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एक सरकारी विद्यालय में दो प्रकार के शिक्षक पढ़ाते हैं। एक वर्ग गणित, हिन्दी और विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाता है, जबकि दूसरा वर्ग एक ऐसी भाषा पढ़ाता है जिसे पढ़ने वाले मुट्ठीभर विद्यार्थी हैं। आपकी राय में शिक्षकों के इन वर्गों में किसे अधिक मानधन मिलना चाहिए? क्या कहा, गणित, हिन्दी और विज्ञान पढ़ाने वाले को? आपका जवाब गलत है। आपको एक और मौका देते हैं। एक शिक्षक अपनी कक्षा में 100 विद्यार्थियों को पढ़ाता है, जबकि दूसरा बमुश्किल 15 से 20 विद्यार्थी ही। इनमें से किसे अधिक वेतन मिलना चाहिए? 100 विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले को! गलत जवाब। सही जवाब देने का आखिरी मौका। आठ घंटे काम करने वाले शिक्षक को अधिक वेतन मिलना चाहिए अथवा दो घंटे काम करने वाले को। आठ घंटे काम करने वाले को? आपने सही जवाब देने का आखिरी मौका भी गंवा दिया। लगता है, आपकी सोच सेकुलर नहीं है।
विडंबना यह कि जिस ज्ञान और समझ के आधार पर आप इन सवालों का जवाब दे रहे हैं वह अब इस देश में नहीं चल सकती। आपको अपनी सोच बदलनी पडेगी। जी हां, यह हम नहीं कह रहे, बल्कि सत्ता से बेदखल होने से कुछ समय पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार देश में ऐसी ही व्यवस्था कायम करके गई है। इस घृणित और विभाजनकारी कांग्रेसी मानसिकता का सबसे पहले शिकार हुए सर्व शिक्षा अभियान के तहत देशभर में 3,600 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में संविदा आधार पर पढ़ाने वाले अंशकालिक शिक्षक। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 24 मार्च, 2014 को सभी राज्यों के शिक्षा सचिवों को भेजे गए एक निर्देश (एफ़ नं 2-16/2013 ईई 3) के अनुसार इन विद्यालयों में गणित, विज्ञान और हिन्दी जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों का वेतन 30 प्रतिशत घटा दिया गया, जबकि प्रतिदिन महज दो घंटे 10 से 20 बच्चों को उर्दू पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन को दोगुना कर दिया गया।
संप्रग सरकार ने यह भेदभावपूर्ण कदम विशुद्ध रूप से आम चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के लिए उठाया था, लेकिन इसका शिकार हुए कस्तूरबा स्कूलों के हजारों संविदा शिक्षक आज भी न्याय की आस में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। पिछले दो साल में ये शिक्षक केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों तक सभी से बार-बार मिलकर इस विसंगति को दूर करने हेतु असंख्य ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन सरकारें एक-दूसरे के पाले में गेंद डालकर इनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती आ रही हैं। 5 सितम्बर को पूरा देश शिक्षक दिवस मनाने जा रहा है। लेकिन क्या हम शिक्षकों को इस प्रकार प्रताडि़त और अपमानित कर उनका मजाक नहीं उड़ा रहे हैं? इस पर टिप्पणी करते हुए उत्तर प्रदेश के बलिया में संचालित कस्तूरबा स्कूल में पढाने वाले नीलांबुज मिश्र कहते हैं, ''बढ़ती महंगाई के कारण जब केन्द्र व राज्य सरकारें सभी न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी कर रही हैं, ऐसे में संविदा शिक्षकों का वेतन 7,200 रुपए से घटाकर 5,000 रुपए प्रतिमाह कर देना क्या शिक्षा और शिक्षक दोनों का अपमान नहीं है? इस प्रकार प्रताडि़त और अपमानित शिक्षकों से क्या हम देश की भावी पीढ़ी को उस प्रकार तराश पाने की अपेक्षा कर सकते हैं जैसी कि पूरा देश उनसे रखता है? इन प्रश्नों पर न कोई मंत्री सोचने को तैयार है और न ही मुख्यमंत्री अथवा नौकरशाह।''
