रविवार को हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति के चुनाव में इमानुएल मैक्रॉन एक बार पुन: राष्ट्रपति चुने गए। तमाम सर्वेक्षणों के मुताबिक यह लगभग तय था कि वे थोड़ी सी ही बढ़त के साथ सही, लेकिन राष्ट्रपति चुने जाएंगे। फ्रांस के इस चुनाव ने यह बात स्पष्ट कर दी कि देश की राजनीति में इस्लाम के झंडाबरदारों के लिये जगह नहीं बची है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार इमानुएल मैक्रॉन और ल पैन, दोनों ही अपने इस्लाम विरोधी विचारों के लिए जाने जाते हैं। मुस्लिम जनसंख्या को यही तय करना था कि दोनों में से किस के विचार कम इस्लाम विरोधी होंगे। मैक्रॉन का चुनाव उनके लिए उम्मीद की नहीं, बल्कि अधिक सुविधाजनक होने की निशानी है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान एक बाजार में हिजाब पहने एक औरत के यह पूछने पर कि क्या आप फेमिनिस्ट है, मैक्रॉन का जवाब था, ‘‘आप हिजाब पहनकर मुझसे यह सवाल कर रही हैं, क्या इसी से यह पता नहीं लग जाता कि मैं फेमिनिस्ट हूं?’’
राष्ट्रवादी फ्रांसीसी अपनी भावना का इससे बेहतर अभिव्यक्त नहीं कर सकते थे। धर्म और राष्ट्र के बीच प्राथमिकता और स्थानीय संस्कृति विचारणीय विषय बनकर उभर रहे हैं।
इस सदी के आरंभ से फ्रांस में यह हवा चल रही है कि आने वाले बीस साल में फ्रांस एक मुस्लिम देश बन जाएगा, लेकिन अब यह चर्चा राजनीतिक विमर्श के मध्य में आ खड़ी हुई है। इतना ही नहीं, इस बहस में वामपंथी भी अपना हिस्सा डाल रहे हैं। वे मुसलमानों के देश में आने के खिलाफ नहीं हैं लेकिन महिलाओं के हिजाब पहनने या हलाल मांस के मुद्दे पर वे भी दक्षिणपंथ के साथ ही खड़े हैं। यह परिवर्तन पिछले बीस वर्ष में क्रमश: आया है। मुसलमानों की वेशभूषा को लेकर मैक्रॉन और ल पैन के विचारों में कोई अंतर नहीं है। दरअसल मैक्रॉन के कुछ मंत्री तो इस विषय में ल पैन से अधिक कट्टरपंथी हैं। पिछले वर्ष फ्रांस के गृह मंत्री ने यह कहकर ल पैन को चौंका दिया था कि उनके विचार इस्लाम को लेकर बहुत नरम है। अपने चुनाव प्रचार के उत्तरार्ध में ल पैन ने हिजाब को लेकर अपने विचारों में कुछ नरमी दिखाई थी लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि वे राष्ट्रपति के पद पर आएं तो वे अपनी कैथोलिक क्रिश्चियन पहचान को ज्यादा स्थापित करेंगी।
विमर्श में मुस्लिम नहीं
रुचिकर यह है कि मुस्लिम समुदाय राजनीतिक बहस के बीच में तो है लेकिन इसमें उसकी भागीदारी नहीं है। इसका एक नकारात्मक परिणाम यह है कि मुस्लिम समुदाय के एक बड़े हिस्से को लगता है कि फ्रांस उन्हें एक समस्या का हिस्सा समझता है, न कि समाधान का। फ्रांस और जर्मनी, दोनों के ही राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में मुसलमानों की मौजूदगी नहीं है। इसका कारण अक्सर शिक्षा को बताया जाता है लेकिन मुस्लिम समुदाय का मानना है कि यह सही नहीं है क्योंकि बहुत से परिवारों की अब चौथी या पांचवीं पीढ़ी इन देशों में रह रही है। वहां यह अंदेशा जताया जा रहा है कि आगामी दिनों में फ्रांस ऐसा पहला यूरोपीय देश बनने जा रहा है जहां खुलेआम हिजाब पहनने पर पाबंदी होगी। फ्रांसीसी व्यवस्था के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव होने के बाद आम चुनाव जून में होंगे जिसमें संसद सदस्यों का चुनाव होगा। मैक्रॉन राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं लेकिन यदि वे जून में आम चुनाव न जीत पाए तो उन्हें संसद में काफी मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ सकता है।
नमाज बनाम राष्ट्रगीत
राष्ट्रपति चुनाव संपन्न होने के अगले ही दिन मुस्लिम समुदाय के बहुत से लोग सड़कों पर नमाज पढ़ते हुए दिखाई दिए। इस नमाज के लिए की गई अजान के होते ही फ्रांस के बहुत से नागरिकों ने फ्रांस के राष्ट्रीय गीत को बजाना शुरू कर दिया। यह बहुत विहंगम दृश्य था, जहां अजान और राष्ट्रगीत एक साथ बज रहे थे। राष्ट्रवादी फ्रांसीसी अपनी भावना का इससे बेहतर अभिव्यक्त नहीं कर सकते थे। धर्म और राष्ट्र के बीच प्राथमिकता और स्थानीय संस्कृति विचारणीय विषय बनकर उभर रहे हैं। शायद इस सब के बीच विश्व के तमाम लोकतंत्रों के लिए एक संदेश भी था कि समाज के तमाम वर्गों के लिए सामाजिक एकीकरण की तरफ बढ़ना कितना आवश्यक हो चला है।
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