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''स्वतंत्रता के बाद बहुत- सी पत्रिकाएं बाजार में आईं और फिर धीरे-धीरे समय के साथ नदारद होती चली गईं। लेकिन हमारा 'पाञ्चजन्य' आज भी स्थापित है और राष्ट्र को प्रत्येक विषय पर जागरूक करने का काम करता है। बदलती हुई तकनीक के साथ परिवर्तन लाते हुए 'पाञ्चजन्य' पाठकों के बीच लगातार अपना विश्वास बढ़ाता जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जो बात 'पाञ्चजन्य' 70 वर्ष से बार-बार कह रहा था, अब लोग उस बात को मानने लगे है।'' उक्त उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने लखनऊ के विभूति खंड स्थित मरकरी सभागार, इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में दिया। मौका था गत 28 अक्तूबर,2017 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक के लखनऊ ब्यूरो के भव्य शुभारंभ का।
दरअसल वर्ष 1948 में मकर संक्रान्ति के सुअवसर पर लखनऊ की धरा से 'पाञ्चजन्य' ने पत्रकारिता के माध्यम से समाज जागरण उद्घोष किया था। ठीक 69 वर्ष बाद एक बार फिर उसी धरा पर विधिवत रूप से जियामऊ स्थित विश्व संवाद केंद्र के भवन में ब्यूरो कार्यालय का उद्घाटन किया गया। उद्घाटन अवसर पर प्रमुख रूप से रा.स्व.संघ के पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक श्री शिव नारायण, पूर्वी एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख श्री कृपा शंकर, भारत प्रकाशन दिल्ली (लि.) के निदेशक मंडल के सदस्य श्री विजय कुमार एवं समूह संपादक श्री जगदीश उपासने उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ उपस्थित रहे। खचाखच भरे सभागार को संबोधित करते हुए डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि जमाने से यह पढ़ाया जा रहा है कि आर्य बाहर से आये थे, हिन्दुस्थान के बच्चे इतिहास की किताबों में पढ़ते थे कि हम आर्य हैं और आर्य बाहर से आये थे। मगर 'पाञ्चजन्य' लगातार कहता रहा है कि आर्य यहीं के थे, आर्य बाहर से नहीं आये थे। आज यह साबित हो चुका है कि आर्य बाहर से नहीं आये थे। ऐसा ही एक और उदाहरण तब देखने को मिला जब कांग्रेस चुनाव हार गई। तब कांग्रेस नेतृत्व ने वरिष्ठ नेता ए.के. एंटनी से हार के कारणों का पता लगाने को कहा। एंटनी ने जांच के बाद जो रिपोर्ट दी उसमें साफ किया कि कांग्रेस तुष्टीकरण की नीति की वजह से चुनाव हारी। 'पाञ्चजन्य' यही बात कब से कह रहा है कि तुष्टीकरण बंद करो, एक नियम सबके लिए लागू करो। अब कांग्रेस के नेता मंदिर में दर्शन करने जा रहे हैं। लेकिन इनके मन में श्रद्धा नहीं है, मन में कपट है, ऐसे दर्शन का क्या लाभ है?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर पर कहा कि 'पाञ्चजन्य' लखनऊ से शुरू हुआ और बाद में इसका प्रकाशन दिल्ली से होने लगा। आज फिर एक बार 'पाञ्चजन्य' अपनी जड़ों की तरफ लौट आया है। 'पाञ्चजन्य' ने एक लंबा सफर तय किया है। इस सफर में उसने सच और राष्ट्र का हमेशा साथ दिया है। जब भी कभी राष्ट्र पर कोई खतरा महसूस हुआ है तो उसने अपने स्वरों के माध्यम से हमेशा राष्ट्र की आवाज को ही बुलंद किया। उन्होंने कहा कि भारत के मीडिया ने सदैव लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का काम किया है। मगर कभी-कभी सरकार और मीडिया के बीच यह द्वन्द्व भी चलता है कि कौन बड़ा और कौन छोटा है। जब हम अपना दायित्व नहीं निभा पाते हैं तो इस द्वन्द्व का शिकार भी हो जाते है। लेकिन 'पाञ्चजन्य' ने इस द्वन्द्व को समाप्त करने का काम किया। आज हमारे देश में कुछ लोग भारत को टुकड़ों में बांटना चाहते हंै, तो वहीं कुछ लोग भारत को मात्र एक जमीन का एक टुकड़ा मानते है, ऐसा लगता है जैसे यह कोई खेल हो, सभ्यता का संघर्ष सिर्फ अस्त्रों-शस्त्रों से नहीं होता है। विचारधारा के स्तर की लड़ाई सबसे अहम होती है और आज वही लड़ाई लड़ी जा रही है। क्योंकि जब हम सभ्यता के संघर्षों की बात करते हैं तो इसका तात्पर्य यह है कि हम विचारधारा की लड़ाई की बात कर रहे हंै। अगर कोई यह सोचता है कि वह अपनी मूल विचारधारा को छोड़कर विश्व विजेता बन जाएगा तो यह उसकी भूल है। जो लोग आज के 50 साल पहले राष्ट्रीयता पर सवाल उठाते थे, वे आज राष्ट्रीयता से जुड़ रहे हैं। वहीं योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत हमेशा से एक था और एक रहेगा, अगर ऐसा ना होता तो आदि शंकराचार्य चार पीठ की स्थापना ना कर पाते।
समारोह में मुख्य रूप से उपस्थित भारत प्रकाशन दिल्ली (लि.) के निदेशक मंडल के सदस्य श्री विजय कुमार ने कहा कि 'पाञ्चजन्य' पहले साप्ताहिक अखबार के तौर पर प्रकाशित होता था। जब समय बदला तो हर तरफ से मांग उठने लगी कि इसे पत्रिका का स्वरूप दिया जाए। तकनीक के युग को देखते हुए 'पाञ्चजन्य' को नयी तकनीक के साथ पत्रिका स्वरूप के साथ ही डिजिटल स्वरूप में भी लाया गया। ये सब परिवर्तन तो हुए लेकिन जो नहीं बदला, वह है इसका स्वर। 'पाञ्चजन्य' अपने उसी बुलंद स्वर के साथ राष्ट्रभाव के विचार को और समाज में घट रही घटनाओं का सच आज भी पाठकों के सामने रखता आ रहा है। इस सबको देखते हुए उम्मीद है कि भविष्य में 'पाञ्चजन्य' और ऊंचाइयों को छुएगा।
'पाञ्चजन्य' के संपादक श्री हितेश शंकर ने कहा कि 'पाञ्चजन्य' ने हमेशा 'सच' को लोगों के सामने रखा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले जब तमाम मीडिया सर्वे भ्रामक आंकड़े दे रहे थे, तब हमने स्पष्ट किया था कि जनता का रुख किधर है और उसकी पसंद क्या है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, असम में हिंदुओं पर अत्याचार की खबर रही हों या फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंदर देशविरोधी षड्यंत्रों को उजागर करने की बात हो, हमारे संवाददाताओं ने न केवल वहां के सच कोे उजागर किया बल्कि देश को हकीकत से परिचित कराने का काम किया। उन्होंने कहा कि गोपाष्टमी के दिन लखनऊ ब्यूरो का शुभारंभ निश्चित ही शुभ
संकेत है। हमारा विश्वास है कि उत्तर प्रदेश में 'पाञ्चजन्य' रिकार्ड प्रसार संख्या स्थापित करेगा। -सुनील राय
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