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रिपोर्ट – केरल में माकपाई फासीवाद

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Jan 16, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Jan 2017 13:05:35

अपने विभाजन के पहले से ही माकपा की राजनीति फासीवादी रंग में डूबी रही है। वहीं विभाजन के बाद माकपा ने अपनी रोजमर्रा राजनीतिक दुकानदारी चलाने के लिए हिंसा और हत्या की राजनीति को पूरी तरह से अपना लिया था। सत्ता में आने पर उसके अधीन इलाकों के हालात तो बद से बदतर होते गए हैं। केरल में पिछले कुछ महीनों में ऐसे ही हालात देखने को मिल रहे हैं। माकपा की हिंसक राजनीति केवल कन्नूर जिले तक ही सीमित नहीं रही। हाल में केरल के पलक्कट जिले के कंझिकोड के निकट चटायनकलायिल में संघ के स्वयंसेवक और भाजपा के कार्यकर्ता श्रीवलसम के. राधाकृष्णन की हत्या का मामला सामने आया है। राधाकृष्णन क्षेत्र के पूर्व पंचायत सदस्य एवं भाजपा नेता कनन्न के भाई थे।
गत वर्ष 28 दिसंबर को माकपा के गुंडों ने राधाकृष्णन के घर पर हमला बोला था। बाइक सवार चार हमलावरों ने सबसे पहले उनके घर के अहाते में खड़ी मोटर साइकिलों को आग के हवाले किया। कुछ ही देर में खिड़कियों के रास्ते आग की लपटों ने घर को भी चपेट में ले लिया और रसोईघर में रखा गैस सिलेंडर फट गया। इसी दौरान हमलावरों ने घर के निकट रखे सूखे घास के ढेर और मवेशीबाड़े को भी आग में झोंक दिया। घटना में राधाकृष्णन, कनन्न, उनकी पत्नी विमला एवं उनके एक अन्य भाई के पुत्र सेल्वन गंभीर रूप से घायल हुए थे। राधाकृष्णन ने 6 जनवरी को अंतिम सांस ली।
साफ है कि घटना ने एक बार फिर माकपा के खूनी और फासीवादी चेहरे को बेनकाब किया। केरल के लोगों के लिए यह घटना बहुत बड़ा सदमा रही। माकपा द्वारा राज्य में सोची-समझी रणनीति के तहत हत्याओं को अंजाम देने की यह सबसे ताजा घटना भी रही। राधाकृष्णन के परिवार में उनकी पत्नी और दो बच्चे हैं जो अभी स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि माकपा ने दिसंबर महीने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ हमला बोलने का फैसला लिया है। इस महीने में क्रिसमस की छुट्टियों के दौरान संघ राज्यभर में प्राथमिक शिक्षण शिविर आयोजित करता है। शिविर आयोजित होने के साथ ही माकपा नेता उनके खिलाफ अपनी मुहिम भी शुरू कर देते हैं। वे लगातार ऐसे बयान देते हैं कि शिविरों के माध्यम से संघ, माकपा और अल्पसंख्यक समुदाय आदि के खिलाफ हमला करने के लिए लोगों को शस्त्र प्रशिक्षण देता है। ऐसे बेतुके बयानों के बाद ही कोट्टयम जिले के पोनकन्नम में आईटीसी पर माकपा का हमला हुआ था। हमलावर नशे में धुत थे। उन्होंने सबसे पहले मुख्य द्वार पर एक ट्यूबलाइट फोड़ी। इसके बाद जब संघ कार्यकर्ता शिविर को बचाने के लिए आगे आए तो माकपा के गुंडे वहां से भाग निकले।
कन्नूर में माकपाई गुंडों ने उस स्कूल पर भी हमला बोला जहां आईटीसी आयोजित किया गया था। हालांकि हमले के समय शिविर समाप्त हो चुका था। इसके बावजूद, हमलावरों ने फर्नीचर, खिड़कियां, गिलास, पाइपें आदि तोड़ दी थीं। लाखों रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई थी। इसी जिले में संघ शिविर के निकट माकपा कार्यकर्ताओं ने एक खुफिया कैमरा भी स्थापित किया था। बाद में उन्होंने कैमरा रिकॉर्डिंग अपने पीपल्स चैनल पर प्रसारित भी की थी। चूंकि उस रिकॉर्डिंग में सूर्य नमस्कार, व्यायाम योग आदि ही देखने में आया, इसलिए वह खबर सनसनीखेज होने की बजाय मजाक बनकर रह गई थी।
इसी तरह, कोल्लम जिले में एक रात और अगले दिन बाइकसवार माकपाकर्मी स्वयंसेवकों को भद्दी गालियां देते रहे थे। तीसरे दिन उन्होंने शिविर पर देसी रॉकेटों से हमला किया और भाग निकले। बाद में उन्होंने संघ के खिलाफ नारेबाजी करते हुए एक जुलूस भी निकाला।  इस दौरान उनके कार्यकर्ता गाली-गलौज भी करते रहे। संघ कार्यकर्ताओं ने इस घटना की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी।
तिरुवनंतपुरम में भी माकपाई गुंडों ने संघ शिविर में हुड़दंग मचाया था। अट्िंग्गल में शिविर पर पत्थरबाजी और गाली-गलौज की घटना सामने आई। हमलावर माकपाई विधानसभा सदस्य जॉय के साथी थे। वहीं बलरामपुरम में हमलावरों ने उस स्कूल का गेट जबरन बंद कर दिया था जहां शिविर आयोजित किया गया था। जब जोर-आजमाइश के बाद उन्हें हटाया गया तो वे जुलूस लेकर वापस आए और पत्थरबाजी और बदतमीजी पर उतारू हो गए। संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस को शिकायत करने के साथ ही उन्होंने शिविर समाप्त होने तक मुख्यद्वारों पर मदद हेतु पोस्टर भी चिपका
दिए थे।
कोच्चि में एक कट्टरवादी इस्लामिक गुट, पॉपुलर फ्रंट ने संघ शिक्षा वर्ग जहां आयोजित हुआ था, वहां तक विरोध जुलूस निकाला। पुलिस ने उस जुलूस को वर्ग से दो कि़मी. की दूरी पर ही रोक दिया था। बाद में उन्होंने संघ को बदनाम करने के लिए पोस्टर अभियान का सहारा लिया। उपरोक्त सभी घटनाएं इसी तथ्य की ओर इशारा करती हैं कि माकपा अभी तक टकराव और हिंसा के ही रास्ते पर चल रही है। वह अन्य विचारधाराओं या अभियानों को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। इसी के साथ वह सहिष्णुता और अभिव्यक्ति की आजादी का भी शोर मचाती रहती है।    -टी़ सतीशन

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