वर्ष प्रतिपदा एवं वासंतिक नवरात्र पर राजस्थान के करौली तथा रामनवमी पर लोहरदगा, बोकारो, खरगौन, खंभात, हिम्मतनगर, मुंबई, कोलार, बांकुड़ा, कोलकाता एवं इसके बाद श्री हनुमान जन्मोत्सव पर दिल्ली, हरिद्वार, कुरनूल आदि शहरों में निकाली गई शोभायात्राओं पर जिहादी तत्वों द्वारा हिंसक हमले किए गए। चिंता की बात यह थी कि इन हमलों में आस-पड़ोस में रहने वाले आम पड़ोसी एवं रोज मिलने-जुलने वाले परिचित तक सम्मिलित थे।
मध्य प्रदेश के खरगौन में जैसे ही तालाब चौक से गुजर कर शोभायात्रा एक मस्जिद के पास पहुंची कि उस पर पथराव शुरू हो गया। उसके बाद शहर के एक दर्जन से भी अधिक मुहल्लों में हिंसक हमलों का दौर शुरू हो गया। शीतला माता मंदिर में तोड़-फोड़ से लेकर आम हिंदुओं के घरों में लूटपाट और आगजनी की गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हमलावर भीड़ में उनके पड़ोसी-परिचित तो बड़ी संख्या में सम्मिलित थे ही, बाहर से भी लगभग 150-200 संदिग्ध एवं कट्टरपंथी दंगाई इसमें शामिल होने आए थे। और वे रामनवमी के दो-चार दिन पूर्व से ही मस्जिद वाले क्षेत्र में रह रहे थे।
नाम न बताने की शर्त पर कुछ स्थानीय निवासियों ने बताया कि जिहादियों ने उस दिन तड़के ही अपने घर की महिलाओं को अन्यत्र भेज दिया था, ताकि किसी प्रकार की प्रतिक्रिया या प्रतिकार की स्थिति में उन्हें कोई चोट-खरोंच नहीं पहुंचे।
बड़वानी जिले के सेंधवा स्थित जोगवाड़ा सड़क मार्ग पर रामनवमी की मुख्य शोभायात्रा में सम्मिलित होने जा रहे श्रद्धालुओं पर भी पथराव किया गया, जिससे भगदड़ मच गई और अनेक श्रद्धालुओं को गंभीर चोटें आर्इं। गुजरात में साबरकांठा स्थित हिम्मतनगर के छपरिया क्षेत्र में दंगाइयों ने शोभायात्रा में सम्मिलित श्रद्धालुओं पर अचानक हमला बोल दिया। लोहरदगा के सदर थाना क्षेत्र के हिरही गांव में शोभायात्रा पर पत्थर बरसाने के बाद उपद्रवियों ने रामनवमी मेले में खड़ी 10 से अधिक मोटरसाइकिलों, तीन ठेलों, एक टेंपो, चार साइकिलों और कई दुकानों में आग लगा दी।
बोकारो और लोहरदगा शहर में भी पथराव और आगजनी की घटना को अंजाम दिया गया। रांची से दिल्ली जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस पर भी पत्थर फेंके गए। हिंदू नव वर्ष पर राजस्थान के करौली में निकाली गई शांतिपूर्ण बाइक रैली पर घरों की छतों से पत्थर फेंके गए।
कुल मिलाकर करौली से लेकर खरगौन तथा कुरनूल से लेकर जहाँगीरपुरी तक की शोभायात्राओं पर हुए हमलों की प्रकृति और पद्धति एक-सी थी, प्रयोजन और परिणाम एक-सा था। सभी हमलों में दंगाइयों के घरों-मुहल्लों एवं मस्जिदों की छतों से पत्थरबाजी की गई, कांच की बोतलें फेंकी गई, हमलावर भीड़ द्वारा तमंचे व तलवारें चलाई गई, पेट्रोल बम फेंके गए तथा चिह्नित कर गैर-मुसलमानों के घरों-वाहनों एवं दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस-प्रशासन पर जानलेवा हमले किए गए।
इन हमलों को किसी तात्कालिक घटना व प्रतिक्रिया का परिणाम या अचानक हुई मामूली झड़प या छिटपुट हिंसा नहीं कहा जा सकता, घरों एवं मस्जिदों की छतों पर जमा पत्थरों के ढेर, कांच की बोतलों, सरिया, तलवारों, असलहा, पेट्रोल-बमों आदि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि शहर-शहर इनकी ये तैयारियां दिनों नहीं, महीनों से चल रही थीं। यह सचमुच एक संयोग नहीं, प्रयोग ही था। कदाचित इसमें हाल ही में संपन्न हुए चुनाव-परिणामों के प्रति एक अनदेखी-आंतरिक खीझ, चिढ़ और सामूहिक गुस्सा भी प्रभावी एवं महत्वपूर्ण कारक के रूप में सम्मिलित हो!
हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाले दुनिया के एकमात्र देश भारत में आज यहां के सनातनी समाज को इतनी सुविधा, सहूलियत, स्वतंत्रता एवं अधिकार भी प्राप्त नहीं है कि वह हर्षोल्लास के साथ शोभायात्रा निकाल सके, बिना किसी भय एवं आशंका के अपना त्योहार मना सकें? घोर आश्चर्य का विषय है कि तोड़-फोड़, लूट-मार, आगजनी व बम-तमंचे चलाने वाली ‘भीड़’ के अराजक व्यवहार एवं कट्टरपंथी विचारों पर प्रश्न उठाने की बजाए उलटे शोभायात्रा में सम्मिलित श्रद्धालुओं एवं भक्तजनों से यह पूछा जा रहा है कि उन्हें मुस्लिम बहुल इलाकों से शोभायात्रा निकालने की क्या आवश्यकता थी?
यानी अपने ही देश में श्रद्धा व भक्ति की सहज एवं पारंपरिक अभिव्यक्ति पर भी अब पहरे बैठाने की तैयारियां की जा रही हैं, साजिशें रची जा रही हैं! कभी और कहीं भी बेरोक-टोक अजान और नमाज अदा करने को अपना ‘अधिकार’ मानने वाले मुसलमानों को आज अपने पड़ोसियों व शहरवासियों के परंपरागत त्योहार मनाने पर भी आपत्ति है! वे चाहते हैं कि हर्ष एवं उल्लास के तीव्र एवं स्वाभाविक मनोभाव भी उनसे पूछकर प्रकट किए जाए! हर गली, हर चौराहे, हर मुहल्ले को मजहबी नारों, उन्मादी तकरीरों और शक्ति-प्रदर्शक जुलूसों के शोर से भरने वाला समुदाय आज अन्य धर्मावलंबियों की सहज-स्वाभाविक श्रद्धाभिव्यक्ति पर भी पाबंदी चाहता है। जबकि पथराव या हिंसक हमले तो दूर, क्या आज तक किसी सनातनी ने ईद-बकरीद-रमजान-मुहर्रम आदि के अवसर पर निकाले जाने वाले मजहबी जुलूस पर कभी कोई आपत्ति तक की? नहीं न? फिर वामपंथी एवं तथाकथित पंथनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों द्वारा मुस्लिम बहुल इलाकों से शोभायात्रा निकालने पर असंगत, अनर्गल एवं अतार्किक प्रश्न उछालना एक जटिल समस्या व गंभीर संकट का सरलीकरण नहीं तो और क्या है! यह प्रकारांतर से तोड़-फोड़, लूट-पाट, आगजनी व हिंसक हमले का बचाव है।
यह सामाजिक सौहार्दता को छिन्न-भिन्न करना है। एक ओर ये बुद्धिजीवी कथित गंगा-जमुनी तहजीब का राग अलापते हैं, दूसरी ओर बिना किसी कारण के दंगाइयों द्वारा शुरू की गई ऐसी एकपक्षीय हिंसा का भी निर्लज्ज बचाव करते हैं! विविधता को विशेषता मानने वाली भारतीय संस्कृति में क्या अब निश्चिंत और निर्द्वंद्व होकर अपना त्योहार मनाने का भी प्रचलन व स्थान शेष नहीं रहेगा?
शोभायात्रा में कथित रूप से डीजे बजाने, उत्तेजक नारे लगाने को हिंसा व उपद्रव का कारण बताने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के अलग-अलग शहरों व हिस्सों में आए दिन उग्र, हिंसक एवं अराजक प्रदर्शन, बहुसंख्यक हिंदू समाज पर अकारण हमले जिहादियों की प्रवृत्ति व पहचान बनता जा रहा है। कभी कथित रूप से इस्लाम के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी तो कभी दुनिया के किसी कोने में मुसलमानों के साथ हुए दुर्व्यवहार के नाम पर उग्र एवं हिंसक रैलियां भारत में निकाली जाती रही हैं।
अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे योजनापूर्वक बहुसंख्यक समाज की स्त्रियों और बच्चों को निशाना बनाते हैं, ताकि उनके प्राणों की सुरक्षा एवं हितचिंता में थोड़ा-बहुत प्रतिकार करने वाले लोग भी घर-परिवार-मुहल्ला छोड़ सुरक्षित स्थानों की खोज में अन्यत्र चले जाएं और धीरे-धीरे वे उनकी संपत्ति पर या तो जबर्दस्ती कब्जा कर लें या औने-पौने के भाव पर उनका सौदा कर लें।
