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दृढ़ आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति की बदौलत पूनम न केवल असाध्य बीमारी को मात दे रही हैं, बल्कि नौनिहालों के जीवन में शिक्षा के जरिए उजाला लाने की कोशिश में लगी हैं
‘‘अगर कोई मुझसे यह कहता कि तुम इस काम को नहीं कर सकती , तो मैं उस काम को पूरा करके ही दम लेती हूं।’’ — पूनम श्रोती
अश्वनी मिश्र
महज 2 फुट 8 इंच की पूनम श्रोती अपनी नाजुक हड्डियों और असाध्य बीमारी को मात देते हुए हजारों बच्चों के जीवन में शिक्षा का दीप जलाकर उजाला लाने की कोशिश में जुटी हैं। 31 साल की पूनम चल नहीं सकतीं लेकिन उनका पहाड़ जैसा हौसला देखकर कोई भी हतप्रभ हो जाता है। वे इतने दृढ़ स्वभाव की हैं कि अगर किसी ने कह दिया कि यह काम तुम नहीं कर सकतीं, तो फिर उस काम को करने की जिद ठान लेती हैं।
मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली पूनम दरअसल जन्म से आॅस्टियोजेनेसिस इंपरफेक्टा नाम की लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं। इसे ब्रिटल बोन डिसीज भी कहते हैं, जिसमें हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि जरा से आघात से उनके टूटने का डर रहता है। इसी के कारण 15 साल की उम्र तक उनकी हड्डियां हल्की चूक से टूटती रहीं। हालांकि यह बीमारी लाखों में से एक या दो व्यक्तियों को ही होती है, जिसमें बहुत कम लोग ही बच पाते हैं। और जो बचते हैं वे घर तक सीमित रह जाते हैं। लेकिन पूनम ने उस भ्रान्ति को तोड़ा है।
मुश्किलों से बेपरवाह पूनम अपनी बीमारी के बारे में बताती हैं,‘‘मेरी जितनी उम्र है उससे कई गुना मुझे फ्रैक्चर हो चुके हैं। इसके कारण कितने आॅपरेशन हुए शायद मुझे याद भी नहीं। लेकिन मैंने कभी इससे हार नहीं मानी। इसका कारण मेरे पापा हैं। क्योंकि जब लोग मुझे देखते थे तो मैं उनसे कहती थी कि लोग मुझे देख रहे हैं। उनका जबाव होता था, दुनिया में लोग उन्हें ही देखते-सुनते हैं, जो औरों से अलग होते हैं और तुम अलग हो।’’
बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल पूनम सामान्य बच्चों के साथ ही रही हैं। उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई के बाद भोपाल के नूतन कॉलेज से बीकॉम एवं वित्त में एमबीए भी किया है। वे कहती हैं, ‘‘पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मैं नौकरी ढूंढ रही थी तो जहां भी साक्षात्कार के लिए जाती तो मेरे साथ एक अलग तरह का बर्ताव किया जाता था। और ऐसा जाहिर कराने की कोशिश की जाती कि मैं वे सब काम नहीं कर सकती जो सामान्य लोग कर रहे हैं। जबकि मेरी योग्यता शायद किसी से कम नहीं थी। मैं समझ भी जाती कि मेरी शारीरिक कमजोरी के कारण मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है। लेकिन लगातार प्रयास और अनगिनत उपेक्षाओं के बाद आखिरकार प्रीमियम वर्क फोर्स नामक कंपनी के मानव संसाधन विभाग में काम करने का मौका मिला।
