प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भाजपा सरकार को आठ वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन आठ वर्षों में कई तरह के वैश्विक-घरेलू उतार-चढ़ाव आए, परंतु सरकार ने अपनी दूरदृष्टि और कार्यप्रणाली से तस्वीर बदल दी। सरकार की नजर अगले 25 वर्ष में दुनिया के शीर्ष पर पहुंचने पर लगी है जब भारत अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के आठ वर्षों के कार्यकाल का विश्लेषण करते समय एक बात ध्यान में रखनी होगी कि वैश्विक-घटनाक्रम और घरेलू परिस्थितियों के लिहाज से यह बहुत उतार-चढ़ाव का समय रहा है। उनके कार्यकाल के दो चरण रहे हैं। एक, 2014 से 2019 तक और फिर 2019 से अब तक। इन दोनों कार्यकालों में अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास के कार्यक्रमों के साथ-साथ विश्व-मंच पर भारत का बढ़ता महत्व स्थापित हुआ है। दुनिया मान रही है कि अब भारत का समय आ गया है। सबसे बड़ी उपलब्धि आर्थिक स्थिरता के क्षेत्र में है। 2013 में दुनिया के आर्थिक रूप से सबसे जोखिम भरे पांच देशों में भारत भी शामिल था। आज हम सबसे तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं।
सरकार ने एक सौ नए शहरों का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, गांव-गांव तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का वादा किया। ‘ट्रेडीशन’, ‘टैलेंट’, ‘टूरिज्म’, ‘ट्रेड’ और ‘टेक्नोलॉजी’ के 5-टी के सहारे ब्रांड इंडिया को कायम करने की इच्छा व्यक्त की गई।
स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है। हमारी दृष्टि गुजरे 75 वर्षों से ज्यादा अगले 25 वर्षों पर है। 2047 में हम स्वतंत्रता के एक सौ वर्ष पूरे करेंगे। प्रधानमंत्री ने आजादी के अमृत महोत्सव से आजादी के शताब्दी वर्ष तक 25 साल की अवधि को ‘आजादी के अमृत काल’ के रूप में मनाने का आह्वान किया है। लोगों के सामूहिक प्रयासों से भारत को अगले 25 वर्ष में दुनिया के शीर्ष पर पहुंचाने का समय।
अमृत-काल
प्रधानमंत्री ने इस अवधि को ‘अमृत-काल’ कहा है। दुनिया के शिखर पर पहुंचने में सरकार के पिछले आठ वर्षों का काम महत्वपूर्ण है। इस पूरी अवधि को कई दृष्टिकोणों से देखा और समझा जा सकता है, पर हम इसे चार कसौटियों पर कसकर देखेंगे— 1. चुनौतियों का सामना, 2. व्यवस्थागत सुधार, 3. सामाजिक रूपांतरण और 4. विदेश नीति। नोटबंदी, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक, किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत तथा एक्ट ईस्ट पॉलिसी, पूर्व सैनिकों के लिए ‘वन रैंक-वन पेंशन’ और सेना का पुनर्गठन जहां पहले दौर की देन है, वहीं जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने, तीन तलाक पर रोक और नागरिकता कानून बनाने का काम दूसरे दौर की। आर्थिक उदारीकरण का काम दोनों दौरों में हुआ और महिला सशक्तिकरण और स्वच्छ भारत अभियान जैसे कार्यक्रमों से जुड़े काम दोनों चरणों में हुए और अभी जारी हैं। सामाजिक बदलाव के उपकरण के रूप में सबसे अच्छा उदाहरण है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान, जिसकी शुरुआत 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी।
बढ़ता आत्मविश्वास
रक्षा उद्योगों में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल ने दूसरे चरण में जोर पकड़ा है। शीघ्र ही भारत रक्षा सामग्री का निर्यात करने वाले देशों की अगली कतार में होगा। विदेश-नीति की परिपक्वता भी इस दौर में देखने में आ रही है। खासतौर से यूक्रेन युद्ध के समय भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रिश्तों के अंतर्विरोधों को जिस कुशलता से इस सरकार ने संभाला है, वह उल्लेखनीय है।
नए उभरते शीतयुद्ध के बीच भारत ने अपनी विदेश-नीति की स्वतंत्रता को स्थापित किया है।
पिछले साल 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबान की सफलता से भारतीय विदेश नीति को धक्का लगा था, पर धीरे-धीरे अफगानिस्तान की नई व्यवस्था के साथ भी हमारे तार जुड़ रहे हैं। भारत ने अफगानिस्तान को 50 हजार टन गेहूं के रूप में मानवीय सहायता देकर सद्भावना हासिल की है। हाल में भारत के राजनयिकों ने अफगान विदेशमंत्री के साथ मुलाकात करके सम्पर्कों को बेहतर बनाया है।
