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10 दिसंबर, 2017
आवरण कथा ‘विकास में विश्वास’ से जाहिर है कि गुजरात की जनता ने उन सभी दलों और नेताओं को खारिज कर दिया जो जात-पात के नाम पर वोट की फसल काटना चाहते थे। जनता ने भारतीय जनता पार्टी को जिताकर यह स्पष्ट संकेत दिया है कि वह राज्य और देश का विकास करने वालों के साथ है।
—अमित रस्तोगी, गंज मुरादाबाद(उ.प्र.)
लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत वोट है, जिसका चुनावी महायज्ञ में बड़ा महत्व होता है। हिमाचल और गुजरात के विधानसभा चुनावों में इन दोनों राज्यों की जनता ने इस यज्ञ में वोट रूपी आहुति दी और बता दिया कि वह किसे पसंद करती है और किसे नहीं। इस बार सबसे मजेदार बात रही राहुल गांधी का मंदिर-मंदिर जाना। आज से पहले वे इक्का-दुक्का ही मंदिरों में जाते दिखे थे। लेकिन इस बार के चुनाव में तो उन्होंने मंदिरों में जाने की हद ही
कर दी।
—हरिहर सिंह चौहान, इंदौर(म.प्र.)
दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों से यह सिद्ध हो गया है कि देश से कांग्रेस का सफाया हो रहा है। एक के बाद एक हारते राज्य न केवल नेतृत्व पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं बल्कि कांग्रेस की समाज और देश तोड़ने की नीतियों को उद्घाटित करते हैं। वहीं आरक्षण के नाम पर देश
को बांटने वाले लोग बुरी तरह हार गए। जनता का यह जवाब
कम है क्या?
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
देश में चुनावों के समय मुस्लिमों को रिझाने वाले दल इस बार अपना चोला बदले हुए नजर आए। जिन नेताओं की रैली और जनसभा मुस्लिम टोपी लगाए बिना नहीं होती थी, वे इस बार माथे पर चंदन लगाकर अपने को हिन्दू घोषित करने को उतावले दिखे, जबकि यही लोग अयोध्या में राम मंदिर को नकारते रहे हैं। लेकिन अपनी गिरती साख और खत्म होते वजूद को बचाने के लिए अब वे कोई भी नाटक करने के लिए तैयार हैं।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए मार्केट(नई दिल्ली)
कब आएगी सद्बुद्धि!
‘फतवों की बिसात और मौलाना (31 दिसंबर,2017)’ लेख से स्पष्ट है कि मुल्ला-मौलवियों द्वारा आए दिन दिए जाने वाले फतवों को मुस्लिम समाज के लोग अब खारिज करने लगे हैं। जब पूरा विश्व योग से फायदा ले रहा है तब उनके ऊल-जुलूल फतवे न केवल समाज में विद्वेष पैदा कर रहे हैं, बल्कि मुस्लिमों को अच्छाइयों से दूर रखने का काम कर रहे हैं। पता नहीं कब तक ये कट्टरवादी मौलाना मुस्लिम समाज को अंधेरे में रखेंगे? मुस्लिमों को ऐसे सभी फतवों को नजरअंदाज करते हुए देश और समाज की तरक्की में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए।
—प्रमोद वालसंगकर, दिलसुखनगर, हैदराबाद(आं.प्र.)
अस्मिता का विषय
रपट ‘6 दिसंबर, 25 साल!’ (31 दिसंबर,2017) अयोध्यावासियों की भावनाओं को सामने रखती है। पिछले 25 साल से देश के लोग रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण की आस लगाये हुए हैं। दो दशक से ज्यादा समय में इस आन्दोलन में पता नहीं कितने लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। अब समय आ गया है जब सभी बाधाओं को पार करके अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू हो।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
शक्ति से होती भक्ति
आवरण कथा ‘शक्ति सबके हित की (8 अक्तूबर, 2017)’ अच्छी लगी। वास्तव में राष्ट्र या सामाजिक जीवन में शक्ति की ही भक्ति होती है। पड़ोसी राष्ट्र भी भारत की विश्व में बढ़ती हुई साख व सैन्य शक्ति के बढ़ने से बौखलाए हुए हैं। ऐसे में वे समय-समय पर विश्व मंच पर अनर्गल व झूठे आरोप लगाकर भारत की छवि को धूमिल करने का काम करते हैं। लेकिन इसमें ज्यादा सफल नहीं हो पाते। क्योंकि नरेंद्र मोदी की छवि विश्व में विकासोन्मुख एवं सबको साथ लेकर चलने की बन चुकी है। बेहतर होगा कि जो भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं, उन्हें सदबुद्धि आए और वे भी विकास के रास्ते पर कदम से कदम
मिलाकर चलें।
—प्रेम शर्मा, रजवास, टोंक (राज.)
कुनबे में पड़ती दरार
‘आपा’ के भीतर मची, भारी खींचमतान
सबके अपने राग हैं, सबकी अपनी तान।
सबकी अपनी तान, वहां पर कई धड़े हैं
ताल ठोककर खुलेआम विश्वास खड़े हैं।
कह ‘प्रशांत’ जो चाहे राज्यसभा में जाए
मगर बिखरने के दिन कुनबे के हैं आए॥
— प्रशांत
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