हिंदी साहित्य के अनेक लेखकों की पुस्तकों का अनुवाद दुनिया की कई भाषाओं में हुआ है और यह अनवरत चलता रहता है। इसी कड़ी में हाल ही में प्रसिद्ध उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कृति 'मैला आँचल' का जापानी संस्करण प्रकाशित हुआ है। इसका नाम है— दोरोनो सुसो यानी मैला पल्लू। इसका हिंदी से जापानी में अनुवाद जापान के एक साहित्यकार मिकी युइचिरो ने किया है। उल्लेखनीय है कि रेणु जी जापान में काफी लोकप्रिय रहे हैं। उनकी अनेक कृतियों को वहां पढ़ा जाता है। उनके एक पाठक हैं मिकी युइचिरो। ये रेणु जी के बहुत बड़े प्रशंसक भी हैं। इस कारण उन्होंने उनके उपन्यास 'मैला आँचल' का जापानी में अनुवाद करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए वे 1994 में अपने एक भारतीय मित्र के साथ बिहार के अररिया जिले में स्थित फणीश्वरनाथ रेणु के गांव औराडी हिंगन्न आए थे। उसी समय रेणु जी के बड़े पुत्र पदम पराग राय से मिकी ने इसके अनुवाद की अनुमति मांगी थी और उन्हें अनुमति मिल गई थी।
फणीश्वरनाथ रेणु के छोटे पुत्र और कथाकार दक्षिणेश्वर प्रसाद राय ने बताया कि मिकी युइचिरो के गांव आने के दो उद्देश्य थे— एक, उन्हें यह देखना था कि वह कौन—सी माटी है, जहां फणीश्वरनाथ रेणु जैसे साहित्यकार ने जन्म लिया और दूसरा, उपन्यास में प्रयोग हुए कुछ कठिन शब्दों का अर्थ जानना।
बता दें कि 'मैला आँचल' एक आंचलिक उपन्यास है और स्वाभाविक रूप से इसमें बहुत सारे आंचलिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। जैसे—'अथि','खोप समेत कबुतराए नम:', 'गुप्त प्रदेश' आदि। ये ऐसे शब्द हैं, जिनका अर्थ उन्हें जानना था। खोप मिट्टी के उस बर्तन को कहते हैं, जिसका प्रयोग कबूतर पालने के लिए किया जाता है। ऐसे ही उपन्यास में गुप्त प्रदेश का अर्थ है मानव शरीर के निजी अंग।
इसके कुछ समय बाद ही मिकी ने उपन्यास का जापानी में अनुवाद कर दिया, लेकिन कोई प्रकाशक उसे छापने के लिए तैयार नहीं था। इसलिए 25 वर्ष तक अनुवाद की पांडुलिपि रखी रह गई। संयोग से पिछले वर्ष मिकी युइचिरो की भेंट जापान में भारत के मुख्य परामर्शदाता निलेश गिरी से हुई। मिकी ने उनको सारी बात बताई तो उन्होंने अपने स्तर से प्रयास किया और उसका सुपरिणाम यह हुआ कि पुस्तक छप गई। अपने पिता की इस कृति के जापानी में अनुवाद होने से दक्षिणेश्वर राय बहुत खुश हैं। वे कहते हैं, ''यह केवल मेरे या मेरे परिवार के लिए ही गौरव का क्षण नहीं है, बल्कि समस्त भारतीयों के लिए प्रसन्नता की बात है। साथ ही हिंदी साहित्य के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।''
उल्लेखनीय है कि फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी के ऐसे उपन्यासकारों में शामिल थे, जिनके पाठक अनेक देशों में हैं। यही कारण है कि इससे पहले 'मैला आँचल' का अंग्रेजी, पोलिश और रूसी भाषा में अनुवाद हो चुका है। दक्षिणेश्वर राय ने बताया कि इस समय भी अनेक विदेशी रेणु के साहित्य पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि एक ऐसे ही शोधकर्ता हैं— इयान वुडफोर्ड, जो आज अपना शोध पूरा कर अस्ट्रेलिया के लाट्राबे विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हैं।
फणीश्वरनाथ रेणु का रचना—संसार देशभक्ति को पुष्ट करता है और अन्याय का खुलकर विरोध करता है। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। स्वतंत्रता के बाद जब भी सरकार ने जनता के हितों की अनेदखी की उन्होंने उसके विरोध में लिखा। उन्होंने आपातकाल का जम कर विरोध किया था। विरोध—स्वरूप उन्होंने भारत सरकार को पद्मश्री सम्मान वापस कर दिया था। ऐसा करने वाले रेणु देश के पहले साहित्यकार थे। 1954 में 'मैला आँचल' उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद ही वे लोकप्रिय हुए।
टिप्पणियाँ