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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिन्दुत्व को लेकर क्या विचार हैं और वे विकास और हिन्दुत्व के बीच कैसा साम्य देखते हैं, इस पर चर्चा होती रहती है। मुख्यमंत्री के तौर पर श्री मोदी ने पाञ्चजन्य से हिन्दुत्व और इसके विविध पक्षों पर जो विस्तृत चर्चा की वह पाञ्चजन्य के 21 मार्च, 2004 के अंक में प्रकाशित हुई थी
राजनीति में हिन्दुत्व के मुद्दे क्या हैं?
राजनीति के तराजू पर हिन्दुत्व को तोला नहीं जा सकता। हिन्दुत्व इस देश की महान सांस्कृतिक धारा है, राजनीति उसका एक छोटा-सा हिस्सा मात्र है। हिन्दुत्व इस देश की आत्मा है, जिसका वेदों से लेकर स्वामी विवेकानंद तक ने उद्घोष किया है। राजनीति इस देश की आत्मा न कभी थी, न कभी होगी। हिन्दुत्व चिरंजीवी है, मृत्युञ्जयी है, हमारी जीवन पद्धति है। इस जीवन पद्धति की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय तक ने की है।
किन्तु हिन्दुत्व को सांप्रदायिकता से क्यों जोड़ा जाता है?
हिन्दुत्व कभी सांप्रदायिक हो ही नहीं सकता। कुछ स्वार्थी लोग, जो शब्दों का व्यापार करते हैं, जान-बूझकर हिन्दुत्व के प्रति भ्रम पैदा करने की चेष्टा करते हैं। ये लोग भ्रम पैदा करने के लिए अनेक प्रकार के षड्यंंत्र रचते हैं। आज यदि हम किसी रास्ते पर चलें तो पाएंगे कि उस मार्ग का नाम, उस पर स्थापित प्रतिमा या भवन का नाम किसी राजनेता के नाम पर है। यह देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे राजनीतिक व्यक्तियों ने ही इस देश का निर्माण किया है। किंतु एक राजनीतिक व्यक्ति होने के बावजूद मैं गर्व से कहता हूं कि इस देश का निर्माण राजनीतिक व्यक्तियों के कारण नहीं, ऋषि-मुनियों, शंकराचार्यों, आचार्यों, विद्वानों, वैज्ञानिकों आदि के सामूहिक प्रयासों से हुआ है। निरंतर संघर्ष और वक्त के थपेड़ों को सहने के बावजूद यह हिन्दुत्व अडिग खड़ा है और विश्व कल्याण की कामना करता है। दुर्भाग्य से जो हिन्दुत्व वसुधैव कुटुम्बकम् का दर्शन प्रस्तुत करता है, उसी के कुछ दिग्भ्रमित कपूतों ने संपूर्ण विश्व में एक विषाक्त वातावरण बना दिया है। उन्होंने हिन्दुत्व, हिन्दू समाज तथा हिन्दू परंपराओं को इतने विकृत रूप में प्रस्तुत किया है जिससे यह आभास होता है कि मानव जाति के लिए सर्वाधिक संकट पैदा करने वालों की तुलना में भी हिन्दुत्व कहीं नीचे है।
संपूर्ण विश्व में प्रत्येक संप्रदाय यही कहता है कि उसका पंथ, उसका विचारदर्शन सर्वश्रेष्ठ है। सभ्यताओं के संघर्ष का मूल कारण यही सोच है। एकमात्र हिन्दू चिंतन ही यह कहता है कि समस्त संप्रदाय एक समान हैं। आज संपूर्ण विश्व में जो संघर्ष चल रहा है, उसको समाप्त करने का चिंतन ही इस समन्वयकारी हिन्दू विचारधारा में है। हिन्दू चिंतन केवल स्वयं के सुख की कामना नहीं करता, प्राणीमात्र को परमात्मा का अंश मानता है। इतने महान चिंतन को संकीर्ण और सांप्रदायिक कहना बुद्धि की विलासिता के सिवाय कुछ भी नहीं है। यदि हमें स्वयं ही अपने इस महान चिंतन पर गौरव नहीं होगा तो कोई दूसरा इसका सम्मान कैसे करेगा?
आप हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीति का पुरोधा किसे मानते हैं?
वर्तमान हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीति के पुरोधा महात्मा गांधी थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के समय रामराज्य का विचार प्रस्तुत कर राजनीति में शुचिता लाने का प्रयत्न किया। महात्मा गांधी ने धर्म और राजनीति का अद्भुत समन्वय किया था। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘जो लोग यह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं, वे लोग नहीं जानते कि धर्म क्या है।’’ भारतीय राजनीति का लक्ष्य सदैव धर्माधारित राज्य रहा है। धर्मराज्य का अर्थ किसी उपासना पद्धति पर आधारित राज्य नहीं होता, बल्कि विधि के नियमानुसार चलने वाला, कल्याणकारी, सामर्थ्यवान राज्य होता है। धर्मराज्य ही रामराज्य है, जो महात्मा गांधी का स्वप्न था।
स्वतंत्रता के बाद वे कौन-से आंदोलन हुए जिन्हें आप हिन्दुत्व को पुष्ट करने वाला मानते हैं?
सर्वप्रथम डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर को बचाने और राष्टÑ की एकता के लिए आंदोलन प्रारंभ किया था। गोहत्या के विरोध में भी देश के करोड़ों लोगों ने हस्ताक्षर किए। साधु-संतों ने गोहत्या बंदी के लिए अपना रक्त बहाया। 1975 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर इस देश के लोकतंत्र का गला घोट दिया था, तब जो आंदोलन हुआ, उसने इस देश को एक संगठित स्वरूप दिया। ’80 के दशक में एकात्मता यात्रा, रामशिला पूजन तथा राम ज्योति यात्राओं का इस देश को सांस्कृतिक रूप से एकजुट करने में बहुत बड़ा योगदान था। ऐसा ही एक आंदोलन है श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण। ये सभी आंदोलन ऐसे हैं जिन्होंने हमारी राष्टÑीयता और संस्कृति को मजबूती प्रदान की।
क्या कारण है कि इस हिन्दूबहुल राष्टÑ में हिन्दू प्रतीकों की उपेक्षा की जाती है?
वोट बैंक की राजनीति ने हिन्दू प्रतिमानों को अस्पृश्य बना दिया, उपेक्षित बना दिया। हमारे ही देश के कुछ दिग्भ्रमित लोगों ने इस विकृति को पोषित किया। ये लोग नहीं जानते कि हिन्दू प्रतिमानों, आदर्शों, परंपराओं और उसके प्रतीक प्रभु श्रीराम को आदर्श मानकर चलेंगे तो एड्स जैसी बीमारी उत्पन्न ही नहीं होगी, पर्यावरण संरक्षण की समस्या उत्पन्न नहीं होगी, जल का संकट पैदा नहीं होगा। हिन्दुत्व का चिंतन पूर्णतया वैज्ञानिक एवं युगानुकूल है। दुर्भाग्य से इस महान चिंतन को संकीर्ण कहना एक चलन-सा बन गया है।
क्या हिन्दुत्व में देश का आर्थिक विकास समाहित है?
राष्टÑ के वैभव का मार्ग हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व में विकास अंतर्निहित है। विकसित देशों में साख बढ़ाना भी हिन्दुत्व है। अपनी परंपराओं और संस्कृति के आधार पर यदि हम विकास करेंगे तो एक गौरवशाली भारत का निर्माण कर सकते हैं।
किशोर मकवाणा
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