बीते 16 अप्रैल को कर्नाटक के हुबली में फेसबुक पर कथित तौर पर इस्लाम के विरुद्ध एक पोस्ट साझा किए जाने के नाम पर उत्पात मचाया गया, थाने पर हमले किए गए, उसके बाहर खड़े वाहनों में आग लगा दी गई और पड़ोस में स्थित मंदिर एवं अस्पताल में तोड़-फोड़ की गई। जबकि पोस्ट लिखने वाले लड़के को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी। पर हिंसा पर उतारू कट्टर एवं जिहादी भीड़ का कानून के राज में विश्वास ही कब और कहां होता है! 2020 में बेंगलुरु में ही कांग्रेस विधायक श्रीनिवास मूर्त्ति के भांजे नवीन द्वारा लिखे गए एक फेसबुक पोस्ट पर जिहादी भीड़ ने पहले विधायक के घर में तोड़-फोड़ एवं आगजनी की, फिर थाने पर हमला बोला और उसके बाद वहां खड़ी 250 से अधिक गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। तथाकथित पंथनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवियों को यह भी याद रखना चाहिए कि म्यांमार में रोहिंग्याओं के साथ हुए कथित अत्याचार के विरुद्ध मुंबई में मुसलमानों ने उग्र प्रदर्शन किया और अमर जवान स्मारक को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था।इतना ही नहीं, डेनमार्क और फ्रांस में छपे कार्टून के आधार पर भारत के विभिन्न शहरों में रैलियां निकाली गई, उग्र प्रदर्शन किए गए, तमाम फतवे जारी किए गए, और कार्टूनिस्ट का सिर काटकर लाने वालों के लिए मुंहमांगे इनाम रखे गए।
मुस्लिम मुहल्लों और मस्जिदों के पास से शोभायात्रा निकालने को हिंसा का कारण मानने और बताने वाले एजेंडाधारी चिंतक-विश्लेषक क्या यह बताने का कष्ट करेंगे कि कश्मीर से हिंदुओं को किस कारण पलायन करना पड़ा और भयावह हिंसा एवं अमानवीय यातनाओं का शिकार होना पड़ा? विभाजन के पश्चात् पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे गिनती के हिंदुओं को क्यों कर प्रताड़ित, अपमानित और मतांतरित होना पड़ता है?
सच तो यह है कि इन सभी हिंसक हमलों के पीछे इस्लाम का कुफ्र-काफिर से प्रेरित-प्रभावित दर्शन है। ‘दारुल हरब’ और ‘दारुल इस्लाम’ में दुनिया को बांटकर देखने की विभाजनकारी अवधारणा है। गजवा-ए-हिंद का अधूरा सपना है। जनसांख्यकीय संतुलन को साधने और बिगाड़ने का घिनौना खेल है। एक पंथ, एक ग्रंथ, एक प्रतीक, एक पैगंबर, एक उपासना-पद्धत्ति में विश्वास नहीं रखने वालों के प्रति असहिष्णुता से आगे की मध्ययुगीन घृणा है। इन सबके पीछे पूरी दुनिया को एक ही रंग में रंगने की जिद व जुनून है।
सभ्यता के समावेशी युग एवं सहयोग-सामंजस्य वाले वैश्विक दौर में भी जिहादी, कबीलाई एवं वर्चस्ववादी मानसिकता की जकड़न है। लोकतांत्रिक एवं वैधानिक प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी व स्वीकार्यता के स्थान पर मुल्ले-मौलवियों एवं कट्टरपंथी तत्वों की बातों पर अपेक्षाकृत अधिक विश्वास है। राष्ट्र एवं संस्कृति से भी ऊपर मजहब और पृथक पहचान को रखने की धारणा व भावना है। भीड़ की हिंसा एवं अराजकता के बल शांतिप्रिय एवं सह-अस्तित्ववादी समाज में भय और आशंका निर्मित कर उन्हें पलायन को मजबूर करने का चलता आया सुनियोजित षड्यंत्र है।
वस्तुत: उनमें से कट्टरपंथी तत्वों की दृष्टि बहुसंख्यक समाज की जमीन-जायदाद, घर-दुकान-व्यापार पर भी रहती है। प्रतिकार या चुनौतियों का सामना करने के स्थान पर बहुसंख्यकों का पलायन उन्हें इसके लिए और अधिक उकसाता है। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे योजनापूर्वक बहुसंख्यक समाज की स्त्रियों और बच्चों को निशाना बनाते हैं, ताकि उनके प्राणों की सुरक्षा एवं हितचिंता में थोड़ा-बहुत प्रतिकार करने वाले लोग भी घर-परिवार-मुहल्ला छोड़ सुरक्षित स्थानों की खोज में अन्यत्र चले जाएं और धीरे-धीरे वे उनकी संपत्ति पर या तो जबर्दस्ती कब्जा कर लें या औने-पौने के भाव पर उनका सौदा कर लें।
ऐसी हिंसा या उपद्रव के बाद पलायन करने वाला बहुसंख्यक समाज पूरी तरह भूल चुका है कि स्थायी शांति के लिए शक्ति की उपासना करनी पड़ती है। शक्ति अर्जित व संचित करनी पड़ती है। संगठित होकर उपस्थित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। असामाजिक एवं कट्टरपंथी तत्वों को चिह्नित कर उन्हें दंड दिलाने हेतु पुलिस-प्रशासन व कानून का सहयोग करना पड़ता है। जागरूक एवं जिम्मेदार समाज केवल सरकारों के भरोसे नहीं बैठता! वह अपने साथ-साथ अपनी सभ्यता, संस्कृति, समाज, राष्ट्र व धर्म की रक्षा में भी सतर्क, समर्थ एवं सन्नद्ध रहता है।
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