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'कोई और ईश्वर नहीं, केवल अल्लाह, और मुहम्मद उसका रसूल'— अरबी में लिखी यह पंक्ति बरामद हुई है न्यूयॉर्क के मैनहटन बाइक पाथ से, जहां 31 अक्तूूबर को 29 वर्षीय जिहादी सैफुल्लो सैपोव ने निरपराध लोगों पर एक किराए का ट्रक चढ़ा दिया। मैनहटन बाइक पाथ 9/11 के आतंकी हमले वाले स्थान (ध्वस्त हो चुके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर) के निकट ही है। इस आतंकी हमले में 8 लोग मारे गए और दर्जनभर घायल हुए हैं। यह हमला जुलाई 2016 में फ्रांस के खूबसूरत शहर नीस में हुए हमले की याद दिलाता है, जब एक जिहादी आतंकी ने उत्सव मनाते 84 लोगों को ट्रक से कुचलकर मार डाला था। 12 जून, 2016 को अमेरिका के ओरलैंडो के एक गे नाईट क्लब में, ओमर मतीन नामक व्यक्ति ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर 49 लोगों को मार डाला था। दुनिया के अनेक भागों में ऐसे अनेक हमले हो चुके हैं। सुरक्षा एजेंसियां बेबस हैं, क्योंकि इन हमलावरों का किसी आतंकी गुट से संबंध नहीं था। ये शायद आतंकी सरगना बगदादी या किसी अन्य से प्रभावित होकर गैरमुस्लिमों की हत्या करने निकल पड़े थे। सभी ने हथियारों का इंतजाम स्वयं किया था। या एक भारी वाहन किराए पर लिया, या चुरा लिया अथवा छीन लिया और निकल पड़े 'काफिरों' को कत्ल करने।
मैनहटन हमले पर एफबीआई के पूर्व एजेंट और आतंकी मामलों के विशेषज्ञ टिमोथी ए. सॉ ने कहा, ''स्वप्रेरणा से अकेले कार्रवाई करने वाले आतंकी सबसे बड़ी चुनौती हैं क्योंकि यह भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा काम है।'' जार्जटाउन विश्वविद्यालय के सेंटर फॅार सिक्योरिटी स्टडीज के निदेशक ब्रूस हाफमैन ने बयान दिया है कि 'जब तक आप किसी का मन न पढ़ लें— आप ऐसे हमले नहीं रोक सकते।' हाफमैन का बयान अनजाने ही समस्या की जड़ पर उंगली रखता है। समस्या मन में है। मन, जिसमें 'काफिरों' के विरुद्ध नफरत का गंधक उबल रहा है।
इन दिनों व्हाट्सएप पर पाकिस्तान के एक विद्वान जावेद अहमद घामिडी का एक वीडियो चल रहा है। आतंकवाद का कारण क्या है, इसके जवाब में घामिडी कहते हैं, ''मदरसों और दूसरी मजहबी संस्थाओं में 4 बातें निश्चित रूप से सिखाई जा रही हैं- सामने या पीठ पीछे, पर सिखाई जरूर जा रही हैं। ये 4 चीजें हैं, एक, यदि दुनिया में किसी जगह शिर्क (मूर्तिपूजा या अल्लाह के अलावा किसी और को मानना) होगा, कुफ्र (इस्लाम अथवा रसूल की शिक्षाओं से इनकार) होगा या इर्तिदाद (किसी मुस्लिम द्वारा इस्लाम का त्याग) होगा, तो उसकी सजा मौत है और यह सजा देने का अधिकार मुस्लिम को है। दो, गैरमुस्लिम सिर्फ शासित होने (हुक्म मानने) को हैं और दुनिया पर हुकूमत करने का अधिकार केवल मुसलमानों का है। गैरमुस्लिमों की हर हुकूमत एक नाजायज हुकूमत है और जब हमारे पास ताकत होगी, हम उसको उलट देंगे। तीन, दुनिया में मुसलमानों की एक ही हुकूमत होनी चाहिए, जिसे खिलाफत कहते हैं। (बगदादी का दावा इसी खिलाफत का खलीफा होने का है)..और राष्ट्र (राष्ट्रवाद) एक कुफ्र (त्याज्य, इस्लाम विरोधी) है, जिसकी इस्लाम में कोई जगह नहीं। ये विचार जब तक फैलने दिए जाएंगे तब तक जिहादी आतंक भी फलता-फूलता रहेगा, और समाज में विद्वेष पनपता रहेगा।''