कांग्रेस सरकार के इस निर्णय से आहत सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं शिक्षा बचाओ आंदोलन के संयोजक श्री दीनानाथ बत्रा कहते हैं, ''राष्ट्रभाषा देश का गौरव होती है। किसी भी सूरत में उसका अपमान नहीं होना चाहिए। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में हिन्दी पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन में कटौती राष्ट्रभाषा के गौरव को नीचा दिखाना है। यदि समाज में यह संदेश जाए कि भारतीय भाषा पढ़कर उन्हें सम्मान की बजाए अपमान का सामना करना पडे़गा तो विद्यार्थी और युवा उसे क्यों पढ़ना चाहेंगे? शिक्षकों के वेतन में जो विसंगति है उसे तुरंत दूर किया जाए।''अगस्त 2004 से शुरू देशभर के कुल 3609 कस्तूरबा गांधी विद्यालयों में करीब 3़ 5 लाख बालिकाएं पढ़ती हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ऐसे 746 विद्यालय हैं, जिनमें करीब 74,000 बालिकाएं पढ़ रही हैं। इन विद्यालयों में करीब 3,000 संविदा शिक्षक अंशकालिक आधार पर पढ़ाते हैं। सरकारी दृष्टि से इन्हें भले ही अंशकालिक गैर आवासीय शिक्षक कहा जाता हो लेकिन ये पूर्ण समय यानी प्रात: 9़ 30 से सायं 4़ 30 बजे तक सभी महत्वपूर्ण विषय अर्थात् हिन्दी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी, आदि पढ़ाते हैं। ये सभी प्रशिक्षित स्नातक हैं और नियमित शिक्षकों की भांति ही सेवाएं देते हैं। संप्रग सरकार ने 24 मार्च, 2014 को इन विद्यालयों के सभी कर्मियों के मानदेय में 40 से लेेकर 135 प्रतिशत तक वृद्धि की, लेकिन अंशकालिक गैर उर्दू शिक्षकों के मानधन में 30 प्रतिशत की कमी कर दी गई। उसी वर्ग के उर्दू शिक्षकों का मानदेय 7,200 रुपए से बढ़ाकर 12,000 रु. कर दिया गया, जबकि उसी वर्ग में अन्य विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन को 7,200 से घटाकर 5,000 रुपए कर दिया गया।
आजमगढ़ के कस्तूरबा गांधी विद्यालय में पढ़ाने वाले एक शिक्षक एवं कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय एंपलाइज वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के महामंत्री रविकांत मिश्र कहते हैं, ''उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति मात्र 20 बच्चों को पढ़ाने हेतु की गई है और वह भी मात्र दो घंटे के लिए। जबकि अन्य विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों की कक्षाओं में 100 तक बच्चे होते हैं और उनकी शिक्षण अवधि प्रतिदिन आठ घंटे है। यहां एक और तथ्य समझना जरूरी है। वर्ष 2004 से 2014 तक अंशकालिक और पूर्णकालिक शिक्षकों के मानदेय में मात्र 2000 रुपए का अंतर था, जो 24 मार्च, 2014 के बाद 15,000 रुपए हो गया।'' मिश्र आगे कहते हैं, ''पिछले दो साल में हमने हर दरवाजा खटखटाया, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक दर्जन से ज्यादा पत्र लिखे, ज्ञापन दिए, कई प्रतिनिधिमंडल मंत्रीजी से मिले। राज्य सरकारों को भी कई बार ज्ञापन दिए गए। लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। केन्द्र सरकार कहती है कि यदि राज्य सरकारें शिक्षकों को अधिक वेतन देना चाहें तो अपने पास से दे सकती हैं, जबकि राज्य सरकारों का तर्क है कि जब केन्द्र सरकार ने सभी कर्मियों का मानदेय निर्धारित कर दिया है तो वे उसमें परिवर्तन नहीं कर सकतीं। इस रस्साकसी में हम रोज अपमानित होते हंै। इस विसंगति को दूर करने की बजाए सब मामले को टाल रहे हैं।'' सरकारी अफसरों एवं नेताओं के इस शर्मनाक रवैये से आहत अंशकालिक शिक्षकों के एक समूह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने मई 2014 में इस कटौती को अमल में लाने पर रोक लगा दी और सरकारों को निर्देश दिया कि मामले के निबटारे तक शिक्षकों को रुपए 7,200 प्रतिमाह वेतन का ही भुगतान करें। रविकान्त मिश्र बताते हैं कि ''उत्तर प्रदेश सरकार ने एक साल तक इस पर अमल किया, लेकिन उसके बाद उसने फिर से रुपए 5,000 प्रतिमाह के हिसाब से ही वेतन देना शुरू कर दिया। हालांकि शिक्षकों ने अदालत की अवमानना का मामला दर्ज किया, लेकिन उस पर सुनवाई की गति इतनी धीमी है कि न्याय की उम्मीद धूमिल होती दिखाई दे रही है।''
