भारत में जिस तरह कथित इस्लाम के पैरोकार एक एजेंडा के तहत हिजाब का मुद्दा गर्माए हुए हैं उन्हें जरा उन देशों पर नजर डालनी चाहिए जो खालिस इस्लामी और सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले है, लेकिन स्कूलों की वर्दी में हिजाब पर पूरी तरह पाबंदी लगाए हुए हैं। और बात सिर्फ जबानी पाबंदी की नहीं, वहां लिखित में सरकारी आदेश है कि कोई भी स्कूल अपनी वर्दी में हिजाब या बुर्का पहनने की इजाजत नहीं देगा। इसलिए जो इसे इस्लाम में 'हया' का मुलम्मा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं, उन्हें इस एजेंडाई रवैए से बाज आना चाहिए।
फिलहाल, तो कर्नाटक में इसका मुस्लिमों द्वारा ऐसा शोशा खड़ा किया गया है कि जिसकी जद में इतिहास के कूड़ेदान में पड़े कुछ और राज्यों के 'इस्लामवादियों' को इस मुद्दे पर राजनीति चमकाने का मौका जैसा मिल गया है।
उल्लेखनीय है कि शिक्षण संस्थानों में हमेशा से एक खास वर्दी में ही छात्र आते हैं, यही शुरू से परंपरा रही है और सालों से मुस्लिम छात्र—छात्राएं इसी के तहत व्यवहार करते आए हैं। और शिक्षण संस्थान ही क्यों, बहुतेरे और संस्थान हैं जहां की एक खास पोशाक तय है। उदाहरण के लिए हमारे न्यायालय, जहां वकील हों या जज, सब काली पेंट, सफेद कमीज और लंबा काला कोट ही पहनते हैं, उसमें मुस्लिम भी शामिल हैं, जिन्होंने कभी इस तरह की परेशानी नहीं खड़ी की। लेकिन कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने की 'अनिवार्यता' के पीछे जिस तरह के तर्क दिए जा रहे हैं, वे हास्यास्पद ही नहीं, अपने एजेंडाजनित होने का खुलासा ही करते हैं।
हम बात करते हैं इंडोनेशिया की। यह दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी देश माना जाता है। लेकिन इसी इंडोनेशिया ने अपने यहां शिक्षण संस्थानों में हिजाब को अनिवार्य बनाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। वहां कोई स्कूल गैर—मुस्लिमों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं कर सकता, क्योेंकि इसके विरुद्ध वहां सख्त नियम हैं।
गौर करने वाली बात है कि इंडोनेशिया में 20 से ज्यादा सूबों में स्कूलों में हिजाब पहनने पर सरकार की तरफ से रोक लगाई हुई है। ये वही सूबे हैं जहां पहले बहुत से स्कूल अड़े हुए थे कि छात्राएं मुस्लिम हों या गैर—मुस्लिम, सभी हिजाब पहनकर स्कूल आएं, यह उनकी वर्दी में शामिल था। और दिलचस्प बात यह कि ये कायदा न केवल छात्राओं पर, बल्कि महिला शिक्षकों पर भी लागू था। लेकिन इस बात पर गैर—मुस्लिम लोगों में आक्रोश पैदा हुआ।
बता दें कि इंडोनेशिया ऐसा मुस्लिम देश है जहां 86.7 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, उनके अलावा छह अन्य मत—पंथों के अनुयायी भी वहां के नागरिक हैं। उन सबने एकजुट होकर हिजाब की अनिवार्यता के विरुद्ध झंडा उठा लिया। इस्लामी सरकार हरकत में आई और सभी के लिए वर्दी में हिजाब पर पाबंदी लगा दी गई। वर्तमान में वहां के स्कूल किसी तरह के मजहबी झलक देने वाले कपड़ों को स्कूलों में वर्दी में शामिल नहीं कर सकते। गैर—मुस्लिमों का वह आंदोलन पश्चिमी सुमात्रा के एक स्कूल के गैर-मुस्लिमों के लिए भी हिजाब पहनना जरूरी करने के बाद हुआ था।
बस एक लड़की के अभिभावकों ने जो इसका विरोध करना शुरू किया कि देखते—देखते उनको साथ देने वाले बढ़ते गए और 2020 में पूरे देश में एक बड़ा जनांदोलन खड़ा हो गया। हर जगह विरोध प्रदर्शन हुए। सरकार ने सभी पक्षों की बात सुनने के बाद, समझदारी भरा कदम उठाते हुए फरवरी 2021 में स्कूलों में हिजाब की अनिवार्यता पर प्रतिबंध लगा दिया।
तब इंडोनेशिया के मजहबी मामलों के मंत्री याक़ूत का कहना था कि पश्चिमी सुमात्रा ही नहीं, ऐसे और भी मामले देखने में आए हैं। याकूत ने स्पष्ट कहा कि मजहब के नाम पर किसी और की स्वतंत्रता को बाधित नहीं किया जा सकता।
दरअसल इस सिलसिले में एक 16 साल की ईसाई छात्रा का वीडियो वायरल हुआ था जिसके बाद इंडोनेशिया की सरकार ने देश के सभी स्कूलों को कहा कि एक महीने के भीतर अपने यहां हिजाब और बुर्के से जुड़े तमाम कायदे खत्म करो। साथ ही, कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार ने कानून बनाया कि इस आदेश को न मानने वाले स्कूलों व अन्य संस्थानों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी तथा जुर्माना भरना पड़ेगा। सरकार ने स्वीकार किया कि ये किसी व्यक्ति का निजी अधिकार है, स्कूल इस बारे में फैसला लेने में सक्षम नहीं हैं।
लेकिन भारत में ज्यादातर सेकुलर राजनीतिक दल मुस्लिमों को वोट बैंक से ज्यादा नहीं मानते। इस हिजाब मुद्दे पर भी वही दल आगे बढ़कर दलीलें दे रहे हैं जो दरअसल मुस्लिम वोटों के लिए लार टपकाते रहते हैं और उनके एकमुश्त वोट पाने को लालायित रहते हैं।
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