केरल प्राय: विवादास्पद और हृदय विदारक घटनाओं के कारण चर्चा में रहता है। इस बार, अलुवा (एनार्कुलम) में कट्टर जिहादी संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय बचाव एवं राहत कार्यक्रम के उद्घाटन के अवसर पर केरल फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेस के अधिकारियों द्वारा दिए गए प्रशिक्षण के कारण केरल सरकार विवादों के घेरे में है।
हिंसा की कई घटनाओं में पीएफआई कैडर की संलिप्तता जगजाहिर है। अनेकानेक प्रसंगों में पीएफआई के कई सदस्यों के विरुद्ध चार्जशीट दायर हो चुकी है। उस पर देशद्रोह के साथ-साथ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राज्य पुलिस कई मामलों की जांच कर रही है। पीएफआई के फ्रंटल संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया (एसडीपीआई) ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करते हुए भारत में अनेकानेक जगह प्रदर्शन भी किए थे। विरोध प्रदर्शन के दिनों में ही केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा था कि एसडीपीआई लोगों को विभाजित करने के लिए सीएए विरोध का उपयोग कर रही है। उल्लेखनीय है कि पीएफआई की उग्र गतिविधियों में संलिप्तता को दृष्टिगत रखते हुए उसे प्राय: प्रतिबंधित करने की मांग की जाती रही है।
पीएफआई-एसडीपीआई की राष्ट्र एवं समाज विरोधी करतूतों-हरकतों के बावजूद केरल फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेस के अधिकारियों ने 30 मार्च को अलुवा प्रियदर्शिनी म्युनिसिपल आडिटोरियम में पीएफआई के सदस्यों को प्रशिक्षण दिया। स्रोत बताते हैं कि केरल पुलिस ने आग और बचाव अभियानों हेतु पीएफआई के कई कैडरों को प्रशिक्षित किया है। यद्यपि मौजूदा नियमों के अनुसार राजनीतिक एवं धार्मिक कार्यक्रमों में दमकलकर्मियों की सहभागिता प्रतिबंधित है। फिर भी इस राजनीतिक कार्यक्रम में केरल फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेस के अधिकारी शामिल हुए। किसकी अनुमति से?
पीएफआई-माकपा सांठगांठ
केरल भाजपा अध्यक्ष के. सुरेन्द्रन ने गृह मंत्री अमित शाह को ट्वीट कर लिखा है कि पीएफआई और एसडीपीआई कई आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं। और पिनाराई विजयन सरकार इन जिहादियों का विशेष आदरातिथ्य कर रही है। तथ्य यह है कि पीएफआई की करतूतें-हरकतें जिहादी आंतकी रूप-स्वरूप से आत्यंतिक मेल खाती हैं। दीगर तथ्य यह है कि विजयन सरकार पीएफआई के समर्थन से अपना वर्चस्व बनाने में जुटी है। अवसर की राजनीति की दृष्टि से पीएफआई के साथ माकपा के गठजोड़ का सुदीर्घ इतिहास है। वर्तमान में, केरल सरकार पीएफआई कैडर को प्रशिक्षण देने वाले पुलिसकर्मियों के निलंबन का खेल खेल रही है।
स्थानीय लोगों की आशंकाएं
आशंका के अनेकानेक कारणों में एक यह भी है कि ‘आपदा में राहत एवं बचाव’ हेतु आयोजित इस राज्य स्तरीय प्रशिक्षण समारोह में बोलते हुए पीएफआई के राज्य सचिव ने कहा कि बचाव और राहतकर्मियों को ‘अन्य चुनौतियों से देश को बचाने’ के लिए तैयार किया जाना चाहिए। इस कथन के कारण अत्यधिक प्रखर आलोचना हो रही है। बताया जा रहा है कि ‘अन्य चुनौतियों’ में अर्थ वास्तव में ‘अन्यार्थ बोधक’ तथा सांप्रदायिक है। पीएफआई मुसलमानों से इतर किसी की सहायता का कदापि पक्षधर नहीं है। उसके कृत्यों से कुछ स्थानीय लोग केरल की तुलना कश्मीर से कर रहे हैं और आपदा की आड़ में हिन्दुओं के नरसंहार की दुर्दान्त घटनाओं की आशंका जताई जा रही है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
और राज्य पुलिस कई मामलों की जांच कर रही है।
पीएफआई के फ्रंटल संगठन सोशल डेमोक्रेटिक
पार्टी आॅफ इंडिया (एसडीपीआई) ने नागरिकता
संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करते हुए
भारत में अनेकानेक जगह प्रदर्शन भी किए थे।
विरोध प्रदर्शन के दिनों में ही केरल के मुख्यमंत्री
पिनाराई विजयन ने कहा था कि एसडीपीआई
लोगों को विभाजित करने के लिए सीएए
विरोध का उपयोग कर रही है।
यह भी बताया जा रहा है कि कश्मीर में इस्लामिक आतंकवादियों ने प्रशिक्षण दिया था। जबकि केरल में स्वयं पुलिस ही आतंकी मानसिकता से ग्रस्त उन्मादियों को प्रशिक्षण दे रही है। अंतर केवल इतना है कि कश्मीर में हिन्दुओं को मारने के लिए प्रशिक्षण दिया गया था। यहां बचाव एवं राहत की आड़ में बड़े षड्यंत्र के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मजहबी उन्मादियों के कृत्य को देखते हुए सहज ही आपदा में अवसरों को भुनाने की मानसिकता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह भी कि स्थानीय लोग भला इतने बुरे की आशंका से ग्रस्त क्यों हैं?
