|
कश्मीर में हिंदू नव वर्ष ‘नवरेह’ के नाम से जाना जाता है। दुनिया में जहां भी कश्मीरी हिंदू हैं, वे वहीं नव वर्ष मनाते हैं और अपने विस्थापन के खत्म होने की कामना करते हैं
सुनील
कश्मीरसांस्कृतिक रूप से बहुत ही समृद्ध है। लगभग 5,000 वर्ष पुरानी कश्मीर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का लिखित प्रमाण ‘नीलमत’ पुराण और कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में मिलता है।
नवरेह नव चंद्र वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह दिन चैत्र नवरात्र का प्रथम दिन तथा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का भी पहला दिन है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी इसे वर्ष का प्रथम दिन माना जाता है। नवरेह उत्साह और रंगों का पर्व है। कश्मीरी हिंदू इसे बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। नवसंवत् सरा का अर्थ है संवत् सन् का पहला दिन। कश्मीर में आज तक संवत् सन् को ही माना जाता है। मान्यता है कि आज से 5,094 वर्ष पहले नव रेह के दिन संवत् सन् आरंभ हुआ। यह भी मान्यता है कि 5,094 वर्ष पहले सप्तऋषि शारिका पर्वत (हरि पर्वत) पर इकट्ठे हुए। हरि पर्वत आदिदेवी शारिका का स्थान है। जब सूर्य की पहली किरणें चिकरेश्वर पर पड़ीं, तो सप्तऋषियों ने माता शारिका की स्तुति की। पंचांग बनाने के लिए इस दिन को आधार बनाया गया। ऐसे ही शुरुआत हुई संवत् सन् की।
कश्मीरी हिंदू चैत्र कृष्ण की पहली तिथि को भी धूमधाम से मनाते हैं। इसको ‘सोत’ कहते हैं। यह वसंत ऋतु के आगमन के रूप में मनाया जाता है। ‘सोत’ और ‘नवरेह’ को मनाने का तरीका एक ही जैसा है। दोनों पर्वों के पहले की रात्रि को पवित्र थाली सजाई जाती है। इस थाली में कच्चे चावल, नव वर्ष के लिए नया पंचांग, सोत के लिए पुराना पंचांग, अलग-अलग कप में दूध और दही, नमक, एक कलम, एक नोटबुक, कुछ फूल, पैसे, अखरोट, सूखे मेवे जैसे-बादाम, एक आईना, जड़ी-बूटी आदि वस्तुएं होती हैं। उसमें किसी देवी-देवता का एक चित्र भी रखा जाता है। थाली कांसे की होती है। थाली में रखी जाने वाली चीजों का अपना अर्थ है। कलम और नोटबुक विद्या को दर्शाती है। पैसा माता लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करता है, आईना आत्मज्ञान के लिए, भिन्न प्रकार के अनाज और फल अन्नपूर्णा को दर्शाते हैं और फूल प्रकृति को। इस तरह थाली में आने वाले नव वर्ष के लिए विद्या, लक्ष्मी, अन्न, आत्मज्ञान और अध्यात्म का आह्वान किया जाता है। इस थाली को एक साफ पवित्र कपड़े से ढका जाता है और कमरे में इस तरह रखा जाता है ताकि प्रात: सभी सदस्य सबसे पहले इसी का दर्शन कर सकें।
कश्मीरी हिंदू जहां भी रहते हैं वहीं अपने पर्व-त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं। विस्थापन और आतंकवाद के दंश को झेलकर भी वे नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का अथक प्रयास कर रहे हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि एक दिन आतंकवाद खत्म होगा और वे फिर से अपनी धरती पर बस पाएंगे। उम्मीद है कि यह नव वर्ष उनके इस संकल्प को और मजबूत करेगा।
टिप्पणियाँ