मनोरंजन उद्योग में बच्चों के लिए फिल्मों, टीवी, रियलिटी शो, ओटीटी प्लेटफार्मों, में उनकी भागीदारी को विनियमित करने के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने गाइडलाइन जारी की है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग एनसीपीसीआर के प्रमुख प्रियंक कानूनगो ने शुक्रवार को मनोरंजन उद्योग में बच्चों के काम-काज से जुड़ी नई गाइडलाइन का मसौदा तैयार कर जारी कर दिया है। जिसे जल्दी ही वैधानिक रूप मिल सकेगा।
‘मनोरंजन उद्योग में बच्चों की भागीदारी के लिए दिशानिर्देश’ नाम से नाम से जारी इस गाइडलाइन के मसौदे में बाल कलाकारों के अधिकारों को पूरी तरह स्पष्ट करते हुए इनके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान किया गया है। इस गाइड लाइन के बाद मनोरंजन के नाम पर बच्चों से फूहड़ सीन करवाना या खतरनाक और उटपटांग काम में लगाए रखना अब मुश्किल होगा।
क्या है नई गाइडलाइन्स में
गाइड लाइन्स के अनुसार बाल कलाकार को आत्म सम्मान के साथ काम करने और उससे जुड़े फैसलों में भाग लेने का अधिकार होगा। उससे ऐसा कोई रोल नहीं करवाया जा सकेगा जिसकी वजह से उसे शर्मिंदगी उठानी पड़े या उसे भावनात्मक चोट पहुंचे। उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना होगा। अक्सर रियलिटी शोज में जज बच्चों से बहुत ही बदतमीजी से पेश आते हैं। इस तरह के व्यवहार की नई गाइडलाइन में साफ मनाही की गई है। बच्चों से किसी भी तरह के नग्नता या अश्लीलता के सीन नहीं करवाने की बिलकुल मनाही है।
बाल कलाकारों को मिलने वाली फीस का कम से कम 20 प्रतिशत हिस्सा किसी नेशनलाइज्ड बैंक में फिक्स्ड डिपोजिट के तौर पर जमा करना होगा। जो उसे वयस्क होने पर मिल सकेगा। हालांकि अगर उसकी भूमिका सिर्फ एक्सट्रा या बैकग्राउंड आर्टिस्ट की हुई तो यह नियम लागू नहीं होगा।
प्रोडक्शन कंपनी को यह सुनिश्चित करना होगा कि बाल कलाकारों के लिए काम का माहौल सुरक्षित हो और उन्हें हानिकारक प्रकाश, परेशान करने वाले या हानिकारक सौंदर्य प्रसाधनों के संपर्क में नहीं आना चाहिए। साथ ही उन्हें वयस्कों, विशेष रूप से विपरीत जेंडर वालों के साथ ड्रेसिंग स्पेस या कमरे साझा करने नहीं दिया जाना चाहिए। बच्चों को शराब, धूम्रपान या किसी भी असामाजिक गतिविधि और आपराधिक व्यवहार में लिप्त नहीं दिखाया जाना चाहिए।
मनोरंजन उद्योग में बाल अधिकारों का संरक्षण बेहद जरूरी : प्रियांक कानूनगो
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि मनोरंजन उद्योग में प्रत्येक प्लेटफॉर्म चाहे वो सिनेमा हो, टीवी सीरियल, रिएलिटी शो, ओटीटी व सोशल मीडिया हर जगह बच्चे काम करते दिख जाते हैं। ऐसा में जरूरी था कि ऐसा दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार किया जाए जो बच्चों के अधिकारों का संरक्षण कर सके। इसी को ध्यान में रखते हुए अब बच्चों से लगातार 27 दिनों से अधिक काम नहीं करवाया जाएगा। बच्चे की आय का 20 फीसदी उसके खाते में जमा करना होगा। निर्माताओं को किसी शूटिंग में बच्चे को शामिल करने के लिए संबंधित जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति प्राप्त करने की जरूरत होगी, जिसमें इस बात का डिस्क्लेमर देना होगा कि बच्चों के शोषण या उत्पीडऩ से रोकने के उपाय सुनिश्चित किए गए हैं। काम के दौरान बच्चे को प्रत्येक तीन घंटे के बाद एक ब्रेक देना होगा और प्रतिदिन उसे एक से अधिक पाली में काम नहीं कराया जाएगा। इतना ही नहीं, बाल कलाकार को बंधुआ मजदूर प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के तहत बंधुआ मजदूरी के लिए कोई करार नहीं किया जाएगा। साथ ही निर्माता को यह सुनिश्चित करना होगा कि शूटिंग में लगे बच्चों की स्कूली शिक्षा प्रभावित न हो व मनोरंजन उद्योग में व्यस्तता के कारण स्कूल में अनुपस्थित रहे बच्चे को निर्माता द्वारा नियुक्त एक निजी ट्यूटर द्वारा पढ़ाया जाएगा।
आखिर क्यों हुई गाइडलाइन की आवश्यकता
बच्चों के काम से संबंधी कई तरह के कानून और नियम उपलब्ध हैं, लेकिन वयस्कों के प्रभाव वाली मनोरंजन इंडस्ट्री में बाल कलाकारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं थी। इससे पहले वर्ष 2011 में भी आयोग की ओर से एक गाइडलाइन तैयार की गई थी। मगर उसके बाद से बच्चों से संबंधित कानूनों में बहुत बदलाव आ गया है। साथ ही मनोरंजन उद्योग में आए बदलावों ने नई चुनौतियां पेश कर दी हैं। हाल में सोशल मीडिया के लिए कंटेंट तैयार करने के नाम पर बच्चों से अश्लील हरकतें करवाने का खूब सिलसिला शुरू हुआ है।
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