हम सब जानते हैं कि मंदिरों में होने वाली पूजा में काफी संख्या में फूलों और बेल पत्रों का उपयोग किया जाता है। बाद में इन फूलों और बेल पत्रों को आसपास के नदियों या नालों में बहा दिया जाता है। इस कारण जल प्रदूषित होता है। कुछ ऐसा ही देश की प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक झारखंड स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर के आसपास भी हो रहा था। मंदिर में चढ़ाए जाने फूलों और बेल पत्रों को पास में बह रही भैरवी और दामोदर नदी के संगम में बहा दिया जाता था। इससे नदी का जल तो प्रदूषित होता ही था, साथ ही पूरे मंदिर क्षेत्र में कचरे का अंबार दिखाई देता रहता था। लेकिन अब यहां ऐसा नहीं होता। रामगढ़ जिले की उपायुक्त माधवी मिश्रा की पहल पर मां छिन्नमस्तिका मंदिर में चढ़ाए गए फूलों और बेल पत्रों से गुलाल, अबीर, अगरबत्ती आदि वस्तुएं तैयार की जा रही हैं। भविष्य में इस योजना को और भी बड़ा रूप देने की योजना है। रामगढ़ प्रशासन की इस पहल के बाद न सिर्फ नदियों का प्रदूषण स्तर कम हुआ है, बल्कि आसपास के क्षेत्र के कई लोगों को भी रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं।
रामगढ़ की उपायुक्त माधवी मिश्रा के अनुसार होली से पहले मंदिर के फूलों से बना गुलाल बाजार में मिलने लगा था। इसके साथ ही इन फूलों और बेल पत्रों के माध्यम से अगरबत्ती और धूप बनाई जा रही है उसे भी बाजार में उतार दिया गया है। इससे लगभग 40 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं कि ऐसी योजना सिर्फ राज्य में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में चलाई जाए, ताकि मंदिरों के फूलों और बेल पत्रों का उचित उपयोग किया जा सके।
मंदिर के पुजारियों के सहयोग से और वहां के दुकानदारों को भी इन वस्तुओं को बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। मां का आशीर्वाद रिसाइकल होने के बाद दोबारा श्रद्धालुओं के पास ही पहुंच रहा है।
उपायुक्त माधवी मिश्रा ने यह भी बताया कि मंदिर में काफी दूर-दूर से लोग बकरों की बलि देने के लिए आते हैं। यहां पर बकरों की बलि देने के बाद उनका रक्त और उनके चमड़े को भी नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे भी रामगढ़ प्रशासन की ओर से योजनाबद्ध तरीके से बायो मिथनाइज प्रोसेस के माध्यम से बिजली उत्पादन की योजना बनाई गई है। इस बिजली का उपयोग पूरे मंदिर प्रांगण में ही किया जाएगा।
मंदिर के पुजारी विक्रम पंडा ने बताया कि इस बार की होली में भी कई जगहों पर फूलों से बने गुलाल की बिक्री हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन की इस पहल से एक नई क्रांति आई है। ऐसी ही पहल दूसरे मंदिरों में भी करने की आवश्यकता है।
इन योजनाओं के लिए जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट यानी डीएमएफटी के पैसों का उपयोग किया जा रहा है। इसे डीएमएफटी फंड भी कहते हैं। इसके पैसों का उपयोग जिले के अंदर कई विकास कार्यों के लिए किया जाता है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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