आर्थिक सुधार
इस दौरान अर्थव्यवस्था सुधार के अनेक महत्वपूर्ण काम हुए। आर्थिक सुधार लम्बी और जटिल प्रक्रिया है। एक बड़ा काम था योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन। एक और काम है मौद्रिक नीति कमेटी की स्थापना। यह समिति देश में ब्याज की दरें तय करने का काम करती है। इसकी स्थापना 2016 में हुई थी। एक और काम है दिवालिया कानून यानी कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड। देश के राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्जों की वसूली नहीं हो पाने की विकराल समस्या सामने आई।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की दिशा में जनधन+आधार+मोबाइल फोन की त्रयी पर आधारित जैम योजना ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब तबकों के बीच एक नई क्रांति को जन्म दिया है। प्रधानमंत्री किसान योजना को भी इसके साथ जोड़ा जा रहा है और इस कार्यक्रम में जहां फरवरी 2019 में लाभार्थियों की संख्या एक करोड़ थी, वह जनवरी 2022 में दस करोड़ हो गई है।
भारत में 2016 से पहले ऐसा कोई अकेला कानून नहीं था जो ‘इनसॉल्वेंसी’ एवं ‘बैंकरप्ट्सी’ को एक साथ परिभाषित करता हो। पहले इसे परिभाषित करने के लिए 12 कानूनों का इस्तेमाल किया जाता था, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी अधिक पुराने हो चुके थे। नया कानून लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा।
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) विधेयक को संविधान संशोधन अधिनियम 2017 के रूप में पेश किया गया था। इसे पास कराने के लिए एक तरफ कांग्रेस समेत सभी विरोधी दलों को भरोसे में लिया गया और इसके लागू होने के बाद इससे जुड़े अंतर्विरोधों का सामना सरकार ने किया। देश में टैक्स सुधार की यह अबतक की सबसे बड़ी कोशिश है।
आर्थिक विकास में एक बड़ा अड़ंगा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रास्ते में लगी रुकावटों के कारण है। इसमें फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड की समाप्ति एक बड़ा कदम है। मई, 2017 में केंद्रीय कैबिनेट ने 25 साल पुराने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) को खत्म करने का फैसला किया। इससे विदेशी पूंजी निवेश के प्रस्तावों पर फैसला जल्द हो सकेगा। इसकी जगह अब एक नया तंत्र काम कर रहा है।
मई 2014 में मोदी सरकार नए जोश के साथ आई थी, पर उसके सामने बहुत सी पुरानी चुनौतियां मौजूद थीं। उनके अलावा कोविड महामारी के रूप में एक ऐसी चुनौती आई, जिसका पहले से कोई अनुमान ही नहीं था। महामारी से देश अब उबर रहा है और भारत एक बार फिर से दुनिया की सबसे तेज विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था का सम्मान हासिल करने जा रहा है।
दिवालिया कानून बनने के बाद उसमें भी बदलाव की जरूरत महसूस की गई है। दिवालिया कानून (आईबीसी) के सहारे बैंकों की खोई रकम को वापस प्राप्त किया जा सकेगा, पर अब भी कई तरह के कानूनी पचड़े हैं। सरकारी बैंकों को इन पचड़ों से बचाने के लिए बैड बैंक का गठन किया गया है। सबसे मुश्किल सुधार श्रम-कानूनों का है। केंद्र सरकार 29 श्रम कानूनों को चार व्यापक श्रम-कानूनों के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रही है। देश में 5-जी टेलीकम्युनिकेशन प्रणाली को लागू करने की तैयारी है।
सन् 2017 में जब मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए, तब कहा गया कि हमने 1,175 पुराने कानूनों को खत्म किया है। इसके पहले 64 साल में देश ने 1,301 कानूनों को खत्म किया था। आज दीमक लगी व्यवस्था की सफाई और नए कानूनों की जरूरत है। आईपीसी और सीआरपीसी के गैर-जरूरी प्रावधानों को हटाने के अलावा मोटर वाहन कानून, पर्यावरण कानून, उपभोक्ता अधिकारों के कानून बने।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में आधारभूत संरचना पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही। इसके बाद एक कार्यबल बनाया गया था, जिसने 102 लाख करोड़ की परियोजनाओं की पहचान की है। उसके बाद नए साल पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) की घोषणा की, जिसके तहत पांच साल में 102 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को पूरा किया जाएगा। इस परियोजनाओं की झलक उसके बाद से हर साल के बजट में दिखाई पड़ती है।