जब अंशकालीन शिक्षकों को मानदेय देने की बात आती है तो केन्द्र सरकार धन की कमी बताते हुए कहती है कि राज्य सरकारें निधियों की व्यवस्था स्वयं करें। लेकिन जब महज दो घंटे 15-20 विद्यार्थियों को उर्दू पढ़ाने वाले शिक्षकों को बढ़ा हुआ वेतन देने की बात आती है तो केन्द्र सरकार के पास धन की कोई कमी नही होती। बलिया में संचालित कस्तूरबा गांधी विद्यालय में पढाने वाले शिक्षक भानू सिंह कहते हैं, ''वर्ष 2004 से 2014 तक सभी कर्मियों के मानदेय का निर्धारण केन्द्र सरकार के निर्धारित मानकों और नियमों के अधीन ही होता रहा है, फिर मार्च 2014 के बाद से यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर क्यों थोपी जा रही है?''
इन आन्दोलित शिक्षकों की मांग का कई सरकारी मूल्यांकन समितियों ने भी समर्थन किया है। नवम्बर-दिसम्बर 2013 में संपन्न कस्तूरबा गांधी विद्यालयों के द्वितीय राष्ट्रीय मूल्यांकन में पूर्णकालिक एवं अंशकालिक शिक्षकों हेतु समान सेवाशतार्ें तथा पूर्णकालिक एवं अंशकालिक शिक्षकों की स्पष्ट परिभाषा करने की बात कही गई थी। मूल्यांकन रपट में यह भी कहा गया कि प्रत्येक राज्य में सभी शिक्षकों के लिए समान वेतन होना चाहिए और किसी भी सूरत में किसी को भी कम वेतन नहीं दिया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, बिहार आदि राज्यों में पूर्णकालिक शिक्षकों को आवासीय शिक्षक के रूप में परिभाषित किया जाता है जबकि अंशकालिक शिक्षक को गैर आवासीय शिक्षक माना गया है।
कस्तूरबा गांधी विद्यालयों से संबंधित जून 2015 में जारी अपनी वार्षिक मूल्यांकन रपट में नीति आयोग ने कहा कि, ''77 प्रतिशत अंशकालिक शिक्षक अपने वेतन से खुश नहीं हैं और नियमित एवं अंशकालिक शिक्षकों के वेतन में भारी अंतर है। नियमित शिक्षक को जहां 19,162 रुपए से लेकर 26,382 रुपए तक वेतन मिलता है, वहीं अंशकालिक शिक्षकों को 5,624 से लेकर 10,584 रुपए वेतन मिलता है।'' आयोग ने कस्तूरबा विद्यालयों की व्यवस्था के लिए नवोदय विद्यालयों की तरह अलग से तंत्र खड़ा करने का सुझाव दिया है।
उधर देश में संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के सभी कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की बात अक्सर उठती रही है। लेकिन महंगाई के इस दौर में सरकारी संस्थान में काम करने वाले कर्मियों को जो सरकारेें उन्हें न्यायसंगत वेतन भी न दे सकें, उनसे इन सुविधाओं की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? पिछले दो साल में करीब दो दर्जन सांसद पत्र लिखकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय का ध्यान इस विसंगति की और आकर्षित कर चुके हैं लेकिन अभी तक हुआ कुछ नहीं। उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष एवं लोकसभा सांसद केशव प्रसाद मौर्य के एक पत्र का जवाब देते हुए तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने 14 नवंबर, 2014 को कहा था, ''मैंने मामले की जांच करवाई है। राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि यदि वे कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों के अंशकालिक शिक्षकों के लिए संशोधित मानदंडों की तुलना में मानदेय की उच्च दर देना चाहती हैं तो निधियां राज्यों को स्वयं के संसाधनों से जुटाई जाने की आवश्यकता होगी। आपसे अनुरोध करना चाहूंगी कि इस मामले को संबंधित राज्य सरकारों के साथ उठाया जाए।''
