घाटी में जारी जिहाद
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घाटी में जारी जिहाद

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Jun 5, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jun 2017 12:08:51

30 अप्रैल, 2017
रपट ‘जिहाद के सौदागर’ से यह बात साफ है कि कश्मीर में जो अराजक गतिविधियां चल रही हैं, वे पाकिस्तान प्रेरित हैं। आए दिन इसके खुलासे हो रहे हैं। यहां तक कि घाटी के अलगाववादियों के नाम भी इसमें खुलेआम सामने आ चुके हैं। जिन लोगों को कश्मीर के इतिहास की जानकारी है, वे अच्छी तरह से जानते हैं कि कश्मीर में जिहादी और अराजकवादियों ने भारतीय परंपरा और संस्कृति को खंड-खंड किया और आज भी कर रहे हैं। आज कश्मीर में गैर मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है। इस सबके कारण घाटी के हालात दिन-प्रतिदिन बद्तर होते जा रहे हैं।
—कुमुद कुमार, बिजनौर (उ.प्र.)

 कश्मीर के कट्टरपंथी मुसलमान यही चाहते हैं कि घाटी में हिन्दू संस्कृति का कोई भी अंश शेष न बचे। वे इसी को आजादी कहते हैं। नहीं तो, कोई बताए कश्मीर में कौन सी आजादी नहीं है? उनको कौन-से विकास और अनुसंधान करने से रोका जा रहा है? उनकी मजहबी आजादी में कौन-सी अड़चन है? किसने उनके बोलने की आजादी छीन रखी है? अगर वे चाहते हैं कि वहां सेना को पत्थर मारने की आजादी मिले, मजहबी उन्माद फैलाएं, कश्मीर घाटी में शरिया का कानून स्थापित करें तो उनका यह मंतव्य किसी भी सूरत में पूरा नहीं होगा।
—आजाद महाजन, अहमदनगर (महा.)

 पाकिस्तान से आए दिन होते  हमलों में हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं। लेकिन इस सबके बाद भी दोगुने उत्साह से दुश्मन का मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं। पर इस समस्या का अब समाधान करना होगा, क्योंकि यह अब विकराल रूप लेती जा रही है। इन्हीं कारणों से घाटी में देशद्रोहियों को शह मिलती है।
—राजेन्द्र कांठेड़, नागदा जंक्शन (म.प्र.)

 देश को आजाद हुए 70 वर्ष हो गए लेकिन इसके बाद भी हिंदू अपने ही देश में बेगाने हैं। जितने भी राजनीतिक दल सत्ता में आए भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी ने हिन्दुओं की उपेक्षा की, उन्हें हमेशा अपमानित करने का कुचक्र रचा। उनकी तुष्टीकरण की नीति ने मुसलमानों के हौसले इतने बुलंद कर दिये कि वे अब गैर मुस्लिमों का रहना मुश्किल कर रहे हैं। कश्मीर इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है और  वहां स्थिति अब किसी से छिपी नहीं है। असम, पश्चिम बंगाल भी इसी लाइन पर चल रहे हैं। इसलिए समाज को चाहिए कि वह जागरूक हो और संगठित होकर ऐसे हमलों का प्रतिकार करे।
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उ.प्र.)

कब उबरेंगे जिम्मी मानसिकता से?
लेख ‘बिना बात की हिचक’ (30 अप्रैल, 2017) भारतीय लोकतंत्र के प्रारंभिक नेताओं, भारतीय न्याय व्यवस्था के ढुलमुल रवैयों, और ‘जिम्मी’ मानसिकता से ग्रस्त भारतीय मुस्लिमों पर गंभीर सवाल उठाती है। साथ ही ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की दिशा निर्धारित करती है। वास्तव में भारतीय न्याय व्यवस्था व चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया भी इस जिम्मी मानसिकता से ग्रस्त है। इसलिए अयोध्या को श्रीरामजन्मभूमि साबित करने के लिए न्यायालय को और सुबूत चाहिए? पर इस बावत जो साक्ष्य वहां से प्राप्त हुए हैं, वह क्या कम हैं? या यूं कहें वह इस निर्णय को देने में अक्षमता महसूस कर रहा है। भारतीय जनमानस को न्यायपालिका की साख और उस पर पूर्ण विश्वास है। यह विश्वास बना रहे इसलिए उसे सत्य का साथ देना होगा।
—दिनेश सेपली, पाली (राज.)

 कुछ लोग अक्सर समाज का उदाहरण देते  हुए गुलदस्ते का जिक्र करते हैं और कहते हैं कि गुलदस्ते में जब सभी तरह के फूल होते हैं तभी वह अच्छा लगता है। इसी प्रकार समाज में हर जाति, मजहब के लोगों के रहने से ही एक अच्छे समाज का निर्माण होता है। लेकिन जो लोग यह बात कहते हैं, वे यह क्यों नहीं बताते कि कश्मीर में इस तर्क को लकवा क्यों मार जाता है? अयोध्या में राममंदिर निर्माण की बात होते ही सेकुलरों द्वारा कोहराम जैसा माहौल क्यों बनाया जाता है? घाटी में हर दिन आतंकियों द्वारा सेना पर हमले होते हैं और भारत को खंड-खंड करने की हुंकार उठती है तब ऐसे लोग इनके खिलाफ एक टेर क्यों नहीं लगाते? या फिर यह सब ढोंग और पाखंड है?
—बी.एल.सचदेवा, मेल से

 सामने आती सचाई
आम आदमी पार्टी का जिस तरह से उफान आया उसी तरह से अब उसका पतन भी निकट ही है। पार्टी आए दिन भ्रष्टाचार के लगते आरोप से अंतिम सांसें ले रही है। रपट ‘आप के अरविंद की असलियत’ (23 अप्रैल, 2017) इसी हकीकत को सामने रखती है। कपिल मिश्रा के आरोपों ने अरविंद केजरीवाल की न केवल सचाई को जनता को बताया है बल्कि पार्टी ने आम जनता की गाढ़ी कमाई को कैसे पानी के भाव बहाया, वह पार्टी के मुखिया के जनविरोधी होने का पर्याप्त साक्ष्य है। भारतीय राजनीति की यह विशेषता है, यहां सुधार का नाम लेकर दंगल में उतरे पहलवान ‘चरित्र’ की कमजोर बुनियाद के कारण गिर जाते हैं, केजरीवाल इसका अपवाद नहीं हैं।
—नरेन्द्र तोमर, मेल

गलती करके भी इतराते
शोर मचाते थे बहुत, मगर न पाया ठौर
वोटे मशीनी युद्घ में, भागे रण को छोड़।
भागे रण को छोड़, केजरी मैडम माया
कांग्रेस लालू अखिलेश ढूंढते छाया।
कह ‘प्रशांत’ जो गलती करके भी इतराते
ज्ञानी उनको पढ़ा लिखा मूरख बतलाते॥
— ‘प्रशांत’

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