कैप्टन अमरिंदर सिंह के बारे में एक कहावत है- वह कभी हार नहीं मानते। वक्त ने यदि उन्हें मात दी तो वह फिर वापसी करते हैं। क्या इस बार यह संभव हो सकता है? कम से कम जिस हालात में कैप्टन हैं, उससे तो इतनी जल्दी यह संभव होता दिखाई नहीं देता। कैप्टन ने इस बार ही कांग्रेस नहीं छोड़ी, इससे पहले उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में कांग्रेस छोड़ी थी। तब वह लोकसभा के सदस्य थे। कांग्रेस छोड़ वह अकाली दल में शामिल हो गए थे। वहां तलवंडी साबो से विधायक बने। अकाली सरकार में उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया। यहां भी वह ज्यादा चल नहीं पाए।
पंजाब में कांग्रेस को खड़ा करने का श्रेय
रविवार को जब कैप्टन अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची जारी कर रहे थे, तो बरबस ही 1992 का वक्त याद आ रहा था। तब अमरिंदर सिंह ने अकाली दल का साथ छोड़कर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल पंथक पार्टी बनाई थी। विधानसभा चुनाव में इस पार्टी को बुरी तरह से हार मिली थी। कैप्टन समाना विधानसभा से चुनाव लड़ रहे थे,तब उन्हें मात्र 856 वोट मिले थे। 1998 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। जैसे ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष का पद संभाला तो कैप्टन को प्रदेशाध्यक्ष बनाया। वह 1999 से 2002 तक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। इसके बाद 2002 में वह मुख्यमंत्री बने। पंजाब में कांग्रेस को जीतने का जज्बा पैदा करने का कुछ हद तक श्रेय कैप्टन को जाता है।
अपने गढ़ पटियाला से लड़ेंगे चुनाव
अस्सी साल की उम्र में एक बार फिर से कैप्टन नए सिरे से अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगे हुए हैं। उन्होंने इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन किया है। रविवार को पहली लिस्ट जारी की। पटियाला कैप्टन का गढ़ है। यहां उन्हें चुनौती देना दूसरी पार्टियों के लिए आसान नहीं है। कुछ लोगों का यह मानना था कि कैप्टन इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि उनकी उम्र ज्यादा हो गई है। लेकिन कैप्टन ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा के साथ यह दावा किया कि वे सिद्धू को हराने के लिए उनके खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अब उन्होंने अपनी पारंपरिक और सुरक्षित सीट से ही उतरने का ऐलान किया है। सिद्धू को हराने की बात पर उन्होंने कहा कि वह उन्हें हराने का काम करेंगे।
इन सीटों पर कांग्रेस का बिगाड़ेंगे खेल
अमृतसर दक्षिण से पंजाब लोक कांग्रेस ने हरजिंद्र सिंह ठेकेदार को उम्मीदवार बनाया है, जो कांग्रेस के पूर्व विधायक भी हैंं। यहां से कांग्रेस के मौजूदा विधायक इंदरबीर सिंह बुलारिया हैं। ठेकेदार की पंजाबी मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है। वे जमीनी स्तर पर मजबूत हैं। वहीं, भुलत्थ से कैप्टन की पार्टी से गोरा गिल दोआबा की राजनीति का जाना पहचाना चेहरा हैं। कैप्टन के समय में कांग्रेस प्रदेश कमेटी के प्रवक्ता भी रहे हैं। वह पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से कांग्रेस ने सुखपाल खैहरा को उम्मीदवार बनाया है, जो कि इस वक्त ईडी की हिरासत में हैं। अकाली दल ने यहां से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर को उतारा है। गौरा गिल के आने से यहां मुकाबला रोचक हो गया है।
पंजाब लोक कांग्रेस ने नकोदर से अजीत पाल सिंह को मैदान में उतारा है, जो 1975 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के कैप्तान रह चुके हैं। वे इस क्षेत्र के जाने-माने व्यक्ति हैं। यहां के मतदाता भी उन्हें काफी सम्मान देते हैं। अकाली दल ने मौजूदा विधायक गुरु प्रताप सिंह बड़ला पर ही विश्वास जताया है।बठिंडा अर्बन से कैप्टन ने राज नंबरदार को टिकट दिया है, जो यहां के जाने-माने हिंदू चेहरा हैं। यहां के व्यापारी वर्ग में इनकी अच्छी पकड़ है। 1985 में इनके पिता भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। चूंकि भाजपा के साथ कैप्टन का गठजोड़ है, इसलिए यहां से कांग्रेस के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल के लिए जीत मुश्किल हो सकती है।
मलेरकोटला मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। कैप्टन ने यहां से पूर्व अकाली विधायक फरजाना आलम खान को उम्मीदवार बनाया है। वह पूर्व डीजीपी इजहार आलम की पत्नी हैं। फरजाना को यहां जमीनी स्तर पर काम करने वाली नेता के तौर पर जाना जाता है। मुस्लिम मतदाताओं पर उनकी अच्छी पकड़ है। कांग्रेस ने यहां से रजिया सुल्ताना को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह अभी चन्नी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री हैं। फरजाना उन्हें इस सीट पर कड़ी टक्कर दे सकती हैं।
इसी तरह, पटियाला देहात से कैप्टन ने मेयर संजीव शर्मा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने मौजूदा मंत्री और कैप्टन के साथी रहे ब्रह्म मोहिंदर के बेटे मोहित इंद्र को मैदान में उतारा है। संजीव शर्मा पंजाबी ब्राह्मण हिंदू चेहरा है। इनकी पटियाला में अच्छी खासी पकड़ है। इसका लाभ कैप्टन की पार्टी को मिल सकता है। मानसा से कैप्टन ने पूर्व अकाली विधायक और लुधियाना के डिप्टी मेयर प्रेम मित्तल को आत्मनगर से उम्मीदवार बनाया। पूर्व पुलिस अधिकारी मुख्तियार सिंह जो कि पंजाब का प्रमुख दलित चेहरा भी हैं, को निहाल सिंह वाला से उम्मीदवार बनाया है। पूर्व मंत्री जगदेव सिंह तेजपुरी के बेटे सतेंद्र पाल सिंह को लुधियाना दक्षिण से चुनाव मैदान में उतारा है।
उम्मीदवारों का चयन बड़ी सूझबूझ से किया
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि कैप्टन ने इस बार जो उम्मीदवार चुने हैं, वह काफी मजबूत हैं। विधानसभा चुनाव में इनका अच्छा खासा प्रदर्शन रह सकता है। इनके आने से दूसरी पार्टियों की जीत के समीकरण भी अब प्रभावित हो सकते हैं, जिससे दूसरे दलों का खेल बिगड़ सकता है। इस तरह से देखा जाए तो कैप्टन ने इस विधानसभा चुनाव को काफी रोचक बना दिया है। देखना यह होगा कि 80 साल के बुजुर्ग कैप्टन क्या एक बार फिर से खुद को कितना साबित कर पाते हैं।
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