आमतौर पर कट्टरपंथी इस्लाम से निबटने के नाम पर 'इस्लाम भाईचारा सिखाता है। इस्लाम शांति सिखाता है' जैसे बयान झाड़ दिए जाते हैं, लेकिन दुनियाभर में नफरत फैलाने वाली सोच को नजरअंदाज करके किसी समस्या का हल नहीं ढूंढा जा सकता। इससे शांतिप्रिय और खुले विचारों वाले मुस्लिम भी हतोत्साहित होते हैं, जबकि आवश्यकता उन्हें सामने लाने और नेतृत्व प्रदान करने की है। यह भ्रम भी अब टूट चुका है कि चरमपंथी सोच रखने वालों की संख्या नगण्य है। निरंतर सामने आ रहे सर्वेक्षण बता रहे हंै कि इस्लामिक स्टेट और दूसरे चरमपंथियों से सहानुभूति रखने वालों का प्रतिशत कतई नगण्य नहीं है। प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किये गए एक सर्वे में यूरोपियन मुस्लिमों से सवाल पूछा गया था कि क्या इस्लाम की रक्षा के नाम पर नागरिकों पर किये जा रहे आत्मघाती तथा दूसरे जिहादी हमलों को उचित ठहराया जा सकता है?
फ्रांस में 36 प्रतिशत मुस्लिमों ने कहा कि ये हमले जायज हो सकते हैं। इसी प्रकार ब्रिटेन में 30 प्रतिशत, जर्मनी में 17 प्रतिशत और स्पेन में 31 प्रतिशत मुस्लिमों ने इन हमलों को इस्लाम संगत बताया। भारत में हाल ही में पकडे़ गए जिहादी आतंकियों से प्रेरित मुस्लिम युवक यहूदी उपासना स्थल पर हमला करने की योजना बना रहे थे। भारत में मुट्ठीभर भी जिनकी संख्या नहीं है, ऐसे यहूदियों ने इनका क्या बिगाड़ा है? ये बातें बेहद गंभीरता से सोचने की हैं।
आतंकवाद के पीछे अशिक्षा, आर्थिक परेशानी और मनोविकार जैसी बहानेबाजी का जवाब खुद जिहादी आतंकियों ने दे दिया है। इटली के समाजशास्त्री डिएगो गैम्बेत्ता की किताब 'इंजीनियर्स ऑफ जिहाद' के अनुसार पश्चिमी देशों में से निकल रहे जिहादियों में से 25 प्रतिशत और अरब जगत से निकल रहे जिहादियों में से 46 प्रतिशत विश्वविद्यालयों में पढ़े हैं। यूरोप के उच्च शिक्षित इस्लामी कट्टरपंथियों में से 45 प्रतिशत इंजीनियर हैं। जिहाद की तरफ मुड़े चिकित्सकों की संख्या भी आश्चर्यजनक रूप से ज्यादा है। अल कायदा का मुखिया अल जवाहिरी शल्यचिकित्सक है। ओसामा सिविल इंजीनियर था। अबु बकर अल बगदादी पीएचडी है। बगदादी की बर्बरता में हाथ बंटाने के लिए भारत से जाने वाले प्राय: सभी मुस्लिम युवा अच्छी तरह शिक्षित हैं। इसी सन्दर्भ में, हमें याद रखना चाहिए, सऊदी अरब के उस ह्रदय रोग विशेषज्ञ मोशरी अल अंजी को, जिसने जिहादी आत्मघाती हमले में खुद को उड़ा लिया था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए 25 वर्षीय चिकित्सक फैसल बिन शामन को, जिसने अपनी विस्फोटकों से भरी कार को एक सुरक्षा नाके से टकराकर दो दर्जन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
