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पश्चिम बंगाल में हिंदू लड़कियों पर हो रहे अत्याचारों पर सरकार की खामोशी से युवा आक्रोशित। पर ममता सरकार अपनी तुष्टीकरण की नीति से बाज नहीं आ रही है। इस पर सेकुलर मीडिया की चुप्पी कम खतरनाक नहीं है
जिष्णु बसु
वर्तमान में बंगाल के तथाकथित बुद्धिजीवी और मीडिया ह्यआॅटो इम्यूनह्ण रोग से पीड़ित हैं। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, यह ऐसी बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम यानी शरीर का प्रतिरोधी तंत्र शरीर की कोशिकाओं पर ही हमले शुरू कर देता है और शरीर के अंगों को नुुकसान पहुंचाने लगता है। कई बार यह रोग व्यक्ति को इतना असंवेदनशील बना देता है कि वह न्यूनतम मानवीय संवेदनाओं को भी महसूस नहीं कर पाता। शायद यही वजह है कि राज्य के तथाकथित उदारवादी बुद्धिजीवी और मीडिया को हिंदू लड़कियों के साथ होने वाले अपराधों पर चुप रहते हैं। कॉलेज की एक छात्रा अणिमा सरकार के साथ महीनों तक सामूहिक बलात्कार और उसकी दुर्भाग्यपूर्ण मौत पर चुप्पी उनके इसी बीमारी से पीड़ित होने की ओर इशारा करती है।
सामूहिक बलात्कार के बाद मृत्यु
घटना बीरभूम जिले की है। जिले के बोलपुर में पेशे से रिक्शाचालक गोपाल सरकार की 22 वर्षीया बेटी अणिमा सरकार बोलपुर कॉलेज में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। गोपाल सरकार अनुसूचित जाति के हैं और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें एक घर आवंटित हुआ था। दरअसल, पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री आवास योजना की सभी निधियां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी की मशीनरी के जरिये मंजूर की जाती हैं। इस योजना का ठेका केवल तृणमूल के ठेकेदारों को ही मिलता है और भवन निर्माण का ठेका भी तृणमूल कैडर को ही दिया जाता है। इस योजना के तहत गोपाल सरकार को आवंटित आवास के निर्माण कार्य के लिए ठेकेदार ने बीते सितंबर माह में शेख हफीजुल नामक एक मजदूर को काम पर रखा था।
एक दिन गोपाल सरकार की बेटी अणिमा स्नान कर रही थी। उसी दौरान हफीजुल ने छिपकर उसका वीडियो बना लिया और फिर वीडियो को इंटरनेट पर अपलोड करने की धमकी देते हुए अणिमा को ब्लैकमेल करने लगा। इसके बाद उसने अणिमा का यौन शोषण करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा। बाद में हफीजुल ने इस घिनौने कृत्य में अपने दोस्तों को भी शामिल कर लिया। अणिमा को डरा-धमका कर सभी उसके साथ कई महीने तक बलात्कार करते रहे। लगातार उत्पीड़न से तंग आकर आखिरकार अणिमा ने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया। 9 दिसंबर, 2017 को उसने खुद को आग लगा ली। उसे गंभीर हालत में बर्दवान मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से 15 दिसंबर को उसे कोलकाता मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया गया।
मुकदमा वापसी का बनाया दबाव
इस बीच, अणिमा के बयान पर हफीजुल के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हुई तो आरोपी और तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय गुंडों ने शिकायत वापस लेने के लिए परिवार पर दबाव डालना शुरू कर दिया। कोलकाता मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेजे जाने के तीन दिन बाद 18 दिसंबर को अणिमा ने दम तोड़ दिया। इस घटना ने पश्चिम बंगाल के लोगों को बुरी तरह झकझोर दिया। खासतौर से युवा वर्ग इससे आक्रोशित है और अणिमा की मौत के पीछे तृणमूल समर्थित मजहबी तत्वों का हाथ मानता हैं।
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में ही लव जिहाद के नाम पर मोहम्मद अफराजुल की हत्या पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तुरंत ट्वीट किया था। उन्होंने राजस्थान की घटना को बहुत दुखद बताते हुए अफराजुल के परिवार को 3 लाख रुपये की आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी देने की भी घोषणा की थी। इतना ही नहीं, 9 दिसंबर की सुबह को जब उसका शव पहुंचा तो राज्य सरकार के मंत्री शुभेंदु अधिकारी, फिरहाद हकिम और सांसद सौगत रॉय, काकोली घोष दस्तीदार और सुदीप बनर्जी सईदपुर स्थित अफराजुल के घर भी गए। उसी दिन हत्या के विरोध में तृणमूल कांग्रेस और वामदलों ने मालदा और कोलकाता में रैलियां आयोजित कीं। मालदा में आयोजित रैली में मंत्री फिरहाद हाकिम ने आरोप लगाया, ह्यह्यभाजपा देश में असहिष्णुता की राजनीति कर रही है।ह्णह्ण वहीं, कोलकाता में आयोजित वाम दलों की रैली में सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा, ह्यह्यमोहम्मद अफराजुल की हत्या करने वाले और आईएसआईएस आतंकियों में कोई अंतर नहीं है।ह्णह्ण कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अधीर चौधरी और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्र्रदीप भट्टाचार्य ने भी अफराजुल की पत्नी और बेटियों से मुलाकात की थी।
इसी तरह, 10 अक्तूबर, 2016 को नदिया जिले के हंसखली में वंचित समुदाय की एक लड़की पर इमरान अली शेख ने एसिड से हमला किया था। वह भी केवल इसलिए कि इस 17 वर्षीया लड़की ने 50 वर्षीय इमरान के बेतुके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। नाबालिग छात्रा आठ दिन तक कोलकाता के एनआरएस अस्पताल में मौत से जूझती रही और आखिरकार 19 अक्तूबर को दम तोड़ दिया। लेकिन इस बारे में बांग्ला मीडिया में समाचार तक प्रकाशित नहीं हुआ।
सरकार ने नहीं ली परिवार की सुध
अणिमा सरकार के मामले में बंगाली प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का रवैया भेदभावपूर्ण ही रहा। हालांकि मोहम्मद अफराजुल की हत्या के मामले में ऐसा नहीं था। इस मुद्दे पर समाचारपत्रों और चैनलों ने लगातार कई दिनों तक खबर चलाई। इस मुद्दे पर टीवी चैनलों पर लंबी-चौड़ी बहस भी हुई। लेकिन वंचित समुदाय की अणिमा सरकार की मौत पर आनंद बाजार पत्रिका और बर्तमान जैसे प्रमुख बांग्ला समाचारपत्रों ने भी चुप्पी साध ली। एबीपी आनंद सहित अन्य प्रमुख चैनलों ने भी इस क्रूर घटना या इसके विरोध में की जा रही राज्यव्यापी रैलियों के बारे में कोई समाचार प्रसारित नहीं किया।
दरअसल, बांग्ला मीडिया खबरों को मजहबी खांचे में फिट करके परोसता है। अगर मुस्लिम समुदाय के साथ कुछ होता है तो मीडिया उस पर खूब हंगामा मचाता है, लेकिन हिंदुओं के साथ होने वाले अत्याचारों पर चुप बैठ जाता है।
राष्ट्रवादी संगठनों की विरोध रैलियां
अणिमा सरकार की मौत के विरोध में 1 9 दिसंबर को बोलपुर शहर में भारतीय जनता युवा मोर्चा ने एक बड़ी रैली का आयोजन किया।
ल्ल 20 दिसंबर, 2017 को जादवपुर विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी विरोध सभा का आयोजन किया।
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