ज्ञातव्य है कि पीएफआई की गतिविधियां संदेहास्पद नहीं, अपितु अत्यंत स्पष्ट रूप से जिहादी आतंकी हैं। स्पष्ट है कि उनका लक्ष्य भारत को यथासंभव तथा यथाशीघ्र इस्लामिक राष्ट्र बनाना है। ऐसे में, स्थानीय लोगों में भय का वातावरण है कि यदि ऐसे ही लोग महामारी के दौरान बचाव कार्यों में हिस्सा लेंगे, तो पता भी नहीं चलेगा कि कितने लोग महामारी के कारण मरे और कितने इन मजहबी उन्मादियों के हाथों मौत के घाट उतार दिए गए? विडंबना देखिए कि पीएफआई के इस राज्यस्तरीय कार्यक्रम के इश्तिहारी बैनर पर अंकित है-आपदा में बचाव और राहत! जबकि रहस्यमयी ढंग से यह ‘आपदा में अवसर’ की ओर इंगित कर रहा है।
केरल पुलिस में घुसपैठ
स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थानीय लोगों में भय का एक और कारण है कि केरल पुलिस में भर्ती हो चुके मजहबी तत्वों का ‘पच्चा वेलिचम’ नामक एक समूह है, अर्थात् हरा प्रकाश। यह समूह पहले केवल केरल में सक्रिय था। अब बताया जा रहा है कि इन दिनों इसकी पहुंच संपूर्ण देश में हो चुकी है। ये लोग आपदा के दौरान उपरोक्त जैसे शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त पीएफआई के राहतकर्मियों को सचेत कर देते हैं, ताकि आपदा स्थलों पर पुलिस तथा राहतकर्मियों के पहुंचने से पहले वे अपने काम को अंजाम दे सकें। स्थानीय सूत्रों का एक वाजिब प्रश्न है कि क्या गृह मंत्रालय को ऐसे समूहों की जानकारी है?
स्मरणीय है कि सूफी इस्लामी बोर्ड ने भी पीएफआई की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता को रेखांकित किया था। ऐसे में, केन्द्रीय एजेंसियों को निश्चय ही सतर्क होने की आवश्यकता है। कुछ वर्ष पूर्व इस बात की ओर संकेत किया गया था कि केरल पुलिस में मजहबी जिहादी मानसिकता से ग्रस्त लोगों की भर्तियां हो रही हैं, जो कि आप समय घातक सिद्ध हो सकते हैं। इधर, कुछ माह पूर्व पीएफआई को संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की सूची देने में पुलिस की सक्रिय भागीदारी स्पष्ट हुई ही है। ऐसी घटनाओं के कारण लोगों की दृष्टि में केरल पुलिस संदेह के दायरे में है।
पीएफआई की मानसिकता को जानने-समझने के लिए प्रसंगवश 2010 की एक घटना उल्लेखनीय है। न्यूमैन कॉलेज, थोडुपुळा (इडुक्की) में मलयालम के प्रोफेसर जोसेफ ने आंतरिक परीक्षा हेतु एक प्रश्न पत्र बनाया था, जिसमें पैगंबर मुहम्मद का कथित रूप से अपमान किया गया था। परिणामत: पीएफआई कार्यकर्ताओं ने उनके परिवार के समक्ष उनका दाहिना हाथ काट डाला था। उल्लेखनीय है कि प्रोफेसर जोसेफ सपरिवार चर्च से लौट रहे थे। ज्ञातव्य है कि एनआईए न्यायालय (कोच्चि) ने प्रोफेसर का हाथ काटने से संबंधित सनसनीखेज मामले में 13 आरोपियों को दोषी पाया था। सभी आरोपी पीएफआई कैडर थे। जबकि मुख्य साजिशकर्ता समेत पांच अन्य आरोपी फरार हो चुके थे। यह पीएफआई का चाल-चलन एवं चरित्र है।
इस उत्तर आधुनिक समय में भी भारत में शिक्षक (गुरु) को माता-पिता के बाद सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। ऐसे में, मजहबी उन्माद से भरे पीएफआई के सदस्यों का एक शिक्षक के प्रति बर्ताव चिंतनीय है। सेवा कार्यों (बचाव एवं राहत) हेतु दिए जाने वाला प्रशिक्षण प्रोफेसर जोसेफ का बर्बरता से हाथ काटने वाली हृदय विदारक घटना के पूरी तरह विपरीत है। जिनके मन-मस्तिष्क में मजहबी उन्माद हो, उनसे लोकरक्षा एवं लोक कल्याण की अपेक्षा कदापि नहीं की जी सकती। ऐसे लोगों से तो कदापि नहीं, जो मजहबी उन्माद में अपने गुरु का हाथ काट कर उसे सबक सिखाने पर उतारू हों।
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