पाकिस्तानी लेखक और मनोवैज्ञानिक सोहेल अब्बास ने अपनी किताब 'प्रॉबिंग द जिहादी माइंडसेट' में 17 से 72 आयु वर्ग के 517 जिहादियों पर एक शोधपूर्ण विवरण सामने रखा है। शोध के अंतर्गत लगभग आधे जिहादी खुद को दूसरों की तुलना में श्रेष्ठ मुसलमान समझते थे। तिस पर भी, स्वयं को अपने परिवार से भी ज्यादा 'पक्का मुसलमान' मानते थे, और अपने परिवार के सदस्यों को भी 'शुद्ध मुस्लिम' बनने के लिए प्रेरित करते थे। वे परिवार की महिलाओं पर हिजाब पहनने के लिए जोर देते थे। परिवार के सदस्यों को मजारों-दरगाहों पर जाने जैसी 'गैर-इस्लामी आदतों' या 'कुफ्र' अथवा 'शिर्क' से दूर रखने की कोशिश करते थे। यह अध्ययन बतलाता है कि श्रेष्ठता के इन प्रतिमानों की उपेक्षा करने की जगह उनके पुनर्निर्धारण की आवश्यकता है।
इधर भारत में, एक बार फिर राष्ट्रगान को लेकर बहस छिड़ी हुई है। अखिल इस्लामवाद का नशा किस प्रकार राजनैतिक घालमेल के साथ सिर चढ़कर बोलता है, और देश को कहां ले जाता है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारे पड़ोस, बांग्लादेश का है, जहां जुल्फिकार अली भुट्टो ने शेख मुजीब पर डोरे डालने शुरू किये और धीरे-धीरे कामयाब भी हो गए। भुट्टो ने मुजीब से कहा कि यदि बंग्लादेश युद्ध अपराध मुकदमे न चलाए तो पाकिस्तान उसे मान्यता दे सकता है। मुजीब तैयार हो गए। अपने साथियों के विरोध के बावजूद 1974 में मुजीब ने इस्लामी सम्मलेन में भाग लिया। भुट्टो बांग्लादेश आए तो 'इस्लामी भ्रातृवाद' के नशे में झूमती भीड़ ने अवामी लीग विरोधी नारे लगाए और 'भुट्टो जिंदाबाद' तथा 'बांग्लादेश-पाकिस्तान दोस्ती जिंदाबाद' का शोर उठा। ये वही भुट्टो थे जो तीन साल पहले बंगाल में की गई तीस लाख हत्याओं और चार लाख बलात्कारों के लिए बराबरी के जिम्मेदार थे। धीरे-धीरे बांग्लादेश उसी कट्टरपंथ के गर्त में लुढ़कता चला गया, जिसके खिलाफ लड़कर बंग्लादेश को हासिल किया गया।
फिलहाल, पुलिस की गोली से घायल मैनहटन का हमलावर सैफुल्लो अस्पताल में है। उसे अपने किये पर 'गर्व' है, और अस्पताल में उसने इस्लामिक स्टेट का झंडा देखने की मांग की। उसे बगदादी के वीडियो पसंद हैं। उसने कहा कि वह ज्यादा से ज्यादा काफिरों का कत्ल करना चाहता था। लिहाजा दुनिया को समझना होगा कि उग्र विचारों की बारूद दिमाग में लिए ऐसे जाने कितने जिंदा बम मानव समुदाय के बीच घूम रहे हैं जो कभी भी कहर बरपा सकते हैं। जरूरत है मुस्लिम श्रेष्ठता के इस खतरनाक प्रतीक कर हमले की। * प्रशांत बाजपेई
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