आजकल जिसे देखो, मोबाइल फोन पर आंख गढ़ाए दिखता है। पल भर फुर्सत मिली नहीं कि हाथ यंत्रवत् मोबाइल पकड़ लेता है और जरूरत हो या न हो, आदमी तमाम सोशल साइटों और यूट्यूब को खंगालने लगता है। दिल्ली में किसी भी मेट्रो में जाइए, अंदर बैठा या खड़ा हर बच्चा, बूढ़ा, जवान मोबाइल पर आंखें गढ़ाए या कान में मोबाइल के इयरफोन लगाए ही दिखेगा। फेसबुक, इंस्टा, ट्विटर, कू, टेलीग्राम, यूट्यब वगैरह पर नजरें दौड़ाने के बाद वह जहां आंखें थका लेता है वहीं दिमाग भी भारी कर लेता है। नए शोध बताते हैं कि इससे दिमागी काम में आदमी ढीला पड़ता जाता है और एकाग्रता खो बैठता है।
इंग्लैंड के लेखक योहान हारी एक जाना—माना नाम हैं मनोविज्ञान की दुनिया में। हारी का ताजा शोध चौंकाने और उन लोगों के लिए आंखें खोलने वाला है जो हर वक्त मोबाइल में उलझे रहते हैं और खुद को सूचनाओं का महारथी कहते हैं। योहान कहते हैं कि लोगों में एकाग्रता भंग होने की आजकल नई जानकारियां सामने आ रही हैं। लोग कामों पर उतना गौर नहीं कर पा रहे हैं जितना पहले कर लिया करते थे। ध्यान देने की उनकी क्षमता घटती जा रही है।
योहान हारी का कहना है कि लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम होते जाने के पीछे एकाग्रता का संकट ही है। दरअसल आज के चलन के हिसाब से लोगों ने मोबाइल अथवा कम्प्यूटर पर पढ़ने की आदत डाल ली है, लेकिन इससे भी एकाग्रता भंग हो रही है। इसके उलट साबित यह हुआ है कि सीधे किताब पढ़ने से एकाग्रता बढ़ती है।
लेखक हारी कहते हैं कि आज की टेक्नोलॉजी लोगों के दिमागों पर उलटा असर डाल रही है। उदाहरण के तौर पर उनका कहना है कि अमेरिका में अगर एक औसत कामगार को कोई काम दिया जाए तो वह उस काम पर तीन मिनट से ज्यादा ध्यान ही नहीं जमा पाता। इतनी देर में ही उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है। उनके अनुसार, एक औसत आदमी एक दिन में करीब 2000 बार अपने मोबाइल फोन पर नजर डालते हैं।
इस ब्रिटिश लेखक के अनुसार, मोबाइल पर कुछ पढ़ने से ध्यान जमाने की क्षमता बढ़ती नहीं है, बल्कि किसी भी एक चीज पर ज्यादा गौर करने पर मुश्किल पेश आती है। योहान हारी कहते हैं, एक आदमी औसतन दिन के करीब तीन घंटे से ज्यादा वक्त मोबाइल फोन पर 'स्क्रोल' करने में बिताते हैं। इस आदत को 'अटेंशन क्राइसिस' यानी 'ध्यान लगाने में कमी' कहा जाता है। जबकि बड़ी उच्च तकनीकी कंपनियों का कारोबार ऐसा है कि वे एकाग्रता के बूते ही कारोबार को मोटा करती हैं।
एक और बात। आम लोगों में ध्यान जमाने में आ रही इस कमी के दूसरे बड़े कारणों में से एक 'हाई प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेटिड फूड' भी है, जिसके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती। दूसरे पूरी नींद न लेना भी बार—बार एकाग्रता भंग होने की एक बड़ी वजह है। इन चीजों से किसी भी चीज पर ध्यान जमाने की ताकत घटती है। भारत में कई बड़ी हवाई सेवा कंपनियों ने तो अपने विमान चालकों के लिए ड्यूटी पर पूरी नींद लेकर आना अनिवार्य किया हुआ है।
तो क्या तरीका है जिससे आज के दौर में एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है। भारत के चिर—प्रचलित योग से इसमें बहुत मदद मिलती है। योग से एकाग्रचित्त होने का गुर पाया जा सकता है। इसमें कई आसन और यौगिक क्रियाएं हैंं जो ध्यान मं वृद्धि करती हैं। इसके अलावा, जैसा कि योहान हारी ने ही बताया है कि उन्होंने 3 महीने तक इंटरनेट से दूरी बनाकर रखी। इसके साथ ही, आठ घंटे की पूरी नींद ली।
आजकल अक्सर सुनने में आता है कि 'पढ़ने की आदत ही छूट गई है'। इसके पीछे भी एक वजह है। हारी का कहना है कि लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम होते जाने के पीछे एकाग्रता का संकट ही है। दरअसल आज के चलन के हिसाब से लोगों ने मोबाइल अथवा कम्प्यूटर पर पढ़ने की आदत डाल ली है, लेकिन इससे भी एकाग्रता भंग हो रही है। इसके उलट साबित यह हुआ है कि सीधे किताब पढ़ने से एकाग्रता बढ़ती है। यह दिमाग के लिए भी अच्छा माना गया है।
हारी के अनुसार, काम की दृष्टि से चार दिन का सप्ताह एक कारगर विचार है। इससे एकाग्रता वापस आ सकती है। उनका कहना है कि कोरोना के संक्रमण काल में लोगों के दिमाग खतरे के बारे में सोचते रहे थे और उसे भांपने की चिंता करते रहे थे। इससे भी एकाग्र होने की क्षमता पर उलटा असर पड़ा है। इससे उबरने के लिए चार दिन का सप्ताह करने का विचार काम करेगा। उनका यह भी कहना है कि छोटे बच्चों को खुलकर खेलने देना चाहिए। इससे बच्चों को संपूर्ण और सकारात्मक रूप से विकसित होने में मदद मिलती है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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