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भारत के सांस्कृतिक आधार स्तंभ

by
Jan 8, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jan 2018 11:11:10

3 दिसंबर, 2017
आवरण कथा ‘संस्कृति के सेतु’ भारत की उस विविधता से परिचित कराती है, जिसका आधार स्तंभ देश के  कोने-कोने में फैले सांस्कृतिक स्थल हैं। हरियाणा हरि की भूमि के साथ ही धर्म व कर्म की भी धरा है। शिक्षा, संस्कृति के साथ-साथ यहां देश प्रेम का जज्बा देखते ही बनता है। खेल और खिलाड़ी के मामले में यह राज्य किसी से पीछे नहीं बल्कि अव्वल ही है। अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े होने के
कारण हरियाणा आज हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर (म.प्र.)

विश्व में भारत की पहचान इसकी सदियों पुरानी संस्कृति से है। देश के सभी राज्यों में मौजूद सांस्कृतिक स्थल संस्कृति के सेतु हैं। इनके कारण ही पूरा देश एकता के सूत्र में बंधा
हुआ है। हमारे देश में नाना प्रकार
की भिन्नताएं हैं, फिर भी
हम सब एक हैं। यही भारत की विशेषता भी है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)

 पुरातन काल से भारत सांस्कृतिक तौर पर काफी समृद्ध रहा है। छोटे गांवों से लेकर बड़े नगरों तक, हर जगह कोई न कोई धार्मिक स्थल होता ही है और उसकी अपनी कहानी होती है। वृक्ष, नदी, तलाब, पत्थर, यहां तक कि पशु-पक्षियों के स्वरूप में भगवान का वास देखने वाला है हमारा समाज। यह सब अपने आप में अद्भुत है। लेकिन कालांतर में इस समृद्ध विरासत को और आस्था स्थलों को ध्वस्त किया गया। इस सबके बावजूद, आज भी देश के कोने-कोने में अनेक पौराणिक स्थल मौजूद हैं जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता का बखान करते हैं।
—अरुण मित्र, रामनगर (दिल्ली)

सच छिपाते मुल्ला
रपट ‘बे-ईमान! (26 नवंबर, 2017)’ उस सच को सामने रखती है जिसे मुल्ला-मौलवी छिपाते-फिरते हैं। बात-बात पर फतवे की तलवार भांजने वाले मौलवियों को कामपिपासु अरबी मुसलमानों का यह घृणित कार्य नहीं दिखाई देता। लेकिन जब भी कोई मुस्लिम योगाभ्यास, सूर्यनमस्कार या दूसरे मत-संप्रदाय की संस्कृति को अपनाकर समाज को एकसूत्र में बांधने की कोशिश करता है तो कठमुल्लों के
तुरंत फतवे आ जाते हैं और मुस्लिम
समाज को उद्वेलित करने लगते हैं। लेकिन इसे देखकर मुस्लिम समाज को
सोचना चाहिए कि इस प्रगति के दौर में फतवों और अनुचित आदेशों का क्या मतलब है।
—मनोहर मंजुल, प. निमाड़ (म.प्र.)

 ईश निंदा पर सिर कलम करने वाले मुल्ला-मौलवी अरब से आने वाले 70-80 साल के कामपिपासुओं पर चुप क्यों हैं? क्यों दारूल उलूम जैसी इस्लामी संस्थाओं में बैठे ठेकेदार अरब के इन यौन अपराध में लगे वृद्धों की हरकत को उजागर नहीं करते? असल में गौर से देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि मुस्लिमों की ये संस्थाएं सिर्फ अपने स्वार्थ साधने के लिए ही कोई फतवा देती हैं। गलत या सही काम से उन्हें कोई मतलब नहीं। सब बातों को छोड़ भी दिया जाए तो तीन तलाक पर जहां पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं वहीं ये यही संस्थाएं और कठमुल्ले कुतर्कों का सहारा लेकर इस कुप्रथा को जायज ठहरा रहे हैं। यही इनकी हकीकत है।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)

 छोटी-छोटी घटनाओं पर पुरस्कार लौटाने वाले सेकुलर कठमुल्लों के फतवों पर तो मौन रहते ही हैं, वे हर उस गलत काम पर मौन रहते हैं, जो देश व समाज हित में होता है। योग शिक्षिका पर फतवे की बात हो या
फिर तसलीमा नसरीन के खिलाफ भड़काऊ भाषण, इस गुट के मुंह से इन चीजों पर एक भी शब्द कभी नहीं निकलता।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए मार्केट (नई दिल्ली)

टूटती कमर
लेख ‘चीनी भस्मासुर का सही जवाब’ अच्छा लगा। आसियान सम्मेलन में भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया ने मिलकर चीन की दादागीरी का जवाब
दिया है। चीन की बढ़ती अराजक गतिविधियों से विश्व के कई देश परेशान हैं। पर किसी कारण से वे चुप्पी साधे
रहकर सब कुछ सह रहे हैं। पर अब धीरे-धीरे  चीन की अकड़ ढीली पड़
रही है।
—अशोक राज सिंह, देहरादून (उत्तराखंड)

शक्ति से होती भक्ति
आवरण कथा ‘शक्ति सबके हित की(8 अक्तूबर, 2017)’ अच्छी लगी। वास्तव में राष्ट्र या समाज जीवन में शक्ति की ही भक्ति होती है। पड़ोसी राष्ट्र भी भारत की विश्व में बढ़ती हुई साख व सैन्य शक्ति के बढ़ने से बौखलाए हुए हैं। ऐसे में वे समय-समय पर विश्व मंचों पर अनर्गल व झूठे आरोप भी लगाकर भारत की छवि को धूमिल करने का काम करते हैं। लेकिन इसमें वे ज्यादा सफल नहीं पाते। क्योंकि नरेंद्र मोदी की छवि विश्व में विकासोन्मुख एवं सबको साथ लेकर चलने की बन चुकी है। खैर, जो भी देश भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं, उनको सदबुद्धि आए और वे भी विकास के रास्ते कदम से कदम मिलाकर चलें।
—प्रेमशर्मा, रजवास, टोंक (राज.)

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