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गुलाबी नगरी जयपुर में जिस तरह उन्मादी तत्वों ने उपद्रव मचाया, वह चिंताजनक है। संदेह नहीं कि शांत जयपुर पर मजहबी उन्मादियों की हिंसक नजर पड़ चुकी है
आठ सितम्बर, शुक्रवार, जयपुर के लिए किसी सामान्य दिन की ही भांति था, किंतु अपनी सुन्दरता एवं शांति के लिए विश्वभर में प्रशंसा पाने वाला यह नगर नहीं जानता था कि वह एक अत्यंत निंदनीय घटना का शिकार बनने जा रहा है।
दोपहर में जुम्मे की नमाज के बाद जयपुर परकोटे की मस्जिदों से हजारों लोगों का हुजूम रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में सड़कों पर उतर आया। प्रशासन की पूर्व अनुमति के बिना यह हुजूम उग्र नारेबाजी करता हुआ सांगानेरी गेट और घाट गेट की तरफ बढ़ा जिसे पुलिस प्रशासन द्वारा रोककर भीड़ को तितर-बितर किया गया। इसके कुछ ही घंटों बाद शाम को इसी इलाके के रामगंज थाने के बाहर यातायात को व्यवस्थित करते पुलिसकर्मी का डंडा मोटरसाइकिल पर बाजार से गुजर रहे मुस्लिम दंपति को लग जाने की बात पर हजारों कट्टरवादी तत्वों की भीड़ इकट्ठी हो गई। भीड़ ने पुलिस थाने को घेरकर उसे जलाने का प्रयास किया, जब उसमें सफल नहीं हुए तो विद्युत ट्रांसफार्मर, एक एंबुलेंस और अन्य 21 वाहनों को फूंक दिया गया।
पुलिस थाने के भीतर फंसे पुलिसकर्मियों की सहायतार्थ आने वाले पुलिस वाहनों को रास्ते में घेरकर तोड़फोड़ की गई और उन पर हमला कर कई पुलिसकर्मियों को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया।
क्या यह घटनाक्रम अनायास था या सुनियोजित रूप से एक बड़े षड्यंत्र के तहत मुंबई के आजाद मैदान सदृश बड़ी हिंसा को अंजाम देने की तैयारी थी? क्या रोहिंग्या मुसलमानों के नाम पर मुस्लिम युवाओं को आक्रोशित कर छोटी-सी घटना के बहाने बड़ा उपद्रव खड़ा करने के पीछे कोई संकेत है? क्या इस संदेश के जरिए भारतीय लोकतंत्र, प्रशासन तथा सामान्य जनता के सामने यह जताया जा रहा है कि मुट्ठीभर लोग, जब चाहें तब पूरे तंत्र को आग के हवाले कर सकते हैं? क्या यह आम भारतीय जनमानस में डर
पैदा करने के लिए जान-बूझकर नहीं किया जा रहा है?
दुर्भाग्य से, इन सभी प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ है।
जयपुर उपद्रव के पश्चात् पुलिस द्वारा ड्रोन से पड़ताल कराने पर यह तथ्य सामने आया कि संवेदनशील इलाकों में मकानों की छतों पर पत्थर, एसिड की बोतलें, धारदार कांच, र्इंट के टुकड़े इत्यादि जमा किए गए थे। इसके पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है, इसे समझना बहुत सरल है।
माहौल खराब करने की कोशिश
रोहिंग्या घुसपैठियों की आड़ में पूरे देश में इसी तरह का हिंसक माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। गत दिनों सहारनपुर में रोहिंग्या समर्थक रैली के दौरान पांच-छह घंटे तक शहर बंधक रहा। 15 सितंबर को बरेली के मुस्लिम व्यापारी रोहिंग्याओं के पक्ष में बंद का आह्वान कर चुके हैं। इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन अचानक उग्र रूप लेकर सामान्य नागरिकों के जीवन और संपदा को संकट में डाल देते हैं। अत: सभी राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार को इस विषय में तत्काल सतर्क हो जाना चाहिए।
विगत कुछ वर्षों से राजस्थान और उसकी राजधानी जयपुर, कट्टर उपद्रवी तत्वों का गढ़ बनते जा रहे हैं। एक समय ऐसा था जब राजस्थान में कट्टरता का कोई चिह्न नहीं था। मरुस्थल में भी जीवन को प्रश्रय देने वाली यहां की उदात्त संस्कृति का सभी पालन करते थे, किंतु आज ऐसा नहीं है।
पिछले दो वर्ष में राजस्थान के कई इलाकों में इस तरह का तनाव हुआ है। आश्चर्य नहीं कि रातभर जगमगाती दीपावली का उत्सव मनाने वाले जयपुर में पिछले दो वर्ष से भय और असुरक्षा की भावना के चलते जल्दी अंधेरा हो जाता है। बांग्लादेशी घुसपैठियों की आवाजाही, अवैध हथियारों की तस्करी, देवबंदियों का बढ़ता प्रभाव तथा अन्य राष्टÑद्रोही गतिविधियां तेजी से बढ़ती दिख रही हैं।
प्रशासन की चिंताजनक अनदेखी के चलते स्थानीय मुस्लिम युवाओं के भीतर असंतोष के बीज बोने का काम धड़ल्ले से चलाया जाता रहा जिससे उनका रूपांतरण भविष्य में कश्मीर की भांति सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वाली भीड़ के रूप में किया जा सके और उनमें से ही जिहाद के नाम पर आतंकवादी भर्ती किए
जा सकें।
मजहबी कट्टरवादियों द्वारा भड़काए गए इस दंगे के विरुद्ध राज्य की शांतिप्रिय जनता में अत्यंत नाराजगी है। राजस्थान का इस तरह जिहादी तत्वों का ठिकाना बनता जाना चिंताजनक है।
राज्य सरकार को फौरन इस पर लगाम कसनी होगी। दंगे में निर्धन दिव्यांग युवक भरत कोडवानी की मृत्यु हो गई थी, जिसकी खबर तीन दिन बाद ही परिजनों को मिल पाई। कई सामाजिक और राष्टÑवादी संगठनों द्वारा मृतक भरत के लिए न्याय हेतु आवाज उठाई गई जिसके बाद प्रशासन की ओर से मदद का आश्वासन मिला।
इस बीच कुछ समाचार पत्रों में उपद्रवियों के सामने डटकर जयपुर की रक्षा करने वाले पुलिसकर्मियों पर धारा 302 के तहत हत्या के अपराध का मुकदमा चलाने का समाचार छपा। इस भ्रामक समाचार का खंडन तुरंत होना चाहिए था, पर नहीं हुआ।
घटना में तीन पत्रकारों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया गया। इस प्रकार की घटनाओं पर प्रशासन के ढुलमुल रवैये से सामान्य जनता का मनोबल घटता है। इस हिंसा की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सरकार और प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे। उपद्रवियों के लिए विधि और न्याय का दंड होना चाहिए। सरकार से अपेक्षा है कि वह तात्कालिक तथा दूरगामी, दोनों ही प्रकार के षड्यंत्रों को असफल करने के लिए दृढ़ संकल्प धारण करे तथा उपद्रवी तत्वों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई कर जनता को स्थायी सुरक्षा प्रदान करे।
विश्व संवाद केन्द्र, जयपुर
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