बलिया से लोकसभा सांसद भरत सिंह ने 20 जुलाई, 2016 को एक पत्र लिखकर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडे़कर का ध्यान इस विसंगति की ओर आकर्षित किया। आंदोलित शिक्षक हर मंच पर अपनी आवाज उठा रहे हैं, लेकिन कहीं ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी मामला दो साल से लंबित है लेकिन जिस धीमी गति से वहां सुनवाई हो रही है, उससे लगता नहीं कि बहुत जल्दी उन्हंे न्याय मिल पाएगा। पूरा देश 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाकर शिक्षकों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है। इस शिक्षक दिवस पर पूरे देश को आत्मावलोकन करने की जरूरत है कि क्या सही मायने में हम शिक्षकों के साथ न्याय कर रहे हैं?
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का परिचय
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक समुदाय की बालिकाओं को सुदूर एवं पिछडे़ क्षेत्रों में ही आवासीय विद्यालय स्थापित कर पहली से आठवीं कक्षा तक गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से अगस्त 2004 में केन्द्र सरकार द्वारा कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत की गई। 1 अप्रैल, 2007 से इस योजना को सर्व शिक्षा अभियान योजना से जोड़ दिया गया। इन विद्यालयों की शुरुआत खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र के उन पिछडे़ स्थानों पर की गई है जहां महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय महिला साक्षरता दर से काफी कम है। इसके अलावा उन क्षेत्रों को भी प्रमुखता दी गई जहां अनुसूचित जाति एवं जनजाति, आदि वर्ग की बालिकाओं द्वारा पढ़ाई बीच में ही छोड़ने की दर काफी ज्यादा थी। 1 अप्रैल, 2008 को इसका दायरा बढ़ाकर उन ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसे स्कूलों की स्थापना की गई जहां महिला साक्षरता दर 30 प्रतिशत से कम थी। साथ ही उन शहरी क्षेत्रों में भी स्कूल स्थापित किए गए जहां अल्पसंख्यक समुदाय की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम थी। योजना के तहत धन केन्द्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान को लागू करने वाली राज्य स्तरीय एजेंसी को जारी करती हैं। राज्य सरकार भी अपने हिस्से का धन इसी एजेंसी को जारी करती है। इस समय देश के 28 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल 3,609 कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय हैं।
वेतन विसंगति क्यों पैदा हुई?
वर्ष 2014 से पहले भारत सरकार कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों के कर्मियों के मानदेय में समेकित राशि राज्य सरकारों को प्रदान करती थी और राज्य सरकारें अपने हिसाब से कार्यरत कर्मियों की कार्यवधि, नियुक्ति प्रकृति एवं अर्हता तथा योग्यता के अनुसार उनके मानदेय का निर्धारण करती थीं। लेकिन 24 मार्च, 2014 के आदेश के द्वारा भारत सरकार ने इस मानदेय में वृद्धि करके अप्रत्याशित ढंग से अधूरी और अपुष्ट सूचनाओं के आधार पर जल्दबाजी में सभी संवगार्ें के कर्मियों का मानदेय स्वयं निर्धारित कर दिया।
राज्य सरकारों का तर्क
राज्य सरकारों का कहना है कि जब केन्द्र सरकार ने सभी कर्मियों का वेतन स्वयं निर्धारित कर दिया है तो वे उसके निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं और इस संबंध में कुछ नहीं कर सकतीं। क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित मानदेय में कोई भी परिवर्तन करना, उसे विभाजित करके बढ़ाना अथवा घटाना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। क्योंकि कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय योजना मुख्यत: केन्द्र सरकार द्वारा ही वित्तपोषित है।
– प्रमोद कुमार
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