जुलाई 2020 में नई शिक्षा नीति की घोषणा के बाद से उसे लागू करने का कार्यक्रम चल रहा है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए कॉमन प्रवेश परीक्षा शुरू हो गई है। अब छात्र चार वर्षीय ‘मल्टी डिसिप्लिनरी अंडरग्रेजुएट’ कार्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं, जिनसे बाहर होने और नए कार्यक्रमों में शामिल होने के विकल्प भी उपलब्ध हैं। शिक्षा के मामले में देश एक लम्बी छलांग लगाने की तैयारी कर रहा है।
जनता से संवाद
भाजपा सरकार के कार्यकाल का विश्लेषण करते समय सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी की संवाद-शैली का जिक्र करना जरूरी है। उनके संदेशों के कथ्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है उनकी शैली और मंच-कला। उन्हें माहौल बनाना आता है। वे जनता की भाषा में बोलते हैं। वह भी ऐसी, जो सबको समझ में आती है। ‘मन की बात’ शीर्षक से उनका नियमित संदेश इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह संवाद अपने आप में विशिष्ट और निराला है। हर महीने के आखिरी रविवार की सुबह 11 बजे आकाशवाणी और दूरदर्शन के चैनलों पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम के 89 एपिसोड हो चुके हैं।
मई 2014 में मोदी सरकार नए जोश के साथ आई थी, पर उसके सामने बहुत सी पुरानी चुनौतियां मौजूद थीं। उनके अलावा कोविड महामारी के रूप में एक ऐसी चुनौती आई, जिसका पहले से कोई अनुमान नहीं था। महामारी से देश अब उबर रहा है और भारत एक बार फिर से दुनिया की सबसे तेज विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था का सम्मान हासिल करने जा रहा है। 26 मई, 2014 को जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला था, तब विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने कहा था कि यह ‘30 वर्षों में भारत में घटित हुई सबसे बड़ी सकारात्मक घटना है।’ 9 जून, 2014 को संसद के पहले अधिवेशन में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मोदी सरकार के स्वप्नों का एक खाका पेश किया, जिसमें भविष्य की योजनाएं थीं। उन योजनाओं की सार्थकता और सफलता पर विचार करने के पहले हमें उन चुनौतियों की ओर भी देखना होगा, जो इस बीच सामने आईं।
चुनौतियों का सामना
शुरुआत राष्ट्रीय बैंकों के बढ़ते एनपीए से हुई। इन बैंकों की पूंजी कर्जों में चली गई और उसकी वापसी नहीं हुई। इसके बाद सरकार ने उद्योगीकरण के लिए भूमि-अधिग्रहण कानून में बदलाव की कोशिश की। राज्यसभा में अल्पमत होने के कारण सरकार को उसमें विफलता मिली। जिस वक्त भाजपा सरकार सत्ता में आई, पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था 2008 की मंदी से उबर आई थी। 2014 से 2016 के बीच दुनियाभर में पेट्रोलियम की सप्लाई जरूरत से ज्यादा हो गई, जिससे उसकी कीमतें 70 प्रतिशत तक गिर गर्इं। पर यह एक छोटा दौर था। पेट्रोलियम निर्यात करने वाले ओपेक देशों ने सप्लाई को नियंत्रित करना शुरू किया और उसके बाद पेट्रोलियम की कीमतों में तेजी का सिलसिला शुरू हुआ और 2018 के बाद पेट्रोलियम की कीमतों में तेजी आने लगी।
2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से एक वायरस की शुरूआत हुई, जिसने 2020-21 में दुनियाभर में तबाही मचा दी। इसका असर आज भी कायम है। इस महामारी ने दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया। वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी में बजाय संवृद्धि के, संकुचन आया। फरवरी 2019 में पुलवामा में हुए एक आतंकवादी हमले के कारण पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति पैदा हो गई। अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चीन के साथ फौजी टकराव भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया, जिसका समाधान आज तक नहीं हुआ है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब सरकार देश को ऊंचाई पर ले जाने का प्रयास कर रही थी, तब उसके सामने इन अवरोधों का सामना करने की चुनौती खड़ी हुई। इन चुनौतियों का सामना उपलब्धियों के खाते में दर्ज होना चाहिए।
