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संक्रान्त सानु
प्रतिनिधि सभा ने भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता पर जो प्रस्ताव पारित किया, वह सराहनीय है। लेकिन जिन मूल कारणों से भारतीय भाषाएं पीछे हो रही हैं उनका इसमें उल्लेख नहीं है। आज अंग्रेजी क्यों हावी हो रही है? अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में क्यों डाल रहे हैं? इसका कारण स्पष्ट है। आज अंग्रेजी नौकरी-व्यवसाय, विज्ञान और तकनीक से जुड़ गई है। इस कारण अंग्रेजी समाज में सम्मान का प्रतीक बन गई है।
अंग्रेजी का भारत में वर्चस्व अंग्रेजी की कोई वैश्विक अनिवार्यता के कारण नहीं है। विश्व के सभी समृद्ध देश अपनी-अपनी भाषाओं का प्रयोग कर रहे हैं और निज भाषा ही उनकी उन्नति का मूल है। तो भारत में अंग्रेजी का बोलबाला क्यों बढ़ रहा है? वह इसलिए क्योंकि सरकार की नीतियों में अंग्रेजी का ओहदा कायम रखा गया है। उच्च कोटि के शिक्षण संस्थान अंगे्रजी माध्यम से ही चल रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय में केवल अंग्रेजी में ही कार्य होता है। कई परीक्षाओं में भी केवल अंग्रेजी का बोलबाला है। इसका परिणाम यह है कि विद्यार्थियों का सबसे अधिक परिश्रम विषय समझने की जगह अंग्रेजी से जूझने में निकल जाता है। भाषा संस्कृति का वाहन है, यह बिल्कुल सही है। लेकिन यह समझ लेना होगा कि अंग्रेजी-माध्यम लागू करने के कारण भारत आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से पीछे रह रहा है। वैज्ञानिक शोध से यह साबित हो चुका है कि मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे की बुद्धि का सबसे अच्छा विकास होता है। दशकों से यूनेस्को का भी यही विमर्श है। जापान, रूस, चीन इत्यादि सभी देश अपनी भाषाओं में उच्च शिक्षा होने के कारण बहुत तेजी से विज्ञान और तकनीक में प्रगति कर रहे हैं।
हमारे यहां सरकार की गलत नीतियां, जो पूरे देश पर अंग्रेजी लादे हुए हंै, विकास का सबसे बड़ा अवरोधक बन गई हैं। हम पूरे देश की बुद्धि का हरण कर रहे हैं। अंग्रेजी-माध्यम लाद-लाद के अपने बच्चों को मानसिक विकलांग बना रहे हैं। संस्कृति का जो हश्र हो रहा है वह तो सामने ही है। इन गलत नीतियों के कारण ही अभिभावक अंग्रेजी के पीछे दौड़ रहे हैं। समस्या अभिभावकों की नहीं है, समस्या गलत व्यवस्था की है जो अंग्रेजी के भ्रम पर आधारित है।
इसका समाधान यही है कि हमें हर स्तर पर भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ाना होगा। सरकार को भाषा को व्यवसाय से जोड़ना होगा। रोजगार क्षेत्र में भी भारतीय भाषाओं की मांग बढ़ानी होगी।
यह भी आवश्यक है कि भारतीय भाषाओं को तकनीक के साथ जोड़ा जाए। आज जब कोई बच्चा स्कूल में कम्प्यूटर सीखता है तो यह केवल अंग्रेजी में पढ़ाया जाता है। अपनी भाषा में तकनीक की जानकारी से सृजन शक्ति बढ़ेगी, नए-नए आविष्कार होंगे। भाषा को केवल पुरातन संस्कृति का या साहित्य की वाहक ही नहीं, आधुनिकता की वाहन बनाना अनिवार्य है। तभी भाषा जीवित रहेगी।
(लेखक आई आई टी के स्नातक हैं और अमेरिका में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में कई साल काम कर चुके हैं )
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