आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक के पारित होने का अर्थ है शातिर अपराधियों की खैर नहीं। इस नए कानून में प्रावधान किया गया है कि किसी भी अपराधी की बायोमेट्रिक जानकारी पुलिस अपने पास रख सकती है। यानी पुलिस किसी अपराधी के हस्ताक्षर, उसकी आंख, नाखून, अंगूठे आदि के निशान, ईमेल आईडी, बैंक विवरण, स्थाई पता आदि को अपने पास रख सकती है। रखने की यह अवधि 75 साल है। यानी एक बार जो अपराधी पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो पुलिस उसकी पूरी जानकारी ले सकती है और अपने पास 75 वर्ष तक रख सकती है। जानकार मानते हैं कि इससे शातिर अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा और उन्हें सजा आसानी से दिलाई जा सकती है। इस कानून में राजनीतिक आंदोलन में शामिल लोगों को छूट दी गई है। यानी किसी राजनीतिक आंदोलन के कारण किसी की जांच हो रही है तो उसकी बायोमेट्रिक जानकारी नहीं ली जाएगी, लेकिन यदि उसका आपराधिक इतिहास होगा तो उसके साथ भी सामान्य अपराधी की तरह ही व्यवहार किया जाएगा।
अक्सर यह देखा जाता है कि कोई अपराधी किसी राज्य में अपराध कर किसी दूसरे राज्य में चला जाता है। यदि वह पकड़ा भी जाता है, तो उसकी पूरी जानकारी केवल उसी राज्य की पुलिस के पास होती है। इस कारण उसे पकड़ना और सजा दिलाना आसान नहीं रहता है। यही कारण है कि अब केंद्र सरकार ने ऐसे अपराधियों की पूरी जानकारी रखने के लिए यह कानून बनाया है, लेकिन विपक्ष इसे कड़ा कानून बता रहा है। विपक्ष की आशंकाओं को निराधार बताते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पुलिस और जांचकर्ता अपराधियों से दो कदम आगे रहें, इसलिए यह कानून बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि राजनीतिक बंदियों को किसी आंदोलन में भाग लेने के दौरान हिरासत में लिया गया हो तो उनका बायोमेट्रिक डेटा नहीं लिया जाएगा। मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि इससे किसी की निजता का हनन नहीं होगा। उन्होंने कहा कि एकत्र की गई जानकारी पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी और सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि कानून में कोई खामियां न हों जिससे निजता और मानवाधिकारों का उल्लंघन हो।
अमित शाह ने यह भी कहा कि हमारा कानून अन्य देशों की तुलना में कड़ाई के मामले में ‘बच्चा’ (कुछ नहीं) है। दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में ज्यादा कड़े कानून हैं, यही वजह है कि उनकी सजा की दर बेहतर है।
टिप्पणियाँ