उत्तराखंड में पहाड़ी वनों में लगी इन दिनों आग से वन्य जीव भयभीत हैं और इनका रुख गांवों, कस्बों की तरफ हो रहा है। भोजन की तलाश में ये जंगली जानवर हिंसक भी हो रहे हैं। पहाड़ों में वनाग्नि से वन्य जीवों पर भी खतरा मंडरा रहा है, पिछले एक महीने से पहाड़ों के जंगलों में लगी आग से वन्य जीव-जंतु, परिंदे सब परेशान हो कर सुरक्षित वास की तलाश में हैं। भोजन की तलाश में तेंदुए, लोमड़ी, गीदड़, सुअर, काकड़ गांवों के आसपास मंडरा रहे हैं।
तेंदुए, गांवों में आकर पालतू जानवरों के साथ-साथ बच्चों और बुजुर्गों पर हमला कर रहे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ विपुल मौर्य बताते हैं कि आग से इंसान से ज्यादा वन्यजीव भयभीत होते हैं। जंगल उनका घर है और जब वनाग्नि फैलती है तो ये सुरक्षित स्थान खोजते हैं। अक्सर देखा गया है कि तेंदुए सड़कों के किनारे पानी के गधेरों में अपना वास बना लेते हैं। वनाग्नि से न सिर्फ जंगल स्वाह होता है, बल्कि जीव-जंतुओं के घर ठिकाने भी जल जाते हैं। पंछियों के घोंसले भी खत्म हो जाते हैं। पानी के स्रोत सूखने के हालात में वन्यजीव पानी के गधेरों के नज़दीक अपना वास बनाते हैं।
वन्य जीव के जानकर डॉ मेहराज कहते हैं कि वनाग्नि से तेंदुए, जंगली सुअर, बंदर, लंगूर गांवों की तरफ आ रहे हैं। यही वजह है कि इंसान और वन्य जीवों में आपसी संघर्ष बढ़ रहा है। डॉ महराज बताते हैं कि भोजन की तलाश में अब जंगल की लोमड़ियां, गीदड़ और काकड़ इंसानों के घरों में बिना किसी भय के आ रहे हैं। उनमें पालतू जानवर जैसा व्यवहार देखने में आ रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि आग की वजह से वन्यजीवों के आगे भोजन का संकट है।
दूसरी ओर रानीखेत के मझखाली क्षेत्र में शाम ढलते ही सड़क पर तेंदुए की मौजूदगी से लोग दहशत में हैं। स्थानीय निवासी सुमित गोयल कहते हैं कि पिछले एक सप्ताह से तेंदुए की मौजूदगी उनके बंगले के सामने देखी जा रही है। जंगल की आग की वजह से ये इधर दिखाई दे रहे हैं।
उधर वन विभाग का कहना है कि ये एक स्वभाविक प्रक्रिया है। उत्तराखंड के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डॉ पराग धकाते का कहना है वनाग्नि के समय ऐसा संकट आता है वन्यजीव सुरक्षित स्थान की तलाश के साथ-साथ भोजन की तलाश में आबादी की तरफ आते हैं। सबसे पहले वो आवारा पशुओं और पालतू जानवरों को निशाना बनाते हैं। इनसे बचने का उपाय यही है कि आसपास तेज रोशनी हमेशा रहे।
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