शततंत्री वीणा (संतूर) वादक पद्मविभूषण पंडित शिव कुमार शर्मा का निधन संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है। गंभीर एवं सौम्य व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी पंडित शर्मा का संगीत के क्षेत्र में अनुपम योगदान रहा है। संगीत अनादि और अनंत है, इसकी शाश्वत यात्रा के यात्री रहे है पंडित शिवकुमार शर्मा।
पंडित शिवकुमार शर्मा का जन्म 13 जनवरी, 1938 को जम्मू में हुआ था परंतु बनारस से भी उनका गहरा रिश्ता था। उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा बनारस घराने के बड़े गायक थे। पंडित उमादत्त ने पांच वर्ष की वय से ही पुत्र शिव को गायन और तबला सिखाना शुरू कर दिया। फिर पिता के कहने पर उन्होंने 13 वर्ष की आयु में संतूर की ओर रुख किया। पंडित उमादत्त ने संतूर वाद्य पर शोध किया था और वह चाहते थे कि वे शिवकुमार को भारतीय शास्त्रीय संगीत को संतूर पर बजाते देखें। पुत्र ने पिता का सपना पूरा किया और 1955 में महज 17 साल की उम्र में मुंबई में संतूर वादन का अपना पहला शो किया।
पंडित शिवकुमार शर्मा के पिता चाहते थे कि वे आकाशवाणी में नौकरी कर अपना भविष्य सुरक्षित करें। परंतु युवा शिवकुमार की धुन अलग ही थी। वे संतूर लेकर मुंबई चले आए। वहां प्रसिद्ध बांसुरीवादक हरिप्रसाद चौरसिया के साथ उनकी जोड़ी बनी और शिव-हरि के नाम से इस जोड़ी ने सिलसिला, चांदनी, लम्हे, डर जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में संगीत दिया। उन्होंने ‘झनक झनक पायल बाजे’ फिल्म में पहली बार इस साज का इस्तेमाल किया।
संतूर घाटी का वाद्ययंत्र है। सौ तार होने के कारण इसे शततंत्री वीणा भी कहा जाता है। इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत में स्थापित करने और अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाने के लिए पंडित शिवकुमार शर्मा हमेशा याद किए जाएंगे। बल्कि पंडित शिवकुमार शर्मा संतूर के पर्याय बन गए थे।
एक बार तुलसीघाट पर आयोजित एक सांगीतिक आयोजन में उनके साथ संगीत विमर्श में मैंने इस विषय को रखा कि संगीत जगत में आप आज जिस शीर्ष स्थान पर हैं, उस परिप्रेक्ष्य में संगीत में उपलब्धि के स्तर पर अभी इससे आगे भी कुछ शेष रह जाता है कि नहीं। मेरे द्वारा इस विषय को रखते ही पंडित जी ने कुछ पल मौन होकर, फिर उत्तर देते हुए कहा कि यह दीर्घ चिंतन का विषय है जिस पर सभी को गंभीरता से मनन करने की आवश्यकता है। इस प्रतिक्रिया में निहित थी एक शीर्ष कलाकार की विषय की प्रतिष्ठा के प्रति गहरी निष्ठा। प्राय: कलाकार अपने कृतित्व में कुशल होते हैं किन्तु व्यक्तित्व में जटिल हो जाते है किंतु पंडित शिवकुमार शर्मा का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों एक जैसे सरल और अत्यंत प्रभावी थे। आप भावी पीढ़ी के लिए एक आदर्श कलाकार के रूप में जाने जाते रहेंगे। आपकी यशकाया सदैव श्रेष्ठ कार्यों का प्रतीक रहेगी।
(लेखक पद्मश्री प्राप्त जलतरंग वादक हैं और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष हैं)
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