मैंने साक्षात्कार लेने वालों से कहा था कि आप मेरे शरीर को मत देखें। अगर आपके यहां योग्यता का कोई पैमाना है तो मैं उसे पूरा कर दिखाऊंगी। और मैं इसमें सफल रही। इस नौकरी को मैंने एक चुनौती के रूप में लिया और इस दौरान साबित किया कि मैं किसी से कम नहीं हूं। जो सब कर सकते हैं, वह मैं भी कर सकती हूं। कार्यालय की 9 घंटे से ज्यादा समय की ‘शिफ्ट’ बैठ कर पूरी करना मेरी लिए एक बड़ी समस्या थी लेकिन मैंने ठान रखा था, मैं पीछे हटने वाली नहीं हूं। खुद को साबित करने के लिए मैं दफ्तर सबसे पहले पहुंचती थी और सबके जाने के बाद ही घर लौटती थी। इसी के चलते मैं डिप्टी मैनेजर तक के पद तक पहुंची। लेकिन मैं अपने काम से संतुष्ट नहीं थी। लिहाजा कुछ अलग करना चाहती थी। बस इसी चाहत में पांच साल काम करने के बाद 2013 में मैंने त्याग पत्र दे दिया।’’
सेना से सेवानिवृत्त पूनम के पिता राजेन्द्र प्रसाद श्रोती अपनी बेटी के बारे में बताते हैं,‘‘पूनम ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है। मेरी जब उससे मेरी बात होती तो वह कहती थी कि मैं घर से सक्षम हूं तो इस स्तर पर आ सकी हूं लेकिन जो बच्चे मेरे जैसे हैं और पारिवारिक रूप से समृद्ध नहीं हैं, उनके जीवन का क्या होगा? क्योंकि मैंने जो समस्या झेली, कोई और दिव्यांग न सहे! इसलिए समाज के लिए कुछ करना है।’’
घर में सबसे छोटी पूनम की सामाजिक यात्रा साल 2013 से शुरू हुई जब उन्होंने उद्दीप सोशल वेलफेयर सोसाइयटी की स्थापना की। इस सोसायटी के जरिए वे हजारों बच्चों को गांव-गांव जाकर पढ़ा रही हैं। साथ ही उन्होंने मध्य प्रदेश के हजारों लोगों को विशेष प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया है।
वे सोसायटी के जरिए ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को हस्तशिल्प पेपर बैग, सिलाई-कढ़ाई आदि का भी प्रशिक्षण दे रही हैं। वे बताती हैं,‘‘हम सोसाइटी के सदस्यों के साथ गांव-गांव जाकर प्राथमिक व जूनियर स्तर के बच्चों को न केवल पढ़ाते हैं बल्कि आधुनिक शिक्षा से भी रू-ब-रू कराते हैं। इसके लिए उन्हें हम कंप्यूटर का प्राथमिक ज्ञान देने का काम करते हैं। अगर किसी के पास पुस्तक, पेंसिल, किताब या अन्य पढ़ाई से जुड़ी सामग्री नहीं होती है तो मैं उन्हें ये सभी चीजें उपलब्ध कराती हूं। इसके लिए फेसबुक का सहारा लेते हुए एक संदेश पोस्ट करती हूं जिसमें लोगों से इन बच्चों की मदद करने की अपील करती हूं। और मेरे निवेदन पर लोग मदद भी करते हैं।’’
पूनम की टीम में ज्यादातर उनके दोस्त ही हैं जो संस्था के लिए काम करते हैं। अब तक वे भोपाल और अपने पैतृक जिले टीकमगढ़ के 6 हजार से ज्यादा बच्चों को न केवल जागरूक करने का काम कर चुकी हैं बल्कि समय-समय पर गांव जाकर उन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। इसी कारण भोपाल और आस-पास के क्षेत्र में शायद ही ऐसा कोई हो जो पूनम को न जानता हो। उनके काम को देखते हुए 2015 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश से अलग-अलग क्षेत्रों में विशेष कार्य करने के लिए 100 महिलाओं को चुना था जिसमें पूनम भी एक थीं। उन्हें तत्कालीन राष्टÑपति प्रणव मुखर्जी ने पुरस्कार प्रदान किया था।
हकीकत में पूनम ने असाध्य बीमारी को मात देते हुए जिस अदम्य साहस का परिचय दिया है वह बेमिसाल तो है ही, साथ ही, उससे ज्यादा यह उन शारीरिक कमजोर लोगों के लिए
प्रेरणा है जो अपनी अक्षमता के आगे घुटने टेक देते हैं।
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