हरियाणा के राखीगढ़ी में किए जा रहे पुरातात्विक उत्खनन में मिली नई सभ्यता ने पुरानी स्थापित मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है। इतिहास कहता है मोहनजोदड़ो सबसे पुरानी सभ्यता है, लेकिन राखीगढ़ी में मिली सभ्यता इससे भी लगभग 1,000-1,500 साल पुरानी है। यही नहीं, इसका क्षेत्र भी मोहनजोदड़ो से व्यापक है
इतिहास मनगढ़ंत नहीं हो सकता। तथ्य चाहिए। प्रमाणों के साथ। तभी ऐतिहासिक घटनाओं पर यकीन किया जा सकता है। तथ्यों और प्रमाणों के बिना इतिहास किसी के स्वार्थ की पूर्ति तो कर सकता है, लेकिन इस कोशिश में सच दब जाता है। इतिहास के एक सच को प्रमाणों और तथ्यों के साथ नई सोच दे रहा है हरियाणा का राखीगढ़ी। अभी तक यह माना जा रहा था कि हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो है। इस स्थापित मान्यता को राखीगढ़ी तोड़ती नजर आ रही है। इसने मोहनजोदड़ो को दूसरे स्थान पर धकेल कर खुद को पहले पायदान पर खड़ा कर लिया है। वह भी तथ्यों और प्रमाणों के साथ। यह खोज भी संयोग से हुई। दरअसल, राखीगढ़ी में विलुप्त सरस्वती नदी की खोज का काम चल रहा था। वहां पुरातत्वविदों को उत्खनन में कुछ ऐसे प्रमाण मिले, उसके आधार पर उन्होंने इसे हड़प्पा सभ्यता का एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान करार दिया।
राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार जिले से 57 किलोमीटर दूर नारनौंद तहसील में स्थित है। यहां राखीखास और राखीशाहपुर गांवों के अलावा आसपास के खेतों को मिलाकर करीब 350 हेक्टेयर क्षेत्र में पुरातात्विक साक्ष्य फैले हुए हैं। राखीगढ़ी में सात टीले (आरजीआर-1 से लेकर आरजीआर-7) हैं। ये मिलकर बस्ती बनाते हैं जो हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी बस्ती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इस गांव में पहली बार 1963 में खुदाई शुरू की थी। इसके बाद 1998-2001 के बीच डॉ. अमरेंद्रनाथ के नेतृत्व में एएसआई ने फिर खुदाई शुरू की। बाद में पुणे के डेक्कन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वसंत शिंदे के नेतृत्व में 2013 से 2016 तक उत्खनन कार्य चला, फिर उत्खनन का काम रोकना पड़ा। अब एक बार फिर 24 फरवरी, 2022 से राखीगढ़ी में उत्खनन कार्य शुरू हुआ है। इस बार एएसआई के संयुक्त महानिदेशक संजय कुमार मंजुल के नेतृत्व में खुदाई शुरू हुई है।
राखीगढ़ी में 1998 से लेकर अब तक 56 कंकाल मिले हैं। इनमें 36 की खोज प्रो. शिंदे ने की थी। टीला संख्या-7 की खुदाई में मिले दो महिलाओं के कंकाल करीब 7,000 साल पुराने हैं। दोनों कंकालों के हाथ में खोल (शैल) की चूड़ियां, एक तांबे का दर्पण और अर्ध कीमती पत्थरों के मनके भी मिले हैं। खोल की चूड़ियों की मौजूदगी से यह संभावना जताई जा रही है कि राखीगढ़ी के लोगों के दूरदराज के स्थानों के साथ व्यापारिक संबंध थे। प्रो. शिंदे के अनुसार राखीगढ़ी में पाई गई सभ्यता करीब 5000-5500 ई.पू. की है, जबकि मोहनजोदड़ो में पाई गई सभ्यता का समय लगभग 4000 ई.पू. माना जाता है। मोहनजोदड़ो का क्षेत्र करीब 300 हेक्टेयर है, जबकि राखीगढ़ी 550 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैला है। प्रो. शिंदे के अनुसार प्राचीन सभ्यता के साक्ष्यों को संजोए राखीगढ़ी में मिले प्रमाण इस ओर भी इशारा करते हैं कि व्यापारिक लेन-देन के मामले में भी यह स्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से ज्यादा समृद्ध था।
अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, गुजरात और राजस्थान से इसका व्यापारिक संबंध था। खासतौर पर आभूषण बनाने के लिए लोग यहां से कच्चा माल लाते थे, फिर इनके आभूषण बनाकर इन्हीं जगहों में बेचते थे। इस सभ्यता के लोग तांबा, कार्नेलियन, अगेट, सोने जैसी मूल्यवान धातुओं को पिघलाकर इनसे नक्शीदार मनके की माला बनाते थे। पत्थरों या धातुओं से जेवर बनाने के लिए भट्ठियों का इस्तेमाल होता था। इस तरह की भट्ठियां भारी मात्रा में मिली हैं। यहां मिले कंकालों का डीएनए परीक्षण चल रहा है।
द बुद्धिस्ट फोरम हरियाणा के अध्यक्ष सिद्धार्थ गौरी का मानना है कि अगर पुख्ता तौर पर राखीगढ़ी सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थल साबित हो जाती है तो इस सभ्यता का नाम बदलने की मांग उठ सकती है। इसके पीछे तर्क दिया जा सकता है कि अगर सिंधु नदी के किनारे बसे होने के कारण मोहनजोदड़ो की सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया तो प्राचीन राखीगढ़ी जिस नदी के किनारे बसी थी, उस नदी के नाम पर ही यहां मिली सभ्यता का नामकरण होना चाहिए। फिर यह सरस्वती हो या कोई और नदी।
अभी तक जो कुछ भी राखीगढ़ी में मिला है, उससे एक बात साफ है कि इतिहास में कुछ तो जरूर बदलेगा। सिद्धार्थ गौरी कहते हैं कि राखीगढ़ी में खुदाई मेें मिले हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेषों से यह तथ्य भी सामने आया है कि भारत से ही आर्य दुनिया के अन्य स्थानों में फैले। अफगानिस्तान सहित सभी भारतवासियों का डीएनए एक है। आनुवंशिकीय अभियांत्रिकी के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को पुष्ट करने का दावा किया है। प्रो. शिंदे ने खुदाई में मिले 6,000 साल पुराने मानव कंकालों के डीएनए में 12.5 हजार साल पुराना जीन मिलने पर यह निष्कर्ष निकाला है। वे राखीगढ़ी में मिले मानव कंकालों का अध्ययन कर रहे हैं।
गौरी ने बताया कि दक्षिण व मध्य भारत के लोगों के डीएनए का राखीगढ़ी में मिले मानव कंकालों के डीएनए से मिलान किया गया। इसमें पाया गया कि उनके भी जीन समान हैं। इससे यह पुष्ट हो गया कि आर्य आक्रमण का सिद्धांत झूठा है और सभी भारतीयों के पुरखे एक हैं। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट कल्चर हेरिटेज के यमुनानगर चैप्टर के अध्यक्ष मेजर राजेंद्र सिंह भट्टी ने बताया कि राखीगढ़ी ने दुनिया के सिद्धांत को बदल दिया है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा देश में पांच आदर्श स्थल बनाने के लिए 2500 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। उनमें राखीगढ़ी भी शामिल है। प्रदेश सरकार भी यहां 25 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक संग्रहालय बना रही है। इसमें रेस्ट हाउस, हॉस्टल और एक कैफे का निर्माण किया जा रहा है। राखीगढ़ी को विश्व स्तरीय पुरातत्व एवं पर्यटन स्थल बनाने में केंद्र सरकार हर संभव कोशिश कर रही है।
को प्रदेश के लिए बड़ा उपहार बताते हुए कहा कि आम बजट में लिए गए फैसले से राखीगढ़ी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान तो मिलेगी ही, पर्यटन स्थल के तौर पर इसके विकसित होने से प्रदेश के राजस्व में भी वृद्धि होगी। मुख्यमंत्री के अनुसार, यहां पर्यटकों के आने से गांव के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। उन्होंने बताया कि हमारी सरकार भी राखीगढ़ी की वर्षों पुरानी संस्कृति को संजोए रखने के लिए इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है। इसके अलावा, राज्य सरकार इको-टूरिज्म को भी बढ़ावा दे रही है और इस क्षेत्र में विदेशी निवेशक बहुत रुचि ले रहे हैं।
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