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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी नई किताब में लिखा है, ‘‘दीपावली पर हिन्दू संत को गिरफ्तार कर लिया, परंतु क्या ईद पर मौलवी को पकड़ने का साहस किया जा सकता है?’’ कांग्रेस की पंथनिरपेक्षता की परिभाषा हिन्दू विरोध है
लोकेन्द्र सिंह
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी ताजा पुस्तक ‘कोएलीशन इयर्स 1996-2012’ के एक अध्याय में कांग्रेस के हिंदू विरोधी एजेंडे और छद्म पंथनिरपेक्षता को उजागर किया है। वैसे, दोनों आरोपों को लेकर कांग्रेस अक्सर कठघरे में खड़ी दिखाई देती रही है। परंतु, जब प्रणब मुखर्जी इस संबंध में लिख रहे हैं, तब इसके मायने अलग हैं। वे पक्के कांग्रेसी नेता रहे हैं, कांग्रेस को बहुत नजदीक से देखा है, उसका उत्थान एवं पतन दोनों उनकी आंखों के सामने हुए हैं। आज कांग्रेस जिसकी जो गति है, उसके संबंध में भी उनका आकलन होगा। मुखर्जी ने इस किताब में लिखा है, ‘‘मैंने वर्ष 2004 में कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी पर सवाल उठाए थे। एक कैबिनेट बैठक के दौरान मैंने गिरफ्तारी के समय को लेकर काफी नाराजगी जताई थी। मैंने पूछा था कि क्या देश में पंथनिरपेक्षता का पैमाना केवल हिन्दू संतों-महात्माओं तक ही सीमित है? क्या किसी राज्य की पुलिस किसी मौलवी को ईद के मौके पर गिरफ्तार करने का साहस दिखा सकती है?’’
यदि हम इस प्रश्न का उत्तर तलाशने का प्रयास करें तो पाएंगे कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में आने के बाद से कांग्रेस तुष्टीकरण से आगे बढ़कर हिंदू विरोधी नीति पर आ गई। यह अकेली घटना नहीं है। 1998 से अब तक ऐसे अनेक प्रकरण हमारे सामने हैं, जो है सिद्ध करते हैं कि कांग्रेस के लिए पंथनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) हिन्दू विरोध का पर्याय है। स्वयं को पंथनिरपेक्ष दिखाने के लिए सदैव ही हिन्दू विरोधी नीति पर चलना कांग्रेस के लिए सुविधाजनक रहा है। बहरहाल, हम 1998 के बाद की कुछ प्रमुख घटनाओं की बात करते हैं, जिन्होंने कांग्रेस की हिन्दू विरोधी नीति को साफ किया। 1998 से 2004 तक कांग्रेस ने सत्ता में वापसी के लिए एक विशेष समुदाय को आकर्षित किया। कांग्रेस ने भरोसा दिलाया कि ‘उसकी सरकार में विशेष समुदाय की चिंता प्राथमिकता’ से की जाएगी। अवसर आने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह खुलकर कहा भी कि ‘‘इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।’’ बाटला हाऊस मुठभेड़ (2008) में मारे गए दो आतंकवादियों की तस्वीर देख कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रो पड़ी थीं। यह बात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने बताई थी। हालांकि बाद में कांग्रेस ने इसे खुर्शीद का निजी बयान करार दिया था।
बहरहाल, वर्ष 2004 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने अपनी हिन्दू विरोधी नीति का पालन प्रारंभ कर दिया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जिस प्रकरण का जिक्र किया है, उसकी कल्पना 2004 से पहले किसी ने नहीं की थी। हिन्दू बहुल देश में, हिन्दू समाज के सबसे बड़े संत को, हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहारों में से एक दीपावली के दिन गिरफ्तार करने की बात क्या 2004 से पहले सपने में भी सोची जा सकती थी? परंतु, यह दुर्भाग्यपूर्ण दिन हिन्दुस्थान को देखना पड़ा। 11 नवंबर, 2004 को हत्या के आरोप में कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र्र सरस्वती को आंध्र प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और प्रणब मुखर्जी रक्षा मंत्री थे। प्रधानमंत्री सिंह तो कुछ नहीं बोले, परंतु मुखर्जी ने इस प्रकरण में अपनी नाराजगी प्रकट की। (जैसा कि उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है) परंतु, कांग्रेस सरकार पर उनकी नाराजगी का कोई असर नहीं हुआ। उनके इस प्रश्न का उत्तर भी किसी ने नहीं दिया कि क्या ईद के दिन इसी प्रकार किसी मौलवी को गिरफ्तार करने का साहस दिखाया जा सकता है। कांग्रेस ने इस गिरफ्तारी पर आंध्रप्रदेश सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा। देश में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही विरोध प्रदर्शन किया और शंकराचार्य जयेन्द्र्र सरस्वती की रिहाई की मांग की। हिन्दू प्रतिष्ठान को बदनाम करने का यह षड्यंत्र असफल साबित हुआ। न्यायालय ने शंकराचार्य एवं अन्य पर लगे सभी आरोप खारिज कर दिए।
