्ता
Jul 1, 2022, 02:15 pm IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) में भारत को 180 देशों की सूची में सबसे निचले पायदान पर रखा गया। इसके एक हफ्ते बाद ही दुनिया की जानी-मानी सलाहकार कंपनी आर्थर डी. लिटिल ने ‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ अनुमान पर जारी रिपोर्ट में भारत को 11वें स्थान पर रखा। स्पष्ट है कि ईपीआई बनाते वक्त सतही पैमाने तय किए गए और अवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया

हाल ही में दो रिपोर्ट जारी हुई। दोनों के विषय एक-दूसरे से जुड़े थे, लेकिन भारत के मामले में दोनों के नतीजे एकदम अलग। हाल ही में दुनिया की जानी-मानी सलाहकार कंपनी आर्थर डी. लिटिल ने ‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ अनुमान पर मुंबई में पिछले दिनों रिपोर्ट जारी की जिसमें दुनिया और विशेष रूप से भारत की बात की गई। इसने भारत को 11वें स्थान पर रखा और गौरतलब बात यह है कि हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई देशों से भारत को ऊपर रखा गया। वहीं, कुछ समय पहले पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) पर जारी रिपोर्ट में भारत को 180 देशों की सूची में सबसे नीचे रखा गया। आखिर माजरा क्या है?

‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ पर बीते हफ्ते मुंबई में जारी रिपोर्ट और आर्थर डी. लिटिल का प्रतिनिधित्व जर्मनी और सिंगापुर के बड़े प्रतिष्ठित लोगों ने किया। दूसरी ओर, 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर ईपीआई की जो रिपोर्ट आई, उसने लोगों को सकते में डाल दिया। येल सेंटर फॉर एनवायरनमेंट लॉ एंड पॉलिसी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इन्फॉर्मेशन नेटवर्क ने यह रिपोर्ट जारी की और इसमें भारत सबसे निचले पायदान पर था।

ईपीआई रिपोर्ट
2022 की ईपीआई रिपोर्ट ने पिछले 10 वर्षों के उत्सर्जन ग्राफ को आधार बना 2050 में उत्सर्जन स्तर का अनुमान लगाते हुए पाया कि ज्यादातर देश 2050 तक जीरो-कार्बन का लक्ष्य पूरा नहीं करने जा रहे। भारत को ‘अत्यधिक खराब वायु गुणवत्ता’ और ‘तेजी से बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन’ के लिए पहली बार अप्रत्याशित रूप से रैंकिंग में सबसे नीचे रखा गया। दूसरी ओर, लगभग 58 लाख की आबादी के साथ 43,000 वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाला डेनमार्क नंबर-1 रहा। अन्य उच्च स्कोरिंग देशों में यूनाइटेड किंगडम और फिनलैंड शामिल थे। ईपीआई के अनुसार दोनों देशों ने हाल के वर्षों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने वाली नीतियां अपनाई जिससे उनका प्रदर्शन बेहतर हो गया। स्वीडन और स्विट्जरलैंड भी इस सूचकांक में शीर्ष देशों में शामिल थे और हवा और पानी की गुणवत्ता के मामले में दूसरे देशों से बेहतर रहे।

लेकिन क्या यह तुलना सही है?
भारत की कई सकारात्मक उपलब्धियां रही हैं। पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने, गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से रिकॉर्ड बिजली उत्पादन, सबसे निचली रेखा की आबादी को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता और उत्सर्जन स्तर में स्पष्ट कमी के बावजूद भारत को निचले पायदान पर रखा गया।

2022 की ईपीआई रिपोर्ट ने पिछले 10 वर्षों के उत्सर्जन ग्राफ को आधार बनाते हुए 2050 में उत्सर्जन स्तर का अनुमान लगाते हुए पाया कि ज्यादातर देश 2050 तक जीरो-कार्बन का लक्ष्य पूरा नहीं करने जा रहे। भारत को ‘अत्यधिक खराब वायु गुणवत्ता’ और ‘तेजी से बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन’ के लिए पहली बार अप्रत्याशित रूप से रैंकिंग में सबसे नीचे रखा गया।


पर्यावरण लक्ष्यों से तेज भारत की गति

16 जून, 2022 को छपी खबरों के अनुसार भारत ने वर्ष 2021 में अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता में 15.4 गीगावाट की वृद्धि की और इस तरह वह चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। 2016-2020 के बीच भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र साल-दर-साल 17.33% की दर से बढ़ा है। भारत ने अक्षय ऊर्जा क्षमता में 1.97 गुना की सबसे तेज वृद्धि हासिल की। सौर ऊर्जा क्षेत्र तो वह 18 गुना तेजी से बढ़ा। भारत अपने तय लक्ष्य से तेज चल रहा है। भारत ने गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 40% स्तर पाने का लक्ष्य नवंबर 2021 में ही प्राप्त कर लिया जबकि इसकी समय सीमा 2030 थी।

