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22 साल चीन की जेल में कैद रहकर दमन सहने वाले बौद्ध भिक्षु ग्यालत्सेन नहीं रहे

by WEB DESK
Feb 24, 2022, 05:30 am IST
in विश्व, दिल्ली
भिक्षु ग्याल्त्सेन

भिक्षु ग्याल्त्सेन

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भिक्षु ग्याल्त्सेन के निधन से तिब्बत समुदाय बेहद आहत है। तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए उनका संघर्ष अनेक युवाओं को प्रेरणा दे रहा 

तिब्बत के बौद्धों में सम्मान से देखे जाने वाले भिक्षु न्ग्वांग ग्याल्त्सेन का 61 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने 1987 में हुए ल्हासा आंदोलन में बढ़—चढ़कर भाग लिया था। उस समय उनकी आयु सिर्फ 17 वर्ष थी। उनकी मृत्यु की खबर देते हुए रेडियो फ्री एशिया ने बताया कि वे ल्हासा स्थित देपुंग मठ के उन 21 भिक्षुओं में से एक थे जिन्होंने ल्हासा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। समाचार के अनुसार भिक्षु ग्याल्त्सेन के निधन से तिब्बत समुदाय बेहद आहत है क्योंकि तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए उनका संघर्ष अनेक युवाओं को प्रेरणा देता आ रहा था। 

उल्लेखनीय है कि न्गवांग ग्यालत्सेन 1987 में दलाई लामा तथा तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलनरत रहे थे। उन्होंने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शनों में भाग लिया था। उधर तब चीन सरकार उन पर नजर रखे हुए थे। चीनी अधिकारियों ने ग्याल्त्सेन पर देश की सुरक्षा को कमजोर करने, पृथकतावाद भड़काने तथा जासूसी के आरोप लगाए और उन्हें जेल में ठूंस दिया। वे 19 साल चीन की जेल में कैद रहे। इस दौरान उन्होंने जबरदस्त अत्याचार सहे लेकिन तिब्बत के प्रति अपना संघर्ष ढीला नहीं पड़ने दिया। तिब्बत को निगलने वाली चीन की सरकार ने भिक्षु ग्यालत्सेन को 2006 में रिहा किया था। 

1987 के ल्हासा आंदोलन के दौरान जगह जगह हुए थे चीन विरोधी प्रदर्शन  (फाइल चित्र) 

भिक्षु ग्यालत्सेन एक जुझारू बौद्ध थे। वे जिंदगीभर तिब्बत में चीन के दमन और विस्तारवादी नीतियों का विरोध करते रहे थे। उन्होंने सिर्फ 1987 के ल्हासा विद्रोह में ही भाग नहीं लिया था, बल्कि 2006 में चीन की कैद से रिहा होने के बाद भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अत्याचारी शासन के विरोध में मुखर रहे थे।

 

रेडियो फ्री एशिया से इस बारे में बात करते हुए मठ से जुड़े एक अन्य भिक्षु नगवांग ने कहा कि कैद में रहते हुए भी तिब्बत के संघर्ष को सतत चलाए रखने वाले राजनीतिक कैदी ग्याल्त्सेन के निधन पर सबको गहन दुख पहुंचा है। वे भले नहीं रहे हैं, लेकिन निर्वासित तिब्बती नौजवानों को तिब्बत में तिब्बती समुदाय को भिक्षु ग्याल्त्सेन की हिम्मत, समर्पण और मजबूत इरादों को महसूस करना चाहिए। 

भिक्षु ग्यालत्सेन एक जुझारू बौद्ध थे। वे जिंदगीभर तिब्बत में चीन के दमन और विस्तारवादी नीतियों का विरोध करते रहे थे। उन्होंने सिर्फ 1987 के ल्हासा विद्रोह में ही भाग नहीं लिया था, बल्कि 2006 में चीन की कैद से रिहा होने के बाद भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अत्याचारी शासन के विरोध में मुखर रहे थे। जेल से रिहा होने के बाद, भिक्षु ग्याल्त्सेन नागचु काउंटी में रोंगपो गादेन मठ में रहे थे। वे तिब्बतियों की परंपरागत चित्रकला थांगका के अध्येता थे। पारंपरिक रस्मी तिब्बती नृत्य में भी उनकी विशेष रुचि थी। 

लेकिन चीनी दमनकारी ताकत ने उन्हें वहां भी ठहरने नहीं दिया और मठ से चले जाने के आदेश दिए। उनके किसी भी तरह के आंदोलन में भाग लेने पर रोक लगा दी गई। किसी को भी उनसे मिलने या संपर्क करने की अनुमति नहीं थी। साल 2015 केे फरवरी महीने में भी चीन की पुलिस ने उन्हें पकड़ा था। उनके विरुद्ध फर्जी आरोप लगा दिए गए और मुकदमा चलाया गया। उन्हें एक बार फिर ल्हासा की द्रापची जेल में कैद कर दिया गया। वे उस जेल में 3 साल कैद रहे थे। 

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