पिछले दो-ढाई वर्ष के दौरान, जब भारत ने शेष विश्व के साथ महामारी के प्रकोप का सामना किया, हमारा ध्यान समाज के कमजोर वर्गों को सुरक्षा कवच प्रदान करने के साथ-साथ महामारी के स्वास्थ्य परिणामों के लिए एक सुसंगत प्रतिक्रिया प्रदान करने पर रहा। भारत ने कोविड की तीन लहरों का सामना किया। पहली लहर 2020 के मध्य में और दूसरी मई 2021 के अंत में और तीसरी ओमीक्रोन वेरिएंट के रूप में इस साल के शुरू में आई।
दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रमों में से एक, भारतीय राष्ट्रीय कोविड टीकाकरण कार्यक्रम ने न केवल घरेलू स्तर पर कोविड टीकों के उत्पादन में सहयोग किया, बल्कि इसने विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या को नि:शुल्क टीके भी सुनिश्चित किए। इन सबके अलावा देश के 80 करोड़ लोगों को नि:शुल्क अनाज उपलब्ध कराकर दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक खाद्य-सुरक्षा कार्यक्रम चलाया।
भविष्य के सपने
मोदी सरकार के आठ वर्षों के दौरान ही वैश्विक माहौल उतना अनुकूल नहीं रह गया, जितना पहले था, पर भारत के आर्थिक आधार में आए अहम बदलावों ने संवृद्धि का ऐसा मंच तैयार कर लिया है, जो बड़े से बड़े झटके को झेल सकता है। 9 जून, 2014 को संसद के दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में केंद्र की नई सरकार का केवल आत्मविश्वास ही नहीं बोला, बल्कि उसमें भविष्य के स्वप्नों की रूपरेखा भी थी। सरकार के कार्यक्रमों में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण एक सचाई के रूप में सामने आया, मजबूरी के रूप में नहीं। उसमें बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा था। एक विशाल परिकल्पना। सरकार ने एक सौ नए शहरों का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, गांव-गांव तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का वादा किया। ट्रेडीशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलॉजी के 5-टी के सहारे ब्रांड इंडिया को कायम करने की मनोकामना व्यक्त की गई। सरकार ने आधार-संरचना विकास कार्यक्रम पेश किया।
बुनियादी निवेश
सरकार ने बुनियादी निवेश पर ध्यान केंद्रित किया और राजमार्ग निर्माण की गति काफी तेज की गई। केवल राजमार्ग ही नहीं, पहली बार ग्रामीण सड़कों का कार्यक्रम इसी दौरान शुरू हुआ है। अक्षय ऊर्जा के कार्यक्रमों में जबर्दस्त सुधार हुआ। डिजिटल इंडिया क्रांति इस सरकार की एक और बड़ी सफलता है। एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) और इंडिया स्टैक की मदद से भारत डिजिटल भुगतान में विश्व का अग्रणी देश बन गया है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना 1 दिसंबर, 2018 से लागू हुई थी। इस योजना के तहत, जमीन रखने वाले सभी पात्र किसान प्रति वर्ष 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं। यह राशि हर 4 महीने में 2,000 रुपये की 3 समान किस्तों में सीधे बैंक खाते में जमा की जाती है। महामारी के दौरान यह योजना किसानों के लिए वरदान साबित हुई।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की दिशा में जनधन+आधार+मोबाइल फोन की त्रयी पर आधारित जैम योजना ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब तबकों के बीच एक नई क्रांति को जन्म दिया है। प्रधानमंत्री किसान योजना को भी इसके साथ जोड़ा जा रहा है और इस कार्यक्रम में जहां फरवरी 2019 में लाभार्थियों की संख्या एक करोड़ थी, वह जनवरी 2022 में दस करोड़ हो गई है। इस कार्यक्रम के तहत दस किस्तें किसानों के खाते में जमा की जा चुकी हैं। इस समय ग्यारहवीं किस्त खातों में जा रही है। सामाजिक विकास से जुड़े नए कार्यक्रमों की सूची बहुत लम्बी है, जो बताती है कि इन कार्यक्रमों का गांव-गांव और गली-गली पर क्या प्रभाव पड़ा है।
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