बाद में, ‘भगवा आतंकवाद’ और ‘हिन्दू आतंकवाद’ शब्द गढ़कर कांग्रेस ने अपनी हिन्दू विरोधी छवि को और अधिक पुष्ट किया। मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि हिन्दू ‘आतंकवादी’ हो गए हैं। हालांकि, कांग्रेस अपनी इस अवधारणा को कभी सिद्ध नहीं कर पाई। हिन्दू आतंकवाद को सिद्ध करने के लिए उसने जो षड्यंत्र रचे थे, अब उनसे भी परदा उठ रहा है। देश यह जानकर स्तब्ध है कि कैसे इस्लामी आतंकवाद का बचाव करने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने ‘भगवा’ जैसे पवित्र रंग-शब्द को आतंकवाद से जोड़ने के लिए गहरी साजिशें रचीं। जांच एजेंसियों पर दबाव बनाया गया कि वे ऐसी कहानी और तथ्य गढ़ें, जिनसे हिन्दू आतंकवाद के जुमले को सिद्ध किया जा सके। परंतु, उनका यह झूठ अधिक दूर तक चल नहीं सका।
2007 में रामसेतु प्रकरण में भी यही हुआ। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले रामसेतु को तोड़ने की जिद ठान ली थी। हिन्दू समाज के तीव्र विरोध को भी दरकिनार कर कांग्रेस सरकार रामसेतु को तोड़ने के लिए आतुर दिखाई दे रही थी। लोकतंत्र में जनभावनाओं की अनदेखी और दुराग्रह के लिए कोई स्थान नहीं होता। चूंकि आस्था हिन्दू समाज से जुड़ी थी, इसलिए सरकार को परवाह नहीं थी। कांग्रेस ने न्यायालय में हलफनामा देकर कहा कि राम का कोई अस्तित्व नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सलाहकार परिषद ने ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण अधिनियम-2011’ का मसौदा तैयार किया था। सोनिया गांधी की इस परिषद में ज्यादातर हिन्दू विरोधी व्यक्ति शामिल थे। यह कानून भी हिन्दुओं के दमन के लिए तैयार कराया गया था और इस काम में परिषद् के ज्यादातर सदस्य माहिर थे। उन्होंने ऐसा मसौदा तैयार किया, जो अगर लागू हो जाता, तो प्रत्येक सांप्रदायिक दंगे के लिए हिन्दुओं को दोषी बनाया जाता। भाजपा, रा.स्व.संघ और हिन्दू समाज ने इस विधेयक का इतना विरोध किया कि कांग्रेस को इसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ा।
यह कुछेक प्रकरण हैं, ऐसे और भी प्रकरण हैं। यहां सबकी चर्चा करना संभव नहीं हैं। कांग्रेस के हिन्दू विरोधी व्यवहार को देख कर ही देश की जनता ने वर्ष 2014 में उसे मात्र 44 सीटों पर समेट दिया और बाद में कई राज्यों से भी विदा कर दिया। 2014 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की ऐतिहासिक और शर्मनाक पराजय के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ए.के. एंटनी ने भी पराजय के कारणों की समीक्षा में माना कि ‘हिन्दू विरोधी छवि के कारण यह दुर्गति हुई है। तुष्टीकरण की नीति पर चलते-चलते पार्टी की जो हिन्दू विरोध छवि बन गई है, उससे उसे मुक्त होना होगा।’’ परंतु, कांग्रेस ने इस रिपोर्ट को नहीं माना और वह बदस्तूर हिन्दू विरोध की नीति पर चल रही है।
हाल में पशुओं को बचाने के केंद्र सरकार के आदेश का विरोध करने के लिए कांग्रेस ने वीभत्स तरीका अपनाया। उसके केरल में खुलेआम हिन्दू आस्था की प्रतीक गाय का गला काटा और चौराहे पर खड़े होकर गोमांस खाया एवं वितरित किया। सोनिया गांधी के बेटे एवं कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, जिन्हें अध्यक्ष बनाने की मुहिम जोरों पर है, भी अपने बयानों में बार-बार हिन्दू समाज को लक्षित करते हैं। ऐसे अनेक अवसर आते रहे हैं, जब कांग्रेस स्पष्ट तौर पर हिन्दू विरोधी पाले में खड़ी नजर आती है। एक जिम्मेदार राष्ट्रीय राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस को विचार करना चाहिए कि ‘पंथनिरपेक्षता’ के नाम पर वह जिस प्रकार का व्यवहार करती है, क्या वह देशहित में है? ल्ल
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