भारत के सॉफ़्टवेयर उद्योग की कामयाबी की गाथा सुनाने के लिए वित्तीय क्षेत्र में बेहद सफल हुए तीन भारतीय सॉफ्टवेयरों और एक मशहूर भारतीय साइबर सुरक्षा सॉफ्टवेयर क्विक हील की चर्चा करना जरूरी है। ये सॉफ्टवेयर दुनिया भर में अपनाए गए हैं।
टैली
कारोबारी गतिविधियों, अकाउंट्स, सैलरी, धन के लेनदेन, करों आदि का हिसाब-किताब रखने वाले लोगों से पूछा जाए कि उनके लिए सबसे जरूरी सॉफ्टवेयर क्या है तो वे तुरंत कहेंगे- 'टैली।' इसका ताजातरीन संस्करण है- टैली प्राइम। बंगलुरु की टैली सॉल्यूशन्स लिमिटेड द्वारा विकसित इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भारत के अधिकांश कारोबारी संस्थानों में होता है और इसके यूजर्स की संख्या लाखों में है। इंग्लैंड, खाड़ी देशों और दक्षिण एशियाई देशों सहित सौ से ज्यादा देशों में बिकने वाले टैली की शुरूआत एक छोटे से कारोबारी सॉफ्टवेयर के रूप में हुई थी जिसका काम वाउचर्स निकालना, वित्तीय दस्तावेज तैयार करना और टैक्स आदि का हिसाब-किताब रखना था। लेकिन आज वह एक विशाल एंटरप्राइज रिसोर्सेज प्लानिंग (ईआरपी) सॉल्यूशन का रूप ले चुका है। करीब तीन दशक पहले स्व. एसएस गोयनका ने ऐसे सरल सॉफ्टवेयर की परिकल्पना की थी। भारत गोयनका को इसके लिए नैसकॉम की ओर से लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया जा चुका है।
फ्लेक्सक्यूब
भारत की कंपनी आइफ्लेक्स ने फ्लेक्सक्यूब नाम का जबरदस्त इंटरनेशनल बैंकिंग सिस्टम बनाया था। इस कंपनी में पहले सिटीग्रुप ने भारी-भरकम निवेश किया और 2007 में ओरेकल नामक बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी ने हजारों करोड़ की रकम देकर इसका अधिग्रहण कर लिया। उससे पहले इंग्लैंड की इंटरनेशनल बैंकिंग सिस्टम्स नामक संस्था ने इस सॉफ़्टवेयर को लगातार तीन साल 2002, 2003 और 2004 में विश्व का सर्वाधिक बिकने वाला बैंकिंग सॉल्यूशन करार दिया था। ओरेकल के अधिग्रहण के बाद कंपनी का नाम बदलकर ओरेकल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड हो गया। आइफ्लेक्स की कामयाबी के पीछे रवि आप्टे और राजेश हुक्कू की अहम भूमिका रही है। आइफ्लेक्स की अहमियत का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ओरेकल ने अधिग्रहण के पहले दौर में सन 2006 में सिर्फ 41 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए लगभग 3300 करोड़ रुपये खर्च किए थे। इन्फोसिस के फिनेकल की ही तरह आईफ्लेक्स के दर्जनों मॉड्यूल्स हैं जो बैंकिंग के लगभग सभी पहलुओं की देखरेख करने में सक्षम हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, आॅस्ट्रेलिया, चीन, सिंगापुर, रूस, यूनान, संयुक्त अरब अमीरात, चिली, कनाडा जैसे दर्जनों देशों में विशालतम बैंकिंग कारपोरेशन इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
फिनेकल
जिन लोगों को बैंकिंग उद्योग के बारे में जानकारी है, उन्होंने फिनेकल का नाम जरूर सुना होगा। इन्फोसिस द्वारा विकसित यह युनिवर्सल बैंकिंग सॉल्यूशन दुनिया भर में बैंकिंग उद्योग का चहेता है और इसे 94 देशों के सैकड़ों बैंक इस्तेमाल कर रहे हैं। इन देशों में अमेरिका, इंग्लैंड, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, ताइवान, हांगकांग, सिंगापुर, डेनमार्क, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, मैक्सिको और इंडोनेशिया शामिल हैं। इसे पहली बार 1999 में जारी किया गया था। ईआरपी सॉफ्टवेयर की तर्ज पर विकसित यह सॉल्यूशन बहुत सारे अवार्ड जीत चुका है। यह बैंकिंग कारोबार के दर्जनों संवेदनशील पहलुओं का बखूबी प्रबंधन करता है। कोर बैंकिंग, ई-बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, डायरेक्ट बैंकिंग, इस्लामिक बैंकिंग जैसे विशाल मॉड्यूल्स इसे बेहद विशाल और शक्तिशाली सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन बनाते हैं। अगर आज कोई बहुराष्ट्रीय निगम इसका स्वामित्व खरीदेगा तो उसे कुछ हजार करोड़ रुपये देने होंगे।
क्विक हील
पुणे से संचालित क्विक हील टेक्नोलॉजीज के एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर क्विक हील की गणना आज दुनिया के प्रमुख एंटी-वायरस सॉफ्टवेयरों और इंटरनेट सिक्यूरिटी सॉल्यूशन्स में होती है। सन 1993 में स्थापित इस कंपनी का भारत के कंप्यूटर सुरक्षा बाजार में प्रभुत्व है। कैलाश काटकर ने क्विक हील को भारतीय बाजार की जरूरतों के लिहाज से विकसित किया था। 1993 में काटकर की फर्म, जिसका मूल नाम कैट कंप्यूटर सर्विसेज था, एक कमरे के दफ्तर से कंप्यूटरों की सर्विस और मरम्मत करती थी। काटकर ने अपने छोटे भाई संजय के शैक्षणिक प्रोजेक्ट को ही अपने उत्पाद में बदल डाला और 1994 में डिस्क आॅपरेटिंग सिस्टम (डॉस) के लिए पहला क्विक हील एंटी वायरस जारी किया गया। सन 2002 में अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन मिलने के बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज क्विक हील एंटी वायरस भर नहीं रहा बल्कि बहुत सारे सिक्यूरिटी उत्पादों का बंडल बन चुका है। इसका सर्वर संस्करण भी उपलब्ध है तो विंडोज के अलावा मैकिन्टोश कंप्यूटरों और मोबाइल फोन पर भी इसके संस्करण मौजूद हैं। इस सॉफ्टवेयर की बदौलत क्विक हील टेक्नॉलॉजीज (नामकरण 2007 में हुआ) एक वैश्विक कंपनी बन गई है।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
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