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दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत ने आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री के राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े कर दिये हैं। साथ ही, कांग्रेस की एक और हार ने यह भी साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा का कोई विकल्प नहीं
मनोज वर्मा
ऐसी हार की कल्पना किसी राज्य का मुख्यमंत्री नहीं कर सकता, जैसी दिल्ली नगर निगम चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी की हुई है। खुद अरविंद केजरीवाल को भी इस हार की उम्मीद नहीं थी। केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के कई नेताओं ने चुनाव परिणाम आने के पहले से ही ईवीएम पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। 26 अप्रैल को जब एमसीडी चुनाव के नतीजे आए एवं आ.आ.पा. को मात्र 48 सीटें मिलीं तो केजरीवाल की राजनीति और उनकी कार्यशैली पर उनके अपनों ने ही सबसे अधिक सवाल उठाए। आ.आ.पा. सांसद भगवंत मान भी नेतृत्व को आईना दिखाने से नहीं चूके। उन्होंने चुनाव परिणाम आने से पहले एक साक्षात्कार में कहा, ''पंजाब चुनाव से पहले लिए गए कुछ फैसलों के कारण पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा। ईवीएम की खामी निकालने से कोई फायदा नहीं होने वाला। पार्टी को आत्मविश्लेषण करना चाहिए ताकि हार के कारणों का पता चल सके।'' भगवंत मान ने पंजाब विधानसभा चुनाव में रैलियां की थीं, लेकिन दिल्ली में चुनाव के प्रचार में शामिल नहीं हुए। उन्होंने राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भी पार्टी की किसी बैठक या सभा में हिस्सा नहीं लिया था।
असल में केजरीवाल और उनकी पार्टी की हार के कारणों को उनके पुराने साथी और स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने समझा। उन्होंने कहा कि दिल्ली ने स्पष्ट रूप से भाजपा के रूप में अपनी प्राथमिकता बता दी है। ये नतीजे अरविंद केजरीवाल सरकार के प्रति जनता का गुस्सा दिखा रहे हैं। एमसीडी चुनाव में लोगों ने मुख्यमंत्री को खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि योगेंद्र यादव दो साल पहले आ़आ़पा में ही थे। लेकिन अरविंद केजरीवाल पर सवाल उठाने के बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पार्टी से अलग हो गए तथा अलग पार्टी बना ली। आ़आ़पा़ और केजरीवाल की राजनीति को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि दो साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आ़आ़पा. को 70 में 67 विधानसभा सीटों पर जिताने वाली दिल्ली ने एमसीडी में इतनी करारी हार क्यों दी? क्या कारण रहे कि दिल्ली की जनता का केजरीवाल की पार्टी से इतनी जल्दी मोहभंग हो गया? क्या अहंकार, अपरिपक्वता और असंवेदनशीलता पार्टी को ले डूबी?
गोवा और पंजाब के बाद दिल्ली में भी पार्टी की नकारात्मक राजनीति और अमर्यादित टिप्पणियों को जनता ने खारिज कर यह संकेत दे दिया कि स्थानीय निकाय से लेकर संसद तक, जनता के सामने नरेंद्र मोदी और भाजपा का कोई विकल्प नहीं है। ओडिशा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश के बाद अब दिल्ली भी देश के साथ चल पड़ी है। विधानसभा चुनाव में सिर्फ तीन सीट जीतकर हाशिये पर रहने वाली भाजपा ने राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद एमसीडी में प्रचंड बहुमत हासिल किया है। दस साल नगर निगम में काबिज रहने वाली भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर तोड़ते हुए हैट्रिक लगाई है। वहीं, हार के साथ आ़आ़पा़ और कांग्रेस में इस्तीफा, खींचतान और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तेज हो गई है।
एमसीडी चुनाव से एक बार फिर साबित हुआ कि राजनीति बदल रही है। मतदाता क्षेत्रीय दलों की बजाय राष्ट्रीय दलों पर अधिक भरोसा कर रहा है। कुछ राज्यों में कांग्रेस की स्थिति थोड़ी सुधरती दिखी, मगर अभी वह इस हालत में नहीं है कि मजबूत विकल्प बन सके। दिल्ली में कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन वह तीसरे नंबर की पार्टी बनी हुई है। वहीं, चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के कामकाज के तरीके से न सिर्फ भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है, बल्कि मतदाता के मन पर भी उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लोगों को विश्वास होने लगा है कि भाजपा राजनीति को एक नया स्वरूप देने के साथ-साथ कामकाज की संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। साथ ही, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति ने भी पार्टी के लिए सफलता की राह तैयार की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत ने ही नगर निगम में जीत को संभव बनाया। दरअसल, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सांसद मनोज तिवारी को दिल्ली भाजपा अध्यक्ष बनाकर जहां पूर्वांचल के वोटों को साधा, वहीं पुराने पार्षदों के टिकट काटकर नए चेहरों पर दांव लगाया, जो सफल रहा। इस बार लोगों ने मुख्यमंत्री केजरीवाल की मुफ्त की राजनीति को खारिज कर दिया। केजरीवाल ने हाउस टैक्स माफ करने का वादा किया था, पर जनता ने भरोसा नहीं किया। इस हार से आ़आ़पा़ नेता इसलिए भी हैरान-परेशान हैं, क्योंकि भाजपा की ऐतिहासिक जीत के आंकड़ों को यदि विधानसभा के नतीजों में बदल दिया जाए और अभी विधानसभा चुनाव हों तो केजरीवाल की पार्टी बिल्कुल साफ हो जाएगी। यानी अभी विधानसभा चुनाव हों तो भाजपा को 43, आ़आ़पा. को 12, कांग्रेस को 10 और अन्य को पांच सीटें मिलेंगी।
इस चुनाव के पांच खास संदेश हैं। पहला यह कि देश में नरेंद्र मोदी और भाजपा का कोई विकल्प नहीं है। दूसरा मुफ्त, लालच व लुभावने वादों की राजनीति से जनता को छला नहीं जा सकता। तीसरा संदेश है कि काम स्थायी है, कुर्सी नहीं। भाजपा द्वारा सारे चेहरे बदलने के पीछे कुछ ऐसा ही संदेश था। चौथा, गुट नहीं, कद बढ़ाइए। नए दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष, पार्षदों के भी नए चेहरे इसी बात की तस्दीक करते हैं कि छोटी-छोटी प्रभावशील गुटबाजियां इस चुनाव में कट गईं। पार्टी ने साफ कर दिया कि काम व स्थानीय पहचान के आधार पर भाजपा में मौका पाने की गुंजाइश है। पांचवां और महत्वपूर्ण संदेश यह कि अड़ने नहीं, बल्कि बढ़ने की राजनीति जनता को रास आ रही है। नकारात्मक राजनीति के कारण ही केजरीवाल को जनता ने नकारा है। केजरीवाल और उनकी पार्टी दिल्ली से ही राजनीति के शिखर पर पहुंची और उसी दिल्ली की जनता ने उन्हें धरातल पर लाकर पटक दिया। लिहाजा हार के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल को कहना पड़ा कि दिल्ली में हम भाजपा के साथ मिलकर नगर निगम को बेहतर बनाने के लिए काम करेंगे।
आ़आ़पा़ ने पहले त्याग की बात कही थी, लेकिन बाद में बंगला, तनख्वाह और गाड़ी सब लेने लगे। ईवीएम ने नहीं, बल्कि कथनी-करनी के फर्क ने हराया है। केजरीवाल सत्ता के पीछे भाग रहे हैं। दिल्ली की जनता ने उन्हें मौका दिया था।
—अण्णा हजारे, सामाजिक कार्यकत
जो लोग मशीनों पर आरोप लगा रहे हैं, वे जनता का अपमान कर रहे हैं। जनता के विवेक पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं होगा।
—पीयूष गोयल, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री
दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणामों ने भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के विजय रथ को और आगे बढ़ाया है। दिल्ली ने बहानों और आरोपों की राजनीति को नकार कर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली विकासशील राजनीति में विश्वास जताया है। यह नकारात्मक राजनीति के खिलाफ जनादेश है।
—अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा
भाजपा ने 2009 का चुनाव हारने के बाद पांच साल तक ईवीएम पर रिसर्च कर महारत हासिल की और आज उसी के दम पर चुनाव जीत रही है।
—मनीष सिसोदिया, उपमुख्यमंत्री, दिल्ली
3बार से लगातार भाजपा जीत रही है दिल्ली नगर निगम चुनाव
2007से तीनों निगमों पर भाजपा काबिज
272सीटें हैं एमसीडी में, चुनाव 270 पर हुए
181सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की इस बार
138 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की इस बार
नोटा का इस्तेमाल पहली बार हुआ एमसीडी में
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