पिछले साल ग्लासगो में सीओपी-26 (पार्टियों का सम्मेलन, 26वां सत्र) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुंच जाएगी और तब देश की ऊर्जा जरूरतों में इसकी भागीदारी 50 प्रतिशत हो जाएगी। प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 2005 के स्तर की तुलना में 1 अरब टन की कमी करेगा और 2070 तक शून्य उत्सर्जन का स्तर प्राप्त करेगा। यह भी गौर करने वाली बात है कि भारत ने तय समय से पांच महीने पहले ही पेट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल किया है।

भारत जितना विशाल है, इसमें जितनी आबादी बसती है, उस आधार पर इसकी तुलना उन देशों से बिल्कुल नहीं हो सकती जिनकी आबादी भारत के एक महानगर जितनी हो। शीर्ष रैंक वाले डेनमार्क की आबादी भारत के किसी भी महानगर से कम है। ऐसी किसी भी तुलना को तभी न्यायोचित कहा जा सकता है जब यह क्षेत्र, जनसंख्या और अन्य जनसांख्यिकीय संकेतकों के संदर्भ में समान या मिलते-जुलते देशों के बीच हो। इसके अलावा, ईपीआई विकसित और विकासशील देशों के बीच सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, उत्सर्जन के स्तर, ऊर्जा उपयोग और अन्य महत्वपूर्ण विशेषताओं में अंतर को ध्यान में रखने में भी विफल रहा है। क्या आज विकासशील देशों को उस पर्यावरणीय नुकसान के लिए दोषी ठहराया जा सकता है जो विकसित देशों में अंधाधुंध विकास के कारण पहले ही हो चुका है? क्या विकसित देशों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी को ध्यान में नहीं रखना सही है?

अवैज्ञानिक आकलन
ईपीआई को आड़े हाथों लेते हुए भारत सरकार ने 8 जून, 2022 को इसे अवैज्ञानिक और पक्षपातपूर्ण बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा कि प्रदर्शन के आकलन के लिए उपयोग किए जाने वाले कई संकेतकों से गलत निष्कर्ष निकाले गए और वे अनुमानों और अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित थे।

ईपीआई की रैंकिंग जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने, वायु गुणवत्ता, स्वच्छता और पेयजल, भारी धातु, अपशिष्ट प्रबंधन, जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं, मत्स्य पालन, अम्लीय वर्षा, कृषि और जल संसाधन की 11 श्रेणियों के आधार पर तय की जाती है और इसमें 40 संकेतकों से जुड़े प्रदर्शन पर विचार किया जाता है। ईपीआई के ताजा अनुमानों से संकेत मिलता है कि वर्तमान रुझानों के अनुसार, 2050 में केवल चार देश चीन, भारत, अमेरिका और रूस दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान कर रहे होंगे। ईपीआई के शोधकर्ताओं ने पिछले दशक के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की स्थिति को एक अहम संकेतक के रूप में मान लिया, जो सही नहीं है। ईपीआई ने 2050 का लक्ष्य भी तय कर लिया और मान लिया कि तब तक पूरी दुनिया को जीरो कार्बन के स्तर तक पहुंच जाना चाहिए। भारत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुका है और इसलिए ग्लासगो में सीओपी-26 में वर्ष 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन स्तर पाने का लक्ष्य रखा गया। इसके बावजूद ईपीआई रिपोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि भारत कई अन्य देशों के साथ जीरो कार्बन उत्सर्जन के अपने लक्ष्य को नहीं पाने जा रहा।

उधर सरकार ने कहा है कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए सबसे सटीक तरीका यह होगा कि प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापा जाए। भारत ने इस पर भी आपत्ति जताई कि कृषि जैव विविधता, मिट्टी का स्वास्थ्य, अनाज बरबादी, पानी की गुणवत्ता, पानी उपयोग दक्षता, अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा अक्षमता और कई अन्य कारकों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है।

भारत रिकॉर्ड इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन की ओर बढ़ रहा है, अपने वन क्षेत्र को लगातार बढ़ा रहा है, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण के बीच टकराव के बावजूद अपने वन्य जीवन को सुरक्षित कर रहा है। उसे विदेशी शैक्षणिक संस्थानों से किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है कि उसे कैसे रैंक किया जाना चाहिए और किन कारणों से। 

चौंकाने वाली बात यह है कि ईपीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर सबसे कम स्कोर उन देशों को गया जो नागरिक अशांति और अन्य संकटों (जैसे म्यांमार या हैती) से जूझ रहे हैं या भारत, विएतनाम, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देश जिन्होंने सतत विकास की जगह आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी।
भारत के लिए क्या महत्वपूर्ण है, इसे विभिन्न न्यायालयों के ऐसे कई निर्णयों से समझा जा सकता है जिनमें बार-बार कहा गया कि देश के आर्थिक विकास की तुलना में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भारत में अदालतों ने स्पष्ट रूप से बताया है कि जब पर्यावरण बनाम अर्थव्यवस्था की बात आती है, तो पर्यावरण सर्वोच्च होगा। इसलिए अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों के बारे में फैसला करते समय इसके आर्थिक पहलू की कोई भूमिका नहीं होती और विचार केवल इस आधार पर होता है कि भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित पर्यावरण कैसे सुनिश्चित किया जाए और इससे हुए नुकसान की भरपाई कैसे हो।

इसके साथ ही मंत्रालय ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि कार्बन उत्सर्जन को अवषोषित करने के मामले में देश के वनों और आर्द्रभूमि दोनों की ही महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन ईपीआई ने 2050 का अनुमान लगाते समय इसे नजरअंदाज किया। अफसोस तो यह कि ईपीआई रिपोर्ट का कोई भी संकेतक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता के मामले में भारत द्वारा अपनाई गई नीतियों और इसके प्रभाव की बात नहीं करता।

विदेशी पैमाने भेदभावपूर्ण
इस तरह ईपीआई रिपोर्ट भारत में पर्यावरण को स्वच्छ रखने में अदालतों, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, थिंक-टैंक, गैर-सरकारी संगठनों से लेकर आम लोगों के संतुलनकारी कार्यों का अध्ययन करने में विफल रही है। भारत में ओलिव रिडले कछुए, ब्लैक बग, जंगली गधा, बाघ, हाथी, डॉल्फिन जैसी प्रजातियों की जिस तरह रक्षा की गई, उसपर भी गौर नहीं किया गया जबकि अधिकतर अफ्रीकी देशों समेत दुनिया के बाकी हिस्सों में सरकारी उदासीनता के कारण कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। बाघों को बचाने के मामले में भारत में पिछले 40 साल में शानदार प्रगति हुई। 75 से अधिक बाघ अभयारण्य विकसित किए गए और इनके 10 किमी के घेरे में किसी भी इनसानी बस्ती की अनुमति नहीं है। आज बाघों की प्रजातियों के मामले में भारत सबसे समृद्ध देश है। 2021 में दुनिया के 70 प्रतिशत से ज्यादा बाघ भारत में हैं। देश में बाघों की आबादी 2006 में 1,411 से बढ़कर 2018 में 2,967 हो गई।

नेट जीरो के अपने 2070 के लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास में, भारत दिल्ली जैसे महानगरों में तेजी से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर बढ़ रहा है, जिससे ई-कॉमर्स और एग्रीगेटर कंपनियों के लिए इसी साल सौ फीसदी स्वच्छ ईंधन को अपनाना अनिवार्य हो गया है। जब विदेश के विश्वविद्यालय किताबी सैद्धांतिक मानकों पर सामान्य धारणाएं बनाते हैं तो वे इस मामले में चूक जाते हैं कि एक देश विशेष के लिए जलवायु न्याय के लक्ष्य दूसरे देश के जलवायु मापदंडों के लक्ष्य से अलग भी हो सकते हैं। भारत रिकॉर्ड इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन की ओर बढ़ रहा है, अपने वन क्षेत्र को लगातार बढ़ा रहा है, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण के बीच टकराव के बावजूद अपने वन्य जीवन को सुरक्षित कर रहा है। उसे विदेशी शैक्षणिक संस्थानों से किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है कि उसे कैसे रैंक किया जाना चाहिए और किन कारणों से।

1-लेखक-अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय डोर टेनैंट ऐट नं.5 बैरिस्टर्स चैम्बर्स, युनाइटेड किंगडम 2- लेखक-अधिवक्ता

Topics: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ईपीआई की रैंकिंग जलवायु परिवर्तनपर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

world Water Day

विश्व जल दिवस 2025: ग्लेशियर संरक्षण क्यों है मानवता की सबसे बड़ी जरूरत?

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

सेलेबी की सुरक्षा मंजूरी रद, भारत सरकार का बड़ा एक्शन, तुर्किये के राष्ट्रपति की बेटी की है कंपनी

आतंकी आमिर नजीर वानी

आतंकी आमिर नजीर वानी की मां ने कहा था सरेंडर कर दो, लेकिन वह नहीं माना, Video Viral

Donald trump want to promote Christian nationalism

आखिरकार डोनाल्ड ट्रंप ने माना- ‘नहीं कराई भारत-पाक के बीच मध्यस्थता’

प्रतीकात्मक चित्र

पाकिस्तान फिर बेनकाब, न्यूक्लियर संयंत्र से रेडियेशन का दावा झूठा, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने दी रिपोर्ट

Boycott Turkey : जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने तोड़े तुर्किये से संबंध, JNU सहित ये संस्थान पहले ही तोड़ा चुकें हैं नाता

Waqf Board

वक्फ संशोधन कानून पर फैलाया जा रहा गलत नैरेटिव : केंद्र सरकार 

कोलकाता में फर्जी पासपोर्ट रैकेट में बड़ा खुलासा, 37 ने बनवाए पासपोर्ट और उनका कोई अता-पता नहीं

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऑपरेशन सिंदूर: प्रतीकों की पुकार, संकल्प की हुंकार

पंजाब में कानून व्यवस्था ध्वस्त : विदेशी छात्र की चाकुओं से गोदकर हत्या

ये साहब तो तस्कर निकले : पंजाब में महिला पुलिसकर्मी के बाद अब DSP गिरफ्तार, जेल से चलता था ड्रग्स का व्यापार

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies