झारखंड के सिमडेगा से कांग्रेस के विधायक हैं भूषण बाड़ा। नाम से तो ये हिंदू हैं,लेकिन कर्म से ईसाई लगते हैं। हालांकि ऐसे लोगों के मत—पंथ के बारे में कुछ निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता,लेकिन हमारे सूत्रों ने स्पष्ट रूप से बताया है कि वे ईसाई हैं। पिछले दिनों उनके एक पत्र से भी लगता है कि वे ईसाई हो चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि भूषण ने हाल ही में झारखंड के कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने रघुवर दास के नेतृत्व में बनी भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार पर अनेक आरोप लगाए हैं। इसमें उन्होंने लिखा है कि झारखंड की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने ईसाई समुदाय को प्रताड़ित करने का काम किया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि भाजपा सरकार ने झारखंड में ईसाई समुदाय के खिलाफ षड्यंत्र रच कर उन्हें डराने, धमकाने के साथ आर्थिक, राजनीतिक, पांथिक और सामाजिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि पूर्व की भाजपा सरकार ने मत—पंथ के आधार पर अनुसूचित जनजाति के रूप में दिए जाने वाले अधिकारों और लाभों से ईसाइयों को वंचित रखा है। उन्होंने यह भी लिखा है कि भाजपा सरकार ने 2019 में नया जाति प्रमाणपत्र का प्रारूप लाया,जिसमें मत का 'कॉलम' डाला गया है। भूषण ने इन सबको ईसाई विरोधी बताते हुए निरस्त करने की मांग की है। भूषण को इस बात पर भी आपत्ति है कि भाजपा सरकार ने जनजाति समाज की जमीन पर ईसाई मिशनरियों के अतिक्रमण को रोकने के लिए भी कानून बनाया है। इसमें गलत क्या है! यह सवाल सुनते ही वे उखड़ गए। उन्होंने बात करने से ही मना कर दिया।
दरअसल, उनकी नाराजगी का मूल कारण है उनका छुपा चेहरा और वह चेहरा है एक ईसाई का। बता दें कि वे मूल रूप से उरांव जनजाति के हैं और इसी आधार पर वे जनजातियों के लिए आरक्षित सिमडेगा विधानसभा से चुनाव लड़कर विधायक बने हैं। इसके लिए उन्होंने अपने नए मजहब यानी ईसाई होने की बात छिपाई है, क्योंकि एक ईसाई के नाते वे किसी आरक्षित क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यानी उन्होंने अपने मत को छुपाकर एक सनातनी जनजाति के अधिकारों पर डाका डाला है। यदि वे अपने मत को नहीं छुपाते तो वे चुनाव नहीं लड़ सकते थे। इस कारण किसी सनातनी जनजाति को ही चुनाव लड़कर विधायक बनने का अवसर मिलता। इस तरह उन्होंने एक सनातनी जनजाति के अधिकार पर डाका डाला है और उनका यह डाका निर्बाध रूप से चलता रहे इसलिए वे उन कानूनों को ही गलत मान रहे हैं, जिन्हें जनजातियों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए बनाया गया है।
उल्लेखनीय है कि रघुवर सरकार ने जनजातीय समाज की संस्कृति, उनकी जमीन और उनके समाज को बचाने के लिए कई कानून बनाए थे। यह सब जनजातीय परामर्शदात्री परिषद यानी टीएसी की सलाह के बाद किया गया था। टीएसी की ओर से कहा गया था कि जिन जनजातियों ने अपने मूल मत को छोड़कर ईसाई मत अपना लिया है, उन्हें जनजातीय समाज को मिलने वाली किसी भी सुविधा का लाभ नहीं मिलना चाहिए। बता दें कि ईसाई बन चुके लोग जाति प्रमाणपत्र तो जनजाति का बनवाते हैं। ऐसे लोगों को रोकने के लिए रघुवर सरकार ने जाति प्रमाणपत्र में मत का 'कॉलम' जुड़वाया था।
झारखंड में सीएनटी, एसपीटी विल्किंशन रूल को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। बता दें कि पिछले दिनों इसी विल्किंशन रूल की आड़ में कुछ लोगों ने चाईबासा में अलग 'कोल्हान देश' की मांग की थी। इस कारण इनकी पुलिस वालों से झड़प भी हुई थी।
सवाल उठता है कि इन कानूनों से किसको तकलीफ होगी! सीधी—सी बात है, उन्हें ही तकलीफ होगी, जो अल्पसंख्यक और जनजाति के नाम पर दोहरा लाभ लेते हैं। ऐसे लाखों लोगों में एक भूषण बाड़ा भी हो सकते हैं। इसलिए वे रघुवर सरकार के समय बने कानूनों को ईसाई विरोधी बता रहे हैं। वहीं सिमडेगा के पूर्व विधायक श्रद्धानंद बेसरा ने कहा कि भाजपा सरकार ने कभी भी किसी के प्रति पक्षपात का नजरिया नहीं अपनाया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को आरक्षण के नाम पर दो—दो बार फायदा मिल जाना कहीं से भी उचित नहीं है। अगर किसी ने अपना मत परिवर्तन कर लिया है तो उसे अल्पसंख्यक का लाभ तो मिल ही रहा है। ऐसे में इस तरह की मांग करना अनुचित है।
भ्रूषण का यह भी कहना है कि झारखंड में सीएनटी, एसपीटी विल्किंशन रूल को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। बता दें कि पिछले दिनों इसी विल्किंशन रूल की आड़ में कुछ लोगों ने चाईबासा में अलग 'कोल्हान देश' की मांग की थी। इस कारण इनकी पुलिस वालों से झड़प भी हुई थी। ऐसा माना जा रहा है कि अलग 'कोल्हान देश' की मांग के पीछे चर्च और नक्सली तत्व हैं। अब शायद यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं है कि भूषण बाड़ा क्या हैं और क्